बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ११४
मोको एक अचंभो आवत यामेँ ये कह पावत? बचन कठोर कहत, कहि दाहत, अपनी महत[१] गँवावत। ऐसी परकृति[२] परति छाँह की जुवतिन ज्ञान बुझावत॥ आपुन निलज रहत नखसिख लौं एते पर पुनि गावत। सूर करत परसँसा अपनी, हारेहु जीति कहावत॥६८॥