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भ्रमरगीत-सार/६७-कहति कहा ऊधो सों बौरी

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ११४

 

राग धनाश्री
कहति कहा ऊधो सों बौरी[]

जाको सुनत रहे हरि के ढिग स्यामसखा यह सो री!
कहा कहत री! मैं पत्यात[] री नहीँ सुनी कहनावत।
हमको जोग सिखावन आयो, यह तेरे मन आवत?
करनी भली भलेई जानै, कपट कुटिल की खानि।
हरि को सखा नहीँ री माई! यह मन निसचय जानि॥
कहाँ रास-रस कहाँ जोग-जप? इतनो अँतर भाखत।
सूर सबै तुम कत भइँ बौरी याकी पति[] जो राखत॥६७॥

  1. बौरी=पगली।
  2. पत्यात=विश्वास करती हूँ।
  3. पति राखत=प्रतीति या विश्वास रखती है।