भ्रमरगीत-सार/६९-प्रकृति जोई जाके अंग परी

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राग धनाश्री
प्रकृति जोई जाके अंग परी।

स्वान-पूँछ कोटिक जो लागै सूधि न काहु करी॥
जैसे काग भच्छ नहिं छाँड़ै जनमत जौन घरी।

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धोये रंग जात कहु कैसे ज्यों कारी कमरी?
ज्यों अहि डसत उदर नहिं पूरत ऐसी धरनि धरी[१]
सूर होउ सो होउ सोच नहिं, तैसे हैं एउ री॥६९॥

  1. धरनि धरी=टेक पकड़ी।