मानसिक शक्ति/६–पारस पथरी

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[ २७ ]प्राचीन समय से मनुष्यों का यह विश्वास हो रहा है कि संसार में एक ऐसी वस्तु है कि जिसके प्राप्त हो जाने से मनुष्य लोहे को सोना बना सकता है और अपने अनैच्छुक और अप्रिय पदार्थों को जादू से सुख और सफलता के रूप में बदल सकता है। बहुत से स्त्री पुरुषों ने इसके अनुसन्धान में अपने जीवन तक को न्योछावर कर दिया है। बहुतों ने यह भी कह दिया है कि भेद हमको मिल गया है। और यहां देखो, वहां देखो इत्यादि वाक्यों को सुनकर बहुत से मनुष्यों ने पाने की आशा से उनका पीछा किया; परन्तु अन्त में जब खाली हाथ लौटना पड़ा तो बड़े ही हताश हुए। और उनका दिल एकदम गिर गया उन्होंने इसको किसी मनचले की गद्द समझ कर पता लगाना छोड़ दिया और यह सोच लिया कि पारस पथरी कोई वस्तु नहीं है। सबसे बड़ी भूल इसमें यह हुई है कि लोगों ने पारसपथरी को कोई बाह्य पदार्थ समझ लिया उनका ख़्याल था कि यह कोई स्थूल पदार्थ होगा जिसको हम देख सकते हैं, स्पर्श कर सकते हैं और अपने साथ ले तो [ २८ ] जा सकता है। किसी किसी ने यह समझा कि यह कोई शक्ति है जिसके साथ मनुष्य का हृदय या मन संयुक्त होने को आवश्यकता है। यों तो मनुष्य किसी बात की खोज करे तो वह ऐसे मनुष्य अवश्य पाएगा जो कि उसकी इच्छा को पूरा करने के लिए तत्पर होंगे। जैसे गवांर लोगों को जादूगर बहकाकर यह कह देते हैं कि यदि तुम इतना सोना लादो तो हम तुमको सोना बनाने की तरकीब बता दें। उन भोले मनुष्यों की समझ में यह नहीं आता कि यदि यह सोना बना सकता है तो हमारे सोने की इच्छा क्यों करता है। ऐसे ही मनुष्य धर्म गुरु बन करके लोगों को ठगा करते हैं, उनको स्वयं रास्ते का पता नहीं, दूसरों को क्या बतावैंगे।

पारस पथरी ही एक ऐसी चीज़ है जो लोहे का सोना बना सकती है; परंतु वह अपने में ही है किसी बाहरी पदार्थ में नहीं। विचार-शक्ति के बाबत कई बार लिखा जा चुका है; परंतु फिर भी हमें यही मालूम होता है कि हमने अभी तक उसके बावत कुछ भी नहीं लिखा है और न हमने इस अद्भुत विषय के ऊपर बड़े जोर शोर से कुछ भी विवेचन किया है जब हम देखते हैं कि यह अद्भुत शक्ति सबके पास है, परंतु इसके अस्तित्व का हमको बिल्कुल भी ज्ञान नहीं। हम बार बार बतलाना चाहते हैं और आवश्यकता पड़ने पर यह भी कह देना चाहते हैं कि अब तुम इस विनश्वर संसार में उसको तलाश करना छोड़ दो और जान लो कि वह वस्तु जिसकी कि तुम खोज में हो, पहले से ही तुम्हारे पास मौजूद है। वह तुम्हारी विचार शक्ति में है। "जैसा मनुष्य विचारता है वैसा ही हो जाता है।" [ २९ ]अब यह बात हमें अच्छी तरह समझ लेने दो कि जो कुछ है और जिस अवस्था में है वह सब अपने विचारों के कारण है। ऐसे ही विचार करते करते हम पारस पथरी को भी प्राप्त कर सकते हैं।

प्रत्येक नवीन शब्द या वस्तु का मूल उत्पादक विचार है। प्रत्येक वस्तु जो तुम अपने पास देखते हो वह विचार का ही फल है। कारीगर के विचार का फल घर है। पहले उसके दिमाग में घर का चित्र बना होगा। बन के रक्षक के मन में भी पहिले जंगल के बाबत विचार उठा होगा। इसी प्रकार माली के दिल में भी पहले बाग़ के बाबत विचार उठा होगा कि बगीचे में सुन्दर फल फूल उत्तम सड़कें और अच्छे चश्मे होने चाहिए। यदि हम उन चीज़ों के विषय में विचार करें जो कि हमारे प्रयोग में आती हैं जैसे कपड़ा जो हम पहिनते हैं और मेज कुर्सी जो हमारे काम में आती हैं क्या यह सब किसी दरजी या बढ़ई के मन ने नहीं गढ़ी हैं। हमें यही मालूम देता है कि उनके बाबत भी पहले नवीन विचार उठा होगा, तब कहीं वह वस्तु बनी होगी। पहले मन रूपी नेत्र के सामने प्रत्येक वस्तु का ठीक ठीक ढांचा खिंच जाता है बाद को वह वैसी ही देखने में आती है। यह सब तो तुम मानने के लिए तैयार हो परंतु यह तो बताओ कि जीवन की बुरी दशा, भय, दुःख, निर्धनता तथा जर्जरित शरीरों का क्या कारण है। ये भी सब विचारानुसार हैं। ये सब हमारे लगातार विचारों का फल है हमें यह बात भली भांति ज्ञात [ ३० ] है कि बहुत से मनुष्य भयानक विचार के साथ जीवन व्यतीत करते रहें कि जिससे उनके शरीर निर्बल और कमज़ोर देखे जाते हैं। वर्षा का डर कि कहीं हम भींग न जाँए और जुकाम हो जाए। हवा का भी डर कि यदि यह पूर्व से चली तो ठन्डी होगी, यदि यह उत्तर से बही तो दुःखदाई होगी, यदि दक्षिण से चली तो शक्ति प्रवल कर देगी और यदि यह पश्चिम से बही तो निश्चय से पानी लाएगी। यदि सूर्यदेव का प्रकाश हुआ तो परदे और चिकें पड़ने लगी कि कहीं धूप न आ जाए। वे इस विविधा में पड़े रहते हैं कि यह चीज़ खाएँ या वह जिससे शरीर को बाधा न पहुंचे। उन्हें व्यायाम तथा आराम करने का भी भय लगा हुआ था कि ऐसा न हो कि कहीं इनकी कमी या ज्यादती से हानि पहुंच जाए। इसी प्रकार के कमजोर और लाचार विचारों के कारण जो कि उनके दिमाग़ में दिन प्रति दिन और साल दर साल उठते रहे, उनके शरीर कमजोर और क्षीण हो गए और वेकुरूप भी हो गये जिससे मनुष्य डरता है वही आगे आता है। शोक है उन मनुष्यों के जीवन पर जो उसको भय के साथ प्रतीत करते हैं।

यदि मनुष्य अच्छे और शुभ विचार करें तो उनकी दशा बहुत ही शीघ्र बदल सकती है। यही नियम सबके साथ लागू हो सकता है। स्त्री पुरुष निरन्तर निर्धनता का विचार किया करते हैं, उसी के बाबत बातचीत किया करते हैं और वैसे ही कार्य करते हैं इसी लिए निर्धनता उनको आ दबाती है। उनके घर में अपना विश्राम कर लेती है। कुछ मनुष्य बुरे स्वास्थ्य [ ३१ ] का निरन्तर विचार किया करते हैं और दुख वा क्लेश के विषय में बात चीत किया करते हैं, कभी शिर के दर्द को शिकायत कभी बुखार की किया करते हैं नाड़ी कुछ कम चलती है, हाथ पैरों में गर्मी है। यहां तक कि धीरे धीरे वे एक दिन महा रोगों के शिकार बन जाते हैं। उस समय उन्हें सहानुभूति की ढूंढ होती है और पूछा करते हैं, भाई क्या करें कुछ ईश्वर हमसे रुष्ट है, हम बड़े दुख में पड़े हैं। मित्रों से सहायता चाहने की इच्छा रखते हैं। उनके ऊपर दया और सहानुभूति दिखलाना हमारा कर्तव्य है उनके मन की बुरी स्थिति उनको दया का पात्र बनाती है।

परन्तु मनुष्यों को कौन सचेत करे और उनको विचारवान बनावे। जो वक्ता या लेखक होते हैं उन्हें इस बात पर विचार करना चाहिए कि मनुष्य अपने पुराने रीति को क्यों तोड़ सकता है। उनके हृदयों को उदार और विशाल बना देवें कि वे उस सत्य को ग्रहण करें जो कि अपने अनुभव और अपने जीवन ने दिखाया है कि विचार में बड़ी शक्ति है। यह प्रत्येक बालक, युवा और वृद्ध मनुष्य में पाई जाती है और जो चाहे अभीष्ट के साधन में लगाई जा सकती है। प्रत्येक मनुष्य की विचार शक्ति उसी की है और उसका फल भी वही मनुष्य भोगता है उसको दूसरा व्यक्ति न रोक सकता है और न बिगाड़ सकता है।

मेरे प्रिय पाठको। चाहे तुम कोई हो और किसी स्थिति में भी हो, किन्तु पारस तुम्हारे पास है। तुम आज ही से अपने जीवन, मन, शरीर और परस्थिति को सुधारना प्रारम्भ [ ३२ ] कर दो तो धीरे धीरे निश्चय से तुम्हारा जीवन सुन्दर, सुखद और स्वर्णमय बन जाएगा।

अपने दुःख और क्लेशों से, अपनी मूर्खता से, अपनी बाधाओं से जल्दी बन्धन मुक्त होने की आशा मत करो। जब कि हमने दस, बीस, पचास वर्ष ऐसे जीवन को बनाने में व्यतीत किये जोकि सुन्दर, शांत और सुफल नहीं है। अब यह कैसे आशा हो सकती है कि झटपट परिवर्तन हो जाए। बहुत से बुरे विचारों को मस्तक से निकालना होगा, बहुत कुछ बिगाड़ना होगा तब कहीं जीवन सुधरेगा।

सम्भव है कि कई वर्षों तक तो तुम्हें कुछ भी उन्नति नहीं मालूम हो; किन्तु तुम्हें यह अवश्य ज्ञात होता रहेगा कि कार्य हो रहा है और तुम यह मालुम करोगे कि देर या सबेर हर प्रकार की बाधा और आपत्ति का पहाड़ आप से आप ही दूर हो जाएगा और तुम्हारी अन्तरंग शक्ति के सामने कुछ भी नहीं ठहर सकेगा। जिस अच्छी बात का तुम विचार कर रहे हो और जिसकी प्राप्ति का तुम उपाय कर रहे हो वह तुम्हें अवश्य मिलेगी। इस छोटे से जीवन के लिए अपने विचारों को संकीर्ण मत बनाओ। जो कुछ तुम अभी सोचकर संसार में विचार उत्पन्न कर रहे हो वह आगामी में कितनेही मनुष्यों को काम देगा। आज बोओगे तो कल अवश्य अनाज उत्पन्न होगा।

ईमरसन साहब ने क्या अच्छा कहा है "मैं संसार का अधिपति हूँ सातों तारे और वर्ष मेरे हाथ में है। कैसर की शक्ति, अफलातून को समझ, ईसा का दयामयी हृदय और सेक्सपियर के हृदय की तरंग मेरे में मौजूद है।"