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भ्रमरगीत-सार/१०-नीके रहियो जसुमति मैया

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ८९ से – ९० तक

 

नीके रहियो जसुमति मैया।

आवैंगे दिन चारि पाँच में हम हलधर दोउ भैया॥
जा दिन तें हम तुमतें बिछुरे काहु न कह्यो 'कन्हैया'।
कबहूँ प्रात न कियो कलेवा, साँझ न पीन्हीं[] धैया[]
बंसी बेनु सँभारि राखियो और अबेर सबेरो।
मति लै जाय चुराय राधिका कछुक खिलौनो मेरो॥

कहियो जाय नंदबाबा सों निपट निठुर जिय कीन्हो।
सूर स्याम पहुँचाय मधुपुरी[] बहुरि सँदेस न लीन्हो॥१०॥

  1. पीन्ही=पी।
  2. धैया=थन से सीधी छूटती दूध की धारा।
  3. मधुपुरी=मथुरा।