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भ्रमरगीत-सार/७-उद्धव! यह मन निस्चय जानो

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ८८

 

राग टोड़ी
उद्धव! यह मन निस्चय जानो।

मन क्रम बच मैं तुम्हैं पठावत ब्रज को तुरत पलानो[]
पूरन ब्रह्म, सकल, अबिनासी ताके तुम हौ ज्ञाता।
रेख, न रूप, जाति, कुल नाहीं जाके नहिं पितु माता॥
यह मत दै गोपिन कहँ आवहु विरह-नदी में भासति[]
सूर तुरत यह जाय कहौ तुम ब्रह्म बिना नहिं आसति[]॥७॥

  1. पलानो=जाओ, प्रस्थान करो।
  2. भासति=डूबती हैं।
  3. आसति=आसक्ति, सामीप्य, मुक्ति।