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मानसरोवर २/६ कैदी

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मानसरोवर २
प्रेमचंद

बनारस: सरस्वती प्रेस, पृष्ठ ७७ से – ८८ तक

 

क़ैदी‌

चौदह साल तक निरन्तर मानसिक वेदना, शारीरिक यातना भोगने के बाद आइवन ओखोटस्क जेल से निकला, पर उस पक्षी की भाँति नहीं, जो शिकारी के पिंजरे से पंख-हीन होकर निकला हो, बल्कि उस सिंह की भांति, जिसे कठघरे की दीवारों ने और भी भयंकर और भी रक्त-लोलुप बना दिया हो। उसके अन्तस्तल मे एक द्रव ज्वाला उमड़ रही थी, जिसने अपने ताप से उसके वलिष्ठ शरीर और सुडौल अंग-प्रत्यंग और लहराती हुई अभिलाषाओं को झुलस डाला था और आज उसके अस्तित्व का एक-एक अणु एक-एक चिनगारी बना हुआ था, क्षुधित, चंचल और विद्रोहमय।

जेलर ने उसे तौला । प्रवेश के समय दो मन तीन सेर था, आज केवल एक मन पाँच सेर।

जेलर ने सहानुभूति दिखाकर कहा-तुम बहुत दुर्बल हो गये हो आइवन ! अगर जरा भी कुपथ्य हुआ, तो बुरा होगा।

आइवन ने अपने हडियो के ढाँचे को विजय-भाव से देखा और अपने अन्दर एक अग्निमय प्रवाह का अनुभव करता हुआ बोला-कौन कहता है , मैं दुर्बल हो गया हूँ?

'तुम खुद देख रहे होगे।'

'दिल की आग जब तक नहीं बुझेगी, आइवन नहीं मरेगा मि० जेलर, सौ वर्ष तक नहीं, विश्वास रखिए।

आइवन इसी प्रकार बहकी-बहकी बाते किया करता था। इसलिए जेलर ने ज्यादा परवाह न की। सब उसे अर्द्ध-विक्षिप्त समझते थे। कुछ लिखा-पढ़ी हो जाने के बाद कपड़ा और पुस्तकें मॅगवाई गई , पर वह सारे सूट अब उसे उतारे हुए-से लगते थे, कोटो की जेबों में कई नोट निकले, कई नगद रुवेल | उसने सब कुछ वहीं जेल के बार्डरो और निम्न कर्मचारियो को दे दिया, मानो उसे कोई राज्य मिल गया है। जेलर ने कहा----यह नहीं हो सकता आइवन ! तुम सरकारी आदमियों को रिश्वत नहीं दे सकते।

आइवन साधु-भाव से हँसा--यह रिश्वत नहीं है मि॰ जेलर ! इन्हें रिश्वत देकर अब मुझे इनसे क्या लेना-देना है ? अब ये अप्रसन्न होकर मेरा क्या बिगाड़ लेंगे और प्रसन्न होकर मुझे क्या दे देंगे। यह उन कृपाओ का धन्यवाद है, जिनके विना चौदह साल तो क्या, मेरा यहाँ चौदह घटे रहना असह्य हो जाता।

जब वह जेल के फाटक से निकला, तो जेलर और सारे अन्य कर्मचारी उसके पीछे उसे मोटर तक पहुँचाने चले।

( २ )

पन्द्रह साल पहले आइवन मास्को के सम्पन्न और सम्भ्रान्त कुल का दीपक था।

उसने विद्यालय मे ऊँची शिक्षा पाई थी, खेल मे अभ्यास था, निर्भीक था, उदार और सहृदय था। दिल आईने की भाँति निर्मल, शील का पुतला, दुर्बलों की रक्षा के लिए जान पर खेलनेवाला, जिसकी हिम्मत संकट के सामने नगी तलवार हो जाती थी। उसके साथ हेलेन नाम की एक युवती पढती थी, जिसपर विद्यालय के सारे युवक प्राण देते थे। वह जितनी हो रूपवती थी, उतनी हो तेज़ थी, बड़ी कल्पनाशील पर अपने मनोभावो को ताले में बन्द रखनेवाली । आइवन मे क्या देखकर वह उसकी ओर आकर्षित हो गई, यह कहना कठिन है। दोनो मे लेश-मात्र भी सामजस्य न था । आइवन सैर और शराब का प्रेमी था, हेलेन कविता ओर सगीत और नृत्य पर जान देती थी। आइवन की निगाह में रुपये केवल इसलिए थे कि दोनो हाथो से उड़ाये जाय, हेलेन अत्यन्त कृपण । आइवन को लेक्चरर कारागार-सा लगता था । हेलेन इस सागर की मछली थी , पर कदाचित् यह विभिन्नता ही उनमें स्वाभाविक आकर्षण बन गई, जिसने अन्त में विकल प्रेम का रूप लिया। आइवन ने उससे विवाह का प्रस्ताव किया और उसने स्वीकार कर लिया। ओर दोनों किसी शुभ मुहूर्त में पाणिग्रहण करके सोहागरात बिताने के लिए किसी पहाड़ी जगह में जाने के मसूबे बाँध रहे थे कि सहसा राजनैतिक सग्राम ने उन्हें अपनी ओर खींच लिया । हेलेन पहले से ही राष्ट्रवादियों की ओर झुकी हुई थी। आइवन भी उसी रंग में रंग उठा। खानदान का रईस था, उसके लिए प्रजा-पक्ष लेना एक महान् तपस्या थी, इसलिए जब कभी-कभी वह इस सग्रांम मे हताश हो जाता, तो हेलेन उसकी हिम्मत बंँधाती
और आइवन उसके साहस और अनुराग से प्रभावित होकर अपनी दुर्बलता पर लज्जित हो जाता।

इन्हीं दिनों उक्रायेन प्रान्त की सूबेदारी पर रोमनाफ नाम का एक गवर्नर नियुक्त होकर आया, बड़ा ही कट्टर, राष्ट्रवादियो का जानी दुश्मन, दिन मे दो-चार विद्रोहियों को जब तक जेल न भेज लेता, उसे चैन न आता । आते-ही-आते उसने कई सम्पादको पर राजद्रोह का अभियोग चलाकर, उन्हे साइबेरिया भेजवा दिया, कृषकों की सभाएँ तोड़ दी, नगर की म्युनिसिपैलिटी तोड़ दो, और जब जनता ने अपना रोष प्रकट करने के लिए जलसे किये, तो पुलिस से भीड़ पर गोलियां चलवाई , जिससे कई बेगुनाहों की जान गई। मार्शल ला जारी कर दिया। सारे नगर मे हाहाकार मच गया। लोग मारे डर के घरो से न निकलते थे , क्योकि पुलिस हरएक की तलाशी लेती थी और उसे पीटती थी । ।

हेलेन ने कठोर मुद्रा से कहा- यह अन्धेर तो अब नही देखा जाता आइवन । इसका कुछ उपाय होना चाहिए।

आइवन ने प्रश्न की आँखो से देखा- उपाय ! हम क्या कर सकते हैं ?

हेलेन ने उसकी जड़ता पर खिन्न होकर कहा--तुम कहते हो, हम क्या कर सकते हैं ? मैं कहती हूँ, हम सब कुछ कर सकते हैं। मैं इन्हीं हाथो से उसका अन्त कर दूंगी।

आइवन ने विस्मय से उसकी ओर देखा- तुम समझती हो, उसे कत्ल करना आसान है ? वह कभी खुली गाड़ी मे नहीं निकलता। उसके आगे-पीछे सशस्त्र सवारी का एक दल हमेशा रहता है। रेलगाडी में भी वह रिजर्व डब्बों में सफर करता है। मुझे तो असम्भव-सा लगता है हेलेन, बिलकुल असम्भव ।

हेलेन कई मिनट तक चाय बनाती रही। फिर दो प्याले मेज पर रखकर उसने प्याला मॅह से लगाया और धीरे-धीरे पीने लगी। किसी विचार में तन्मय हो रही थी। सहसा उसने प्याला मेज पर रख दिया और बड़ी-बड़ी आँखों मे तेज भरकर बोली- यह सब कुछ होते हुए भी मैं उसे कत्ल कर सकती हूँ आइवन ! आदमी एक वार अपनी जान पर खेलकर सब कुछ कर सकता है। जोनते हो मैं क्या करूँगो ? मैं उससे राहो-रस्म पैदा करूंगी, उसका विश्वास प्राप्त करूँगी, उसे इस भ्रान्ति मे डालूंँगी कि मुझे उससे प्रेम है। मनुष्य कितना ही हृदय- हीन हो, उसके हृदय के किसी-न-किसी
कोने में पराग की भांति रस छिपा रहता है । मैं तो समझती हूँकि रोमनमो यहे दमन नीति उसकी अवरुद्ध अभिलाषा की गाँठ है, और कुछ नहीं। किसी मायाविनी के प्रेम मे असफल होकर उसके हृदय का रस-स्रोत सूख गया है। वहाँ रस का संचार करना होगा और किसी युवती का एक मधुर शब्द, एक सरस मुस्कान भी जादू का काम करेगी। ऐसो को तो वह चुटकियो मे अपने पैरो पर गिरा सकती है। तुम जैसे सैलानियो का रिझाना इससे कहीं कठिन है , अगर तुम यह स्वीकार करते हो कि में रूपहीना नहीं हूँ, तो में तुम्हे विश्वास दिलाती हूँ कि मेरा कार्य सफल होगा। बतलाओ, मैं रूपवतो हूँ या नहीं ?

उसने तिर्छी आँखों से आइवन को देखा । आइवन इस भाव-विलास पर मुग्ध होकर बोला-तुम यह मुझसे पूछती हो हेलेन ? में तो तुम्हे संसार की

हेलेन ने उसकी बात काटकर कहा- अगर तुम ऐसा समझते हो, तो तुम मूर्ख हो आइवन । इसी नगर में नहीं, हमारे विद्यालय मे ही, मुझसे कहीं रूपवती बालिकाएँ मौजूट है। हाँ, तुम इतना ही कह सकते हो कि तुम कुरुपा नहीं हो। क्या तुम समझते हो, मैं तुम्हे संसार का सबसे रूपवान् युवक समझती हूँ ? कभी नहीं। मैं ऐसे एक नहीं सौ नाम गिना सकती हूँ, जो चेहरे-मोहरे में तुमसे कहीं बढ़कर है , मगर तुममें कोई ऐसी वस्तु है, जो तुम्ही में है और वह मुझे और कहीं नजर नहीं आती-तो मेरा कार्यक्रम सुनो । एक महीना तो मुझे उससे मेल करते लगेगा। फिर वह मेरे साथ सैर करने निकलेगा । और तब एक दिन हम और वह दोनो रात को पार्क मे जायेंगे और तालाब के किनारे बेंच पर बैठेंगे। तुम उसी वक्त रिवाल्वर लिये आ जाओगे और वहीं पृथ्वी उसके बोझ से हलकी हो जायगी।

जैसा हम पहले कह चुके है, आइवन एक रईसों का लड़का था और क्रांतिमय राजनीति से उसका हार्दिक प्रेम न था। हेलेन के प्रभाव से कुछ मानसिक सहानुभूति अवश्य पैदा हो गई थी और मानसिक सहानुभूति प्राणो को संकट मे नहीं डालती । उसने प्रकट रूप से तो कोई आपत्ति नहीं की, लेकिन कुछ रादिग्ध भाव से बोला---यह तो सोचो हेलेन, इस तरह की हत्या कोई भानुषीय कृति है ?

हेलेन ने तीखेपन से कहा-जो दूसरो के साथ मानुषीय व्यवहार नहीं करता, उसके साथ हम क्यों मानुषीय व्यवहार करें। क्या वह सूर्य की भांति प्रकट नहीं है, कि आज सैकड़ो परिवार इस राक्षस के हाथो तबाह हो रहे हैं? कौन जानता है,
इसके हाथ कितने बेगुनाहों के खून से रेंगे हुए हैं ? ऐसे व्यक्ति के साथ किसी तरह की रियायत करना असंगत है। तुम न जाने क्या इतने ठण्डे हो । मैं तो उसके दुष्टाचरण देखती हूँ, तो मेरा रक्त खौलने लगता है। मैं सच कहती हूँ, जिस वक्त उसकी सवारी निकलती है, मेरी बोटी-चोटी हिंसा के आवेग से काँपने लगती है, अगर मेरे सामने कोई उसकी खाल भी सींच ले, तो मुझे दया न आये, अगर तुममें इतना साहस नहीं है, तो कोई हरज नहीं। मैं खुद सब कुछ कर लूँगी। हांँ, देख लेना, मैं कैसे उस कुत्ते को जहन्नुम पहुँचाती हूँ।

हेलेन का मुख-मण्डल हिंसा के आवेग से लाल हो गया। आइवन ने लज्जित होकर कहा-नहीं-सही, यह बात नहीं है हेलेन, मेरा यह आशय न था कि मैं इस काम में तुम्हे सहयोग न दूंगा। मुझे आज मालम हुआ कि तुम्हारी आत्मा देश की दुर्दशा से कितनी विकल है, लेकिन मैं फिर यही कहूँगा कि यह काम इतना आसान नहीं है और हमे बड़ी सावधानी से काम लेना पड़ेगा।

हेलेन ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा- तुम इसकी कुछ चिन्ता न करो आइवन, संसार में मेरे लिए जो वस्तु सबसे प्यारी है, उसे दाँव पर रखते हुए क्या मैं सावधानी से काम न लूँगी? लेकिन तुमसे एक याचना करती हूँ, अगर इस बीच मे मैं कोई ऐसा काम करूँ, जो तुम्हे बुरा मालूम हो तो तुम मुझे क्षमा करोगे न ?

आइवन ने विस्मय-भरी आँखों से हेलेन के मुख की ओर देखा । उसका आशय उसकी समझ में न आया ।

हेलेन डरी, आइवन कोई नयी आपत्ति तो नहीं खड़ी करना चाहता । आश्वासन के लिए अपने सुख को उसके आतुर अधरो के समीप ले जाकर बोली-प्रेम का अभि- नय करने में मुझे वह सब कुछ कहना पड़ेगा, जिस पर एकमात्र तुम्हारा ही अधिकार है। मैं डरती हूं, कही तुम मुझ पर सदेह न करने लगो।

आइवन ने उसे कर-पाश मे लेकर कहा-~~-यह असम्भव है हेलेन, विश्वास प्रेम की पहली सीढी है।

अन्तिम शब्द कहते उसकी आंखें झुक गई । इन शब्दों में उदारता का जो आदर्श था, वह उस पर पूरा उतरेगा या नहीं, वह यही सोचने लगा।

इसके तीन दिन पीछे नाटक का सूत्रपात हुआ। हेलेन अपने ऊपर पुलिस के नराधार सन्देह की फरियाद लेकर रोमनाफ से मिली और उसे विश्वास दिलाया कि‌

पुलिस के अधिकारी उससे केवल इसलिए असंतुष्ट हैं कि वह जनके कलुषित प्रस्तावों को ठुकरा रही है, यह सत्य है कि विद्यालय मे उसको संगति कुछ उन युवकों से हो गई थी, पर विद्यालय से निकलने के बाद उसका उनसे कोई सम्बन्ध नहीं है। रोम- नाफ जितना चतुर था, उससे कहीं चतुर अपने को समझता था। अपने दस साल के अधिकारी-जीवन में उसे किसी ऐसी रमणी से साबका न पड़ा था, जिसने उसके ऊपर इतना विश्वास करके अपने को उसकी दया पर छोड़ दिया हो। किसी धन- लोलुप की भांति सहसा यह धन-राशि देखकर उसकी आँखों पर परदा पड़ गया । अपनी समझ में तो वह हेलेन से उग्र युवकों के विषय में ऐसी बहुत-सी बातों का पता लगा- कर फूला न समाया, जो खुफिया पुलिसवालो को बहुत सिर मारने पर भी ज्ञात न हो सकी थीं, पर इन बातो मे मिथ्या का कितना मिश्रण है, यह वह न भाँप सका। इस आध घण्टे में एक युवती ने एक अनुभवी अफसर को अपने रूप की मदिरा से उन्मत्त कर दिया था।

जब हेलेन चलने लगी, तो रोमनाफ ने कुरसी से खड़े होकर कहा----मुझे आशा है, यह हमारी आखिरी मुलाकात न होगी।

हेलेन ने हाथ बढाकर कहा- हुजूर ने जिस सौजन्य से मेरी विपत्ति-कथा सुनी है, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देती हूँ!

'कल आप तीसरे पहर यहीं चाय पियें।'

रब्त-जब्त बढने लगा। हेलेन आकर रोज की बातें आइवन से कह सुनाती। रोमनाफ वास्तव मे जितना बदनाम है, उतना बुरा नहीं। नहीं, वह वड़ा रसिक, सगीत और कला का प्रेमी और शील और विनय की मूर्ति है। इन थोड़े हो दिनो मे हेलेन से उसकी घनिष्टता हो गई है और किसी अज्ञात रीति से नगर में पुलिस का अत्याचार कम होने लगा है।

अन्त मे वह निश्चित तिथि आई। आइवन और हेलेन दिन-भर बैठे इसी प्रश्न पर विचार करते रहे । आइवन का मन आज बहुत चंचल हो रहा था। कभी अकारण ही हँसने लगता, कभी अनायास रो पड़ता । शंका, प्रतीक्षा और किसी अज्ञात चिन्ता ने उसके मनःसागर को इतना अशान्त कर दिया था कि उसमे भावों की नौकाएँ डगमगा रही थीं-न मार्ग का पता था, न दिशा का। हेलेन भी आज बहुत चिन्तित और गम्भीर थी। आज के लिए उसने पहले ही से सजीले वस्त्र बनवा रखे थे। रूप‌

को अलंकृत करने के न-जाने किन-किन विधानों का प्रयोग कर रही थी , पर इसमें किसी योद्धा का उत्साह नहीं, कायर का कम्पन था ।

सहसा आइवन ने आँखों में आँसू भरकर कहा-तुम आज इतनी मायाविनी हो गई हो हेलेन, कि मुझे न जाने क्यों तुमसे भय हो रहा है।

हेलेन मुसकिराई। उस मुस्कान में करुणा भरी हुई थी--मनुष्य को कभी-कभी कितने ही अप्रिय कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है आइवन ! आज मैं सुधा से विष का काम लेने जा रही हूँ, अलंकार का ऐसा दुरुपयोग तुमने कहीं और देखा है ?

आइवन उड़े हुए मन से बोला-~-इसी को तो राष्ट्र जीवन कहते हैं ।

'यह राष्ट्र-जीवन नहीं है.---यह नरक है।'

'मगर संसार में अभी कुछ दिन और इसकी ज़रूरत रहेगी।' ।

'यह अवस्था जितनी जल्द बदल जाय, उतना ही अच्छा ।'

पाँसा पल्ट चुका था, आश्वन ने गर्म होकर कहा-'अत्याचारियों को संसार मे फलने-फूलने दिया जाय, जिसमें एक दिन इनके कांटों के मारे पृथ्वी पर कहीं पाँव रखने की जगह न रहे ?

हेलेन ने कोई जवाब न दिया , पर उसके मन में जो अवसाद उत्पन्न हो गया था, वह उसके सुख पर झलक रहा था । राष्ट्र उसकी दृष्टि मे सर्वोपरि था, उसके सामने व्यक्ति का कोई मूल्य न था । अगर इस समय उसका मन किसी कारण से दुर्बल भी हो रहा था, तो उसे खोल देने का उसमे साहस न था।

दोनों गले मिलकर बिदा हुए। कौन जाने यह अन्तिम दर्शन हो! दोनो के दिल भारी थे, और आँखें सजल।

आइवन ने उत्साह के साथ कहा-~मैं ठीक समय पर आ जाऊँगा।

हेलेन ने कोई जवाब न दिया।

आइवन ने फिर सानुरोध कहा-~-खुदा से मेरे लिए दुआ करना हेलेन !

हेलेन ने जैसे रोते हुए गले से कहा- मुझे खुदा पर भरोसा नहीं है।

'मुझे तो है।'

'कबसे?'

'जबसे मौत मेरी आँखों के सामने खड़ी हो गई।

वह वेग के साथ चला गया। सन्ध्या हो गई थी और दो घटे के बाद ही उस‌

कठिन परीक्षा का समय आ जायगा, जिससे उसके प्राण काँप रहे थे। वह कहीं एकान्त मे बैठकर सोचना चाहता था। आज उसे ज्ञात हो रहा था कि वह स्वाधीन नहीं है । बड़ी मोटी जंजीरें उसके एक-एक अंग को जकड़े हुए थीं। इन्हे कैसे तोड़े ?

दस बज गये थे। हेलेन और रोमनाफ पार्क के एक कुञ्ज में बेंचो पर बैठे हुए थे। तेज़ बर्फीली हवा चल रही थी। चाँद किसी क्षीण आशा की भांति बादलो में छिपा हुआ था।

हेलेन ने इधर-उधर सशक नेत्रों से देखकर कहा- अब तो देर हो गई । यहाँ से चलना चाहिए।

रोमनाफ ने बेंच पर पाँव फैलाते हुए कहा-अभी तो ऐसी देर नहीं हुई है हेलेन ! कह नहीं सकता, जीवन के यह क्षण स्वप्न हैं या सत्य , लेकिन सत्य भी हैं, तो स्वप्न से अधिक मधुर, और स्वप्न भी हैं, तो सत्य से अधिक उज्ज्वल ।

हेलेन बेचैन होकर उठो और रोमनाफ का हाथ पकड़कर वोली--मेरा जी आज कुछ चंचल हो रहा है । सिर में चक्कर-सा आ रहा है। चलो, मुझे मेरे घर पहुंचा दो।

रोमनाफ ने उसका हाथ पकड़कर अपनी वगल में बैठाते हुए कहा- लेकिन मैंने मोटर तो ग्यारह बजे बुलाई है।

हेलेन के मुंह से एक चीख निकल गई -ग्यारह बजे ।

हां, अब ग्यारह बजे ही चाहते हैं। आओ, तब तक और कुछ बातें हों। रात तो काली वल:-सी मालम होती है। जितनी देर उसे दूर रख सकूँ, उतना ही अच्छा । मैं तो समझता हूँ, उस दिन तुम मेरे सौभाग्य की देवी बनकर आई थीं हेलेन, नही अब तक मैंने न जाने क्या-क्या अत्याचार किये होते। इस उदार नीति ने वातावरण में जो शुभ परिवर्तन कर दिया, उस पर मुझे स्वयं आश्चर्य हो रहा है। महीनो के दमन ने जो कुछ न कर पाया था, वह दिनो के आश्वासन ने पूरा कर दिखाया । और इसके लिए मैं तुम्हारा ऋणी हूँ हेलेन, केवल तुम्हारा, पर खेद यही है कि हमारी संस्कार दवा करना नहीं जानती, केवल मारना जानती है। जार के मंत्रियों मे अभी से मेरे विषय मे सन्देह होने लगा है और मुझे यहां से हटाने का प्रस्ताव हो रहा है।

सहसा टार्च का चकाचौंध पैदा करनेवाला प्रकाश बिजली की भांति चमक उठा और रिवाल्वर छूटने की आवाज़ आई। उसी वक्त रोमनाफ ने उछलकर आइवन को पकड़ लिया और चिल्लाया-पकड़ो, पकड़ो, खून ! हेलेन, तुम यहाँ से भागो ? पार्क में कई सतरी थे। चारों ओर से दौड़ पड़े । आइवन घिर गया। एक क्षण में न जाने कहाँ से टाउन-पुलीस, और सशस्त्र-पुलीस, और गुप्त-पुलीस, और रागर- पुलीस के जत्थे-के-जत्थे आ पहुँचे । आइवन गिरफ्तार हो गया।

रोमनाफ ने हेलेन से हाथ मिलाकर सन्देह के स्वर में कहा-यह आइवन तो वही युवक है, जो तुम्हारे साथ विद्यालय मे था ?

हेलेन ने क्षुब्ध होकर कहा-हाँ है; लेकिन मुझे इसका जरा भी अनुमान न था कि वह क्रान्तिवादी हो गया है।

'गोली मेरे सिर पर से सन्-सन् करतो हुई निकल गई।'

'या ईश्वर !'

'मैने दूसरा फायर करने का अवसर ही न दिया। मुझे इस युवक की दशा पर दुख हो रहा है हेलेन ! ये अभागे समझते हैं कि इन हत्याओं से वे देश का उद्धार कर लेगे । अगर मैं मर ही जाता, तो क्या मेरी जगह कोई मुझसे भी ज्यादा कठोर मनुष्य न आ जाता लेकिन मुझे जरा भो क्रोध या दु ख या भय नहीं है हेलेन, तुम बिलकुल चिन्ता न करना। चलो, मैं तुम्हें पहुंचा दूँ

रास्ते-भर रोमनाफ इस आघात से बच जाने पर अपने को बधाई और ईश्वर को धन्यवाद देता रहा और हेलेन विचारों में मग्न बैठी रही।

दूसरे दिन मजिस्ट्रेट के इजलाम मे अभियोग चला, और हेलेन सरकारी गवाह थी। आइवन को मालूम हुआ कि दुनिया अँधेरी हो गई है और वह उसकी अथाह गहराई मधेसता चला जा रहा है।

( ३ )

चौदह साल के बाद !

आइवन रेलगाडी से उतरकर हेलेन के पास जा रहा है। उसे घरवालों की सुधि नहीं है। माता और पिता उसके वियोग में मरणासन्न हो रहे हैं, इसकी उसे परवाह नहीं है। वह अपने चौदह साल के पाले हुए हिंसा-भाव से उन्मत्त, हेलेन के पास जा रहा है, पर उसकी हिंसा मे रक्त की प्यास नहीं है, केवल गहरी दाहक दुर्भावना है। इन चौदह सालो में उसने जो यातनाएँ झेली हैं, उनका दो-चार वाक्यो मे, मानो सत्त निकालकर, विष के समान हेलेन की धमनियों में भरकर, उसे तड़पते हुए देखकर, वह अपनी आंखों को तृप्त करना चाहता है । और वह वाक्य क्या है ? हेलेन, तुमने मेरे

साथ जो दगा की है, वह शायद त्रिया-चरित्र के इतिहास मे भी अद्वितीय है। मैंने अपना सर्वस्व तुम्हारे चरणों पर अर्पण कर दिया। केवल तुम्हारे इशारों का गुलाम था ! तुमने ही मुझे रोमनाफ को हत्या के लिए प्रेरित किया । ओर तुमने ही मेरे विरुद्ध साक्षी दी , केवल अपनी कुटिल काम-लिप्सा को पूरा करने के लिए ! मेरे विरुद्ध कोई दूसरा प्रमाण न था। रोमनाफ और उसकी सारी पुलिस भी झूठी शहादतो से मुझे परास्त न कर सकती थी , मगर तुमने केवल अपनी वासना को तृप्त करने के लिए, केवल रोमनाफ के विषाक्क आलिगन का आनन्द उठाने के लिए मेरे साथ यह विश्वासघात किया , पर आँखें खोलकर देखो कि वही आइवन,' जिसे तुमने पर के नोचे कुचला था, आज तुम्हारी उन सारी मक्कारियों का पर्दा खोलने के लिए, तुम्हारे सामने खड़ा है । तुमने राष्ट्र की सेवा का बीड़ा उठाया था । तुम अपने का राष्ट्र की वेदी पर होम कर देना चाहती थी , किन्तु कुत्सित कामनाओं के पहले ही प्रलोभन में तुम अपने सारे बहु रूप को तिलाजलि देकर भोग-लालसा को गुलामी करने पर उत्तर गई ! अविकार और समृद्धि के पहले ही टुकड़े पर तुम दुम हिलाती हुई टूट पड़ी ! धिक्कार है तुम्हारी इस भोग-लिप्सा को , तुम्हारे इस कुत्सित जीवन को ।

(४)

सन्ध्या-काल था। पश्चिम के क्षितिज पर दिन की चिता जलकर ठढी हो रही थी और रोमनाफ के विशाल भवन मे हेलेन की अर्थी को ले चलने की तैयारियाँ हो रही थीं। नगर के नेता जमा थे और रोमनाफ अपने शोक कम्पित हाथों से अर्थी को पुप्पहारों से सजा रहा था और उन्हें अपने आत्म-जल से शीतल कर रहा था। उसी वक्त आइवन उन्मत्त वेष मे, दुर्वल, झुका हुआ, सिर के बाल चढाये कंकाल-सा आकर खड़ा हो गया। किसीने उसकी ओर ध्यान न दिया । समझे, कोई भिक्षुक होगा, जो ऐसे अवसरों पर दान के लोभ से आ जाया करते हैं।

जब नगर के विशप ने अन्तिम संस्कार समाप्त किया और मरियम को बेटियां नये जीवन के स्वागत का गीत गा चुकीं, तो आइवन ने अर्थी के पास जाकर आवेश से कांपते हुए स्वर मे कहा— यह वह दुष्टा है, जिसे सारी दुनिया की पवित्र आत्माओं की शुभ-कामनाएँ भी नरक की यातना से नहीं बचा सकती। वह इस योग्य थी कि उसकी लाश ...

कई आदसियों ने दौड़कर उसे पकड़ लिया और उसे धक्के देते हुए फाटक की‌


और ले चले। उसी वक्त रोमनाफ ने आकर उसके कंधे पर हाथ रख दिया और उसे अलग ले जाकर पूछा-दोस्त, क्या तुम्हारा नाम क्लोडियस आइवनाफ है ? हाँ, तुम वही हो, मुझे तुम्हारी सूरत याद आ गई । मुझे सव कुछ मालम है, रत्ती-रत्ती मालम है। हेलेन ने मुझसे कोई बात नहीं छिपाई । अब वह इस ससार में नहीं है, मैं झूठ बोलकर उसकी कोई सेवा नहीं कर सकता, तुम उस पर कठोर शब्दों का प्रहार करो या कठोर आघातो का, वह समान रूप से शान्त रहेगी, लेकिन अन्त समय तक वह तुम्हारी याद करती रही । उस प्रसग की स्मृति उसे सदैव रुलाती रहती थी। उसके जीवन की यह सबसे बड़ी कामना थी कि तुम्हारे सामने घुटने टेककर क्षया की याचना करे, मरते-मरते उसने यह वसीयत की कि जिस तरह भी हो सके उसको यह विनय तुम तक पहुँचाऊँ कि वह तुम्हारों अपराधिनी है और तुमसे क्षमा चाहती है। क्या तुम समझते हो, जब वह तुम्हारे सामने आँखों में आंसू भरे आती, तो तुम्हारा हृदय पत्थर होने पर भी न पिघल जाता ? क्या इस समय भी वह तुम्हें दीन याचना की प्रतिमा-सौ खड़ी नहीं दीखती ? जरा चलकर उसका मुसकिराता हुआ चेहरा देखो, मोशियो आइवन, तुम्हारा मन अभ भी उसका चुम्बन लेने के लिए विकल हो जायगा। मुझे ज़रा भी ईर्ष्या न होगी। उन फूलों को सेज पर लेटी हुई वह ऐसी लग रही है, मानो फूलो की रानी हो । जीवन में उसको एक अभिलाषा अपूर्ण रह गई आइवन, वह तुम्हारी क्षमा है। प्रेमी-हृदय बड़ा उदार होता है आइवन, वह क्षमा और दया का सागर होता है। ईर्ष्या और दम्भ के गन्दे नाले उसमे मिलकर उतने ही विशाल और पवित्र हो जाते हैं । जिसे एक बार तुमने प्यार किया, उसको अन्तिम अभि- लाषा की तुम उपेक्षा नहीं कर सकते।

उसने आइवन का हाथ पकड़ा और सैकड़ों कुतहल-पूर्ण नेत्री के सामने उसे लिये हुए अर्थी के पास आया और ताबूत का ऊपरी तख्ता हटाकर हेलेन का शान्त मुखमण्डल उसे दिखा दिया। उस निस्पन्द, निश्चेष्ट, निर्विकार छवि को मृत्यु ने एक देवी गरिमा-सो प्रदान कर दी थी, मानो स्वर्ग की सारी विभूतियाँ उसका स्वागत कर रही है। आइवन की कुटिल आँखों में एक दिव्य ज्योति-सी चमक उठी और वह दृश्य सामने खिच गया, जब उसने हेलेन को प्रेम से आलिगित क्यिा था और अपने हृदय के सारे अनुराग और उल्लास को पुष्पों में गूंथकर उसके गले में डाला था। उसे जान पड़ा, यह सब कुछ जो उसके सामने हो रहा है, स्वपन

है और एकाएक उसकी आँखें खुल गई हैं और वह उसी भांति हेलेन को अपनी छाती से लगाये हुए है। उस आत्मानन्द के एक क्षण के लिए क्या वह फिर चौदह साल का कारावास झेलने के लिए न तैयार हो जायगा ? क्या अब भी उसके जीवन की सबसे सुखद घड़ियां वही न थी, जो हेलेन के साथ गुजरी थीं और क्या उन घड़ियों के अनुपम आनन्द को वह इन चौदह सालों में भी भूल सका था? उसने ताबूत के पास बैठकर श्रद्धा से कांँपते हुए कठ से प्रार्थना की-ईश्वर, तू मेरे प्राणों से प्रिय हेलेन को अपनी क्षमा के दामन में ले। और जब वह तावूत को कन्धे पर लिये चला, तो उसको आत्मा लज्जित थी, अपनी सकीर्णता पर, अपनी उद्विग्नता पर, अपनी नीचता पर, और जब ताबूत कब्र में रख दिया गया, तो वह वहाँ बैठकर न जाने कब तक रोता रहा। दूसरे दिन रोमनाफ जव फातिहा पढने आया तो देखा, आइवन सिजदे में सिर झुकाये हुए है, और उसकी आत्मा स्वर्ग को प्रयाण कर चुकी है।




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