मानसिक शक्ति/५–बाह्यक्षेत्र पर विचार का प्रभाव

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[ २२ ]ह बात केवल मानी हुई है कि जीवन के सुख दुःख पर बाह्य क्षेत्र का बहुत भारी प्रभाव पड़ता है। इसके समझने के केवल दो मार्ग हैं। पहला तो यह कि कुछ व्यक्ति अपने को और दूसरों को बाह्य क्षेत्र का शिकार समझते हैं। जब वे अपने चारों तरफ़ दृष्टिपात करते हैं तो उन्हें निर्धनता, अपवित्रता और कुत्सित मकानात ही दिखलाई देते हैं और बहुत से मनुष्य अपने को शराब, तम्बाकू, बुरी संगति आदि में नष्ट करते हुए नज़र आते हैं। लोग इनकी बुरे स्थानों में रहते हुए पाते हैं इस लिए इस बात को वे जल्दी ही कहने लगते हैं कि इनके बिगड़ने का कारण बाह्य क्षेत्र है। कुछ समय हुआ होगा जब कि एक दिन लेखक ने किसी को यह कहते हुए सुना था कि ऐसी अवस्था में मनुष्य कैसे अच्छी तरह रह सकता है। इन गलियों को देखो जहां पर कि उसका निवास-स्थान है, इन आदमियों को देखो जिनकी उससे संगत है। उस घर का भी मुलाहिजा करो जिसमें वह रहता है। बात यह है कि बाह्य क्षेत्र पर [ २३ ] दोष देने वालों को इस बात की तनिक भी ख़बर नहीं कि ऐसा बुरा स्थान उसने अपने आप ही चुना है और यह उसकी इच्छानुसार है। बाह्य क्षेत्र के कारण उसके बुरे साथी, मैला स्थान, बुरी अवस्था बाहय कारण ने नहीं पैदा कर दी है किंतु यह बाह्य क्षेत्र की अवस्था उसने स्वयमेव पैदा की है। उसका बाह्यक्षेत्र ऐसा ही है तो यह उसकी ही भूल है। इस बात का सबूत तुम्हें उस समय मिल सकता है जब कि तुम शहर के किसी बुरे स्थान में जाओ और वहां के रहने वाले की हालत देखो। सामने शराबी खड़ा है। उसने शराब पीना और अपने बुरे साथियों का संग करना त्याग दिया है अब देखो वह प्रतिदिन प्रातःकाल तरोताजा दिमाग के साथ अपने काम पर जाता है। सप्ताह के अन्त में वह अपनी सात दिन की मज़दूरी घर लाता है और अपनी स्त्री, बाल बच्चों के लिए कपड़ा और भोजन खरीदता है और घर के लिए अच्छा २ सामान मोल लेता है। अब बतलाइये कि बाह्य क्षेत्र की शक्ति कहां भाग गई। कुछ दिनों के बाद वह तुम्हें यह भी साबित करके बतला देगा कि बाह्य क्षेत्र में रोकने की कुछ भी शक्ति नहीं है और उसी गन्दे स्थान से वह तुम्हें सुन्दर, दृढ़, स्वतन्त्र और प्रसन्न चित्त मनुष्य निकलता हुआ दिखलाई देगा और तुम्हें उस समय वह स्थान उसके जीवन और चरित्र के लिए उत्तम और उपयुक्त जान पड़ेगा। अपने आपको वश करने से मनुष्य बाह्य क्षेत्र का भी स्वामी बन गया है।

साफ़ सुथरे मनुष्य को बुरे स्थान में रखना, गम्भीर और [ २४ ] शांत मनुष्य को मद्यपीने वालों के स्थान में रखना ओर अधिक परिश्रम करने वाले सच्चे, ईमानदार आदमी को नीच और गन्दे स्थान में रखना बड़ा ही असम्भव है। यदि तुम किसी व्यक्ति को इससे पहले जो परिवर्तन के लिए तत्पर नहीं हैं, अपने क्षेत्र से अलग करो और फल देखो क्या होता है। यह कि वह बाह्य क्षेत्र को अपने साथ ले जायगा और तत्काल उसको अपनी इच्छानुसार बना लेगा पहले आदमी के विचार बदलो तो बाह्य क्षेत्र बहुत जल्दी बदल जाएगा।

बाह्य क्षेत्र के जानने का एक मार्ग और है जिसको हमें नहीं भूलना चाहिए। हरएक आदमी ने शिक्षित मनुष्यों को जिनको सब प्रकार के सुभीते हैं, जो अच्छे स्थान में रहते हैं और जिनके सभ्य और शिक्षित मित्र हैं, यह शिकायत करते सुना होगा कि "हम अपनी योग्यता के अनुसार अच्छे क्षेत्र में नहीं हैं, परस्थितियां हमारे अनुकूल नहीं है। उनका कार्य हमारे अनुकूल न होने से हम दुःखी रहते हैं और इसी से हम उसको घृणा की दृष्टि से देखते हैं इस कारण हम न कुछ सामाजिक, आर्थिक अथवा आत्मिक उन्नति का, जिनको कि हमें आशा थी और अब भी आशा रखते हैं, उपाय करते हैं"। ऐसे ही आदमी ने एक बार मुझे लिखा था कि "दूसरे मनुष्य तो सफलता प्राप्त कर रहे हैं, उन्नति कर रहे हैं, मौका पा रहे हैं, हर्ष और आनन्द लूट रहे हैं, परन्तु हम इन सबसे बंचित हैं सो क्यों? मैं अपने काम को इतने वर्षों से कर रहा हूँ और मुझे वे पसन्द नहीं हैं।" बस सारा भेद इसी में है कि मैं अपने को पसन्द नहीं करता। उस महाशय को हमने लिखा [ २५ ] "कि देखो उस काम में जो तुम करते रहे, आपको कितने अच्छे अच्छे अवसर प्राप्त होते रहे जहां आप अपनी शक्ति और योग्यता को दिखला सकते थे। यह बाह्य क्षेत्र से सहानुभूति न रखने का कारण तुमको जीवन बाधा डालता है। काम को घृणा की दृष्टि से देखने, काम से हटाकर मन को दूसरी ओर लगाने, अपने साथ में काम करने वालों को कुदृष्टि से देखने से तो यही अच्छा है कि आत्म-निरीक्षण करो, प्रतिदिन ध्यान करो इस अभिप्राय से कि तुमको मालूम हो जावे कि वही काम जिससे घृणा थी, कैसा अच्छा है।" उसने मेरी शिक्षा को ग्रहण कर लिया और उसी के अनुसार चलने लगा। थोड़े ही समय के बाद परिणाम बड़ा विचित्र निकला। शुभ दिन उदय हुआ जिस कार्य से पहिले वह बड़ी घृणा किया करता था अब उसी से उसे आनन्द मिलने लगा। उसकी परस्थिती जादू के असर को भांति बदल गई और मित्रा में बहुत उम्दगी दिखाई देने लगी जो पहले स्वप्न में भी नहीं दीखती थी। लाभदायक अवसर उसे दिखलाई देने लगा। इसलिए अब उसे जिस वस्तु को जरूरत होती थी, मिल जाती थी। उसने अपनी अन्तरात्मा बदल दो तो देखो उसका बाह्यक्षेत्र उसके अनुसार हो गया। उसने इस बार लिखा कि मैं बिलकुल ही बदल गया और अब मुझे उसी क्षेत्र में प्रसन्नता, हर्ष और सुन्दरता दिखलाई देने लगी जिसमें पहले कष्ट, दुख और आपत्ति जान पड़ती थी यह सब अन्तरंग के बदलने से हुआ अन्य किसी से नहीं।

इस बात पर विश्वास रक्खो कि यदि हम वर्तमान [ २६ ] स्थिति में नहीं उन्नति कर सकते। तो फिर किसी भी स्थिति में उन्नति नहीं कर सकते। इस बात को बहुत स्त्री पुरुषों ने अनुभव किया है किन्तु लेखक ने तो कई बार किया है कि सुख और सफलता जिसकी इच्छा थी उसी काम में और उसी क्षेत्र में विद्यमान है जिससे मनुष्य भागना चाहता था। सुख और सफलता हमारे पैरों तले ही दबी थी जिसका हमने ख्याल नहीं किया था। जिस काम के तुम कर रहे हो उसी में अच्छाई, ओर जहां कहीं भी तुम हो वहीं जय लाभ करो सच्चे हृदय के साथ परिश्रम करके काम को अच्छा बनाओ इससे तुमको अवश्य ही सुख और सफलता की प्राप्ति होगी।

जो आत्म-विजय करता है उसके लिए सब चीजें सिर झुकाए खड़ी हैं। उद्योगी मनुष्य को अवसर को कमी नहीं।