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आवैंगे दिन चारि पाँच में हम हलधर दोउ भैया॥ जा दिन तें हम तुमतें बिछुरे काहु न कह्यो 'कन्हैया'। कबहूँ प्रात न कियो कलेवा, साँझ न पीन्हीं[१] धैया[२]॥ बंसी बेनु सँभारि राखियो और अबेर सबेरो। मति लै जाय चुराय राधिका कछुक खिलौनो मेरो॥
कहियो जाय नंदबाबा सों निपट निठुर जिय कीन्हो। सूर स्याम पहुँचाय मधुपुरी[३] बहुरि सँदेस न लीन्हो॥१०॥