भ्रमरगीत-सार/६६-ब्रजजन सकल स्याम-ब्रतधारी
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ब्रजजन सकल स्याम-ब्रतधारी॥
बिन गोपाल और नहिं जानत आन कहैं व्यभिचारी॥
जोग-मोट सिर बोझ आनि कै कत तुम घोष उतारी?
इतनी दूरि जाहु चलि कासी जहाँ बिकति है प्यारी[१]॥
यह सँदेस नहिं सुन तिहारो, है मण्डली अनन्य हमारी।
जो रसरीति करी हरि हमसों सो कत जात बिसारी?
महामुक्ति कोऊ नहिं बूझै, जदपि पदारथ चारी।
सूरदास स्वामी मनमोहन मूरति की बलिहारी॥६६॥
- ↑ प्यारी=महँगी (पंजाबी)