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भ्रमरगीत-सार/६८-ऐसेई जन दूत कहावत

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ११४

 

राग रामकली
ऐसेई जन दूत कहावत।

मोको एक अचंभो आवत यामेँ ये कह पावत?
बचन कठोर कहत, कहि दाहत, अपनी महत[] गँवावत।
ऐसी परकृति[] परति छाँह की जुवतिन ज्ञान बुझावत॥
आपुन निलज रहत नखसिख लौं एते पर पुनि गावत।
सूर करत परसँसा अपनी, हारेहु जीति कहावत॥६८॥

  1. महत=महत्ता, महिमा।
  2. परिकृति=प्रतिकृति वा प्रकृति अर्थात् संसर्ग या छाया का ऐसा प्रभाव पड़ता है।