भ्रमरगीत-सार/६१-रहु रे, मधुकर! मधुमतवारे
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रहु रे, मधुकर! मधुमतवारे।
तुम जानत हमहूँ वैसी हैं जैसे कुसुम तिहारे।
घरी पहर सबको बिलमावत जेते आवत कारे॥
सुन्दरस्याम कमलदल-लोचन जसुमति-नँद-दुलारे।
सूर स्याम को सर्बस अर्प्यो अब कापै हम लेहिं उधारे[३]॥६१॥