भ्रमरगीत-सार/५६-याकी सीख सुनै ब्रज को, रे

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राग मलार
याकी सीख सुनै ब्रज को, रे?

जाकी रहनि कहनि अनमिल, अलि, कहत समुझि अति थोरे॥

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आपुन पद-मकरंद-सुधारस हृदय रहत नित बोरे।
हमसों कहत बिरस समझौ, है गगन कूप खनि खोरे[१]
धान को गाँव पयार तें जानौ ज्ञान बिषयरस भोरे।
सूर सो बहुत कहे न रहै रस गूलर को फल फोरे[२]॥५६॥

  1. खोरे=नहाए।
  2. गूलर को फल फोरे=गूलर का फल फोरने से अर्थात् ढकी छिपी बात खोलने से।