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भ्रमरगीत-सार/९-पथिक! सँदेसो कहियो जाय

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ८९

 

राग सारंग
पथिक! सँदेसो कहियो जाय।

आवैंगे हम दोनों भैया, मैया जनि अकुलाय॥
याको बिलगु[] बहुत हम मान्यो जो कहि पठयो धाय[]
कहँ लौं कीर्ति मानिए तुम्हरी बड़ो कियो पय प्याय॥
कहियो जाय नंदबाबा सों, अरु गहि पकर्‌यो पाय।
दोऊ दुखी होन नहिं पावहिं धूमरि धौरी[] गाय॥
यद्यपि मथुरा बिभव बहुत है तुम बिनु कछु न सुहाय।
सूरदास ब्रजबासी लोगनि भेंटत हृदय जुड़ाय॥९॥

  1. बिलग मानना=बुरा मानना।
  2. धाय=दाई। यशोदा ने कृष्ण के मथुरा जाने पर देवकी के पास कहला भेजा था कि––"हौं तो धाय तिहारे सुत की कृपा करत ही रहियो"
  3. धौरी=सफेद।