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भ्रमरगीत-सार/६६-ब्रजजन सकल स्याम-ब्रतधारी

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ११३

 

राग मलार
ब्रजजन सकल स्याम-ब्रतधारी॥

बिन गोपाल और नहिं जानत आन कहैं व्यभिचारी॥
जोग-मोट सिर बोझ आनि कै कत तुम घोष उतारी?
इतनी दूरि जाहु चलि कासी जहाँ बिकति है प्यारी[]
यह सँदेस नहिं सुन तिहारो, है मण्डली अनन्य हमारी।
जो रसरीति करी हरि हमसों सो कत जात बिसारी?
महामुक्ति कोऊ नहिं बूझै, जदपि पदारथ चारी।
सूरदास स्वामी मनमोहन मूरति की बलिहारी॥६६॥

  1. प्यारी=महँगी (पंजाबी)