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भ्रमरगीत-सार/६-सखा! सुनो मेरी इक बात

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ८८

 

राग सारंग
सखा! सुनो मेरी इक बात।

वह लतागन संग गोपिन सुधि करत पछितात॥
कहाँ वह वृषभानुतनया परम सुंदर गात।
सुरति आए रासरस की अधिक जिय अकुलात॥
सदा हित यह रहत नाहीं सकल मिथ्या जात।
सूर प्रभु यह सुनौ मोसों एक ही सों नात॥६॥