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स्वान-पूँछ कोटिक जो लागै सूधि न काहु करी॥ जैसे काग भच्छ नहिं छाँड़ै जनमत जौन घरी।
धोये रंग जात कहु कैसे ज्यों कारी कमरी? ज्यों अहि डसत उदर नहिं पूरत ऐसी धरनि धरी[१]। सूर होउ सो होउ सोच नहिं, तैसे हैं एउ री॥६९॥