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राबिन्सन-क्रूसो/क्रूसो के उद्धार की पूर्व सूचना

विकिस्रोत से
राबिनसन-क्रूसो
डैनियल डीफो, अनुवादक जनार्दन झा

प्रयाग: इंडियन प्रेस, लिमिटेड, पृष्ठ २०० से – २१५ तक

 

क्रूसो के उद्धार की पूर्व सूचना

स्पेनियर्ड और फ़्राइडे के पिता को रवाना करके हम नित्य ही उनके आने की प्रतीक्षा करने लगे। देखते देखते आठ रोज़ बीत गये तो भी उनके दर्शन न हुए। एक दिन सबेरा हो जाने पर भी मैं बिछौने पर पड़ा रहा। फ़्राइडे दौड़ कर आया और बोला-"वे आ रहे हैं। मैं बिछौने से उछल कर उठ खड़ा हुआ और झट कपड़े पहन कर दौड़ता हुआ बाहर आया। हड़बड़ी में बन्दूक़ लेना भूल गया। बाहर आकर देखा कि एक नाव द्वीप के दक्षिण ओर समुद्र के किनारे लगने का उपक्रम कर रही है। उस तरफ से स्पेनियर्ड के आने की संभावना न थी। मैंने फ़्राइडे के पुकार कर कहा-"अभी सावधानी से छिपे रहा। ये लोग वे नहीं हैं। ये शत्रु हैं या मित्र, यह पहले जान लेना चाहिए। मैंने दूरबीन लेकर सीढ़ी के सहारे पहाड़ की चोटी पर चढ़ कर देखा। यहाँ से करीब ढाई मील पर दक्खिन-पूरब के कोने में एक जहाज़ है जो किनारे से डेढ़ मील के भीतर ही होगा। दूरबीन से साफ़ दिखाई दिया। वह अँगरेज़ी जहाज़ था। उसके साथ जो नाव थी वह अँगरेज़ी ढंग की थी।

जहाज़ तो मेरे देश का मालूम होता है। संभव है उस पर देशवासी हों, और वह बन्धु के द्वारा परिचालित हो। यह सच कर मेरा मन आनन्द और आश्चर्य से डावाँडोल होने लगा। तो भी पूरा विश्वास न होता था। मैंने फिर सोचा, अँगरेजी जहाज़ का मार्ग छोड़ कर इधर आने की क्या जरूरत थी? इसलिए चोर-डकैतों के हाथ में पड़ने की अपेक्षा छिप रहना अच्छा है। हम लोगों के अन्तःकरण से जो इस प्रकार बीच बीच में सावधानी का संकेत होता है, उसे अग्राह्य न करना चाहिए। यह एक अदृश्य शक्ति की सावधान वाणी है जो हम लोगों के भले के लिए उद्भत होती है। उस अदृश्य वाणी का पालन करने से ही मेरी रक्षा हुई है, नहीं तो न मालूम मुझे कैसे कैसे सङ्कट झेलने पड़ते। नौका धीरे धीरे आकर ठहरने के लिए घाट खोज रही है। नाविकगण खाड़ी तक जहाज़ को नहीं लाये, उन्होंने समुद्र के किनारे ही जहाज़ लगाया। खाड़ी की ओर न कर उन लोगों ने हमारे हक में अच्छा ही किया। नहीं तो हमारा पता पाकर वे लोग हमारा सर्वस्व लूट ले जाते। जब वे नाव से उतर कर किनारे आये तब स्पष्ट देख पड़ा कि वे अँगरेज़ हैं। कुल ग्यारह आदमी थे। उनमें तीन मनुष्य अस्त्र-रहित थे। ऐसा मालूम हुआ, जैसे वे बन्दी हो। उन तीनों में एक व्यक्ति को अनेक प्रकार से विनय की मुद्रा करते देखा; अन्य दो व्यक्ति भी विनती करते थे, किन्तु वे दोनों प्रथम व्यक्ति की भाँति अधीर न थे। इन लोगों को देख कर मैं कुछ निश्चय न कर सका। फ्राइडे ने कहा-"साहब, देखिए देखिए, अँगरेज़ लोग भी असभ्यों की भाँति नर-मांस खाते हैं।" मैंने कहा—नहीं फ़्राइडे, तुम कभी ऐसा खयाल न करो।

फ़्राइडे–"नहीं, वे उन क़ैदियों के ज़रूर खायँगे!" मैं-नहीं, नहीं, तुम क्या समझो। यह हो सकता है कि वे इन तीनों के मार डालें पर खायँगे नहीं, यह सच जानो।

असल मामले को समझ न सकने पर भी किसी क्षण में उन तीनों की मृत्यु देखने के भय से मेरा दिल धड़क रहा। था। एक बार एक व्यक्ति के ऊपर की ओर तलवार उठाते देख मेरा लोहू सर्द हो गया। मैं सोचने लगा कि इस समय यदि स्पेनियर्ड और फ्राइडे के बाप यहाँ रहते तो अच्छा होता। फिर देखा कि वे लोग तीनों बन्दियों को छोड़ कर टापू देखने के लिए भिन्न भिन्न दिशा में चले गये। तीनों बन्दी हताश हो कर वहीं बैठ गये। इन लोगों की दशा देख कर मुझे इस द्वीप में आने के प्रथम दिन की अवस्था का स्मरण हो गया। जैसे मैं नहीं जानता था कि मुझ पर बिना कुछ प्रकट किये विधाता मेरे लिए कैसा क्या इन्तजाम करते हैं वैसे ही दुख के सारे ये बेचारे भी नहीं जानते कि उन लोगों के लिए अचिन्तित भाव से ईश्वर मेरे द्वारा रक्षा का उपाय कर रहे हैं। हम लोग इसी तरह भविष्य के अन्धकार-मय पथ में बिना देखे-सुने विधाता के मङ्गल-विधान में सन्देह करते हैं और अविश्वास के कारण हताश बने रहते हैं।

ठीक ज्वार आने पर वे लोग किनारे आये और बेखबर हो कर टापू देखने की इच्छा से इधर उधर घूमने लगे। अभी घुम ही रहे थे कि इतने में पानी घट जाने से उनकी किश्ती सूखे में पड़ी रह गई। उसमें दो आदमी थे किन्तु वे दोनों से गये थे। एक आदमी एकाएक जाग उठा और नाव के सूखे में देख भैचक सा हो रहा। फिर सँभल कर उसने भ्रमणकारियेां को खुब जोर से चिल्ला कर पुकारा। थोड़ी ही देर में सभी लौट पड़े। किन्तु वहाँ दल-दल थी और किश्ती खुब भारी थी इससे वे लोग उसे ठेल कर पानी में न ले जा सके। तब हार कर वे लोग फिर घूमने चले गये। मैंने समझा कि अब दस घंटे के पहिले यह किश्ती हिल डोल न सकेगी। तब तक अँधेरा हो आवेगा। इतना समय पाकर मैं युद्ध का सामान ठीक करने लगा। दोपहर के समय सभी धूप से घबरा कर वृक्ष की छाया में लेट कर ऊँघने लगे। केवल वे तीनों बन्दी पेड़ की छाँह में जागते हुए बैठे थे। मैं उनके साथ भेट करने का निश्चय कर के हरवे-हथियारों से लैस हो और फ़्राइडे के साथ ले किले से निकला। विचित्र पोशाक के कारण हम लोगों का चेहरा देखने में बिलकुल भूत का सा था। हम लोगों ने पैरों की आहट बचा कर धीरे धीरे, छिपे तौर से, उनके पास जा कर स्पेनिश भाषा में पूछा-"महाशय, आप लोग कौन हैं?" यह सुन कर वे लेाग चकित हुए और चुपचाप हमारे मुँह की ओर देखने लगे। मैंने देखा कि वे भागने का उपक्रम कर रहे हैं, तब मैंने अँगरेज़ी में कहा-"महाशय, मुझको देख कर आप लोग डरे नहीं, बल्कि आप लोग यह समझे कि एक अप्रार्थित मित्र आप के निकट आया है। उनमें से एक व्यक्ति सम्मान दिखाने के लिए टोपी उतार कर बोला-ज़रूर ही आप ईश्वर-प्रेरित हैं, क्योंकि हम लोगों का साहाय्य करना मनुष्य के सामर्थ्य से बाहर की बात है। मैंने कहा-"आपका कहना ठीक है, सभी मङ्गल कार्य ईश्वर की प्रेरणा से होते हैं। अभी आप यह तो बतावें कि मामला क्या है। यह सुन कर उसकी आँखों से झरझर आँसू गिरने लगे। वह भय से काँपता हुआ बोला—मैं नहीं जानता कि मैं देवता, गन्धर्व या मनुष्य किसके साथ बातें कर रहा हूँ।

मैं-आप भय न करें। भगवान् देवता या गन्धर्व किसी को भेजते ते उनका लिवास और रूप-रङ्ग हम से कहीं अच्छा दिखाई देता। मैं आदमी हूँ, अँगरेज़ हूँ और आप लोगों की सहायता करने की इच्छा से आया हूँ। कहिए, क्या समाचार है? वह–हम लोगों का मुख़्तसर हाल यही है कि मैं जहाज़ का कप्तान हूँ। नाविक गण विद्रोही होकर मुझको मारने पर उद्यत हुए थे। बहुत कहने-सुनने और विनती करने पर उन लोगों ने इस निर्जन द्वीप में हम लोगों को छोड़कर चले जाने का विचार किया है। इनमें एक मेरा मेट है और एक नोकारोही है।

मैं-उन अत्याचारियों के पास बन्दूक़ें हैं?

कप्तान-हाँ, दो बन्दूक़ें हैं। वे जहाज़ में रक्खी हैं।

मैं–तो आप लेाग निश्चिन्त रहिए। मैं अभी उनका नाश करूँगा या हो सकेगा तो उन्हें बन्दी करूँगा।

कप्तान–"उनमें दो मनुष्य उस मण्डली के मुखिया हैं, उन को पकड़ लेने से और लोग आप ही वशीभूत होंगे।" वे लोग कहीं हम को देख न लें, इसलिए कप्तान आदि तीनों को साथ ले मैं अपने किले के सामने वाले उपवन में जा छिपा। तब मैंने फिर कप्तान से कहा-देखिए महाशय, यदि आप लोग दो शर्ते मंजूर करें तो मैं आप लोगों के बचाने का उपाय कर सकता हूँ।

कप्तान ने मेरा मतलब समझ कर कहा–यदि आप जहाज़ पर क़ब्ज़ा करलें तो वह आप अपना ही समझिए। यदि यह नहीं तो हम लोगों को आप अपनी आज्ञा के वशवर्ती समझें। अन्य दो व्यक्तियों ने भी कप्तान की इस बात पर ज़ोर दिया।

मैंने कहा-मेरी दो शर्तें यही हैं कि जब तक आप लोग मेरे इस टापू में रहें, मेरे अधीन होकर रहें और मेरी आज्ञा के अनुसार चलें। कभी विरुद्धाचारण न करें। कोई काम आ पड़ने पर मैं अस्त्र दूँ तो काम हो जाने पर फिर वह मुझे लौटा दें और जहाज़ अधिकार में आ जाने पर मुझको तथा मेरे भृत्य को बिना कुछ भाड़ा लिये इंगलैंड पहुँचा दें।

कप्तान बोला-मैं जितने दिन जीवित रहूँगा आपकी आज्ञा के अधीन रहूँगा।

तब मैंने कहा-"अच्छा, यह लीजिए तीन बन्दूक़ें और गोली-बारूद। अच्छा यह बतलाइए कि अब क्या करना होगा?" उन्होंने कृतज्ञता प्रकट कर मेरे ही ऊपर सम्पूर्ण भार सौंपा। मैंने कहा, वे लोग सोये हैं, चलो अभी गोली से उन को महानिद्रा के अधिकारी बना दें। किन्तु कप्तान ने इसमें अपना उत्साह नहीं दिखाया। बिना मारे ही यदि काम निकल जाय तो वैसा ही करना ठीक होगा। यही उनकी राय थी। तब मैंने उन्हीं को आगे जाने की आज्ञा दी और उनसे कह दिया कि जो आप अच्छा समझें, करें।

इस तरह की बात-चीत होही रही थी कि इतने में उन सबों में कई मनुष्य जाग उठे और हम लोगों ने दूर से देखा कि दो आदमी उठ खड़े हुए। मैंने कप्तान से पूछा, "उनमें विद्रोहियों का सार है कि नहीं।" उसने कहा-नहीं।

मैं-"अच्छा, तो उन्हें जाने दो। ईश्वर ने उन्हें बचाने के लिए पहले ही जगा दिया है। किन्तु असल अपराधी बच जाय तो यह तुम्हारा दोष है।" इस बात से उत्तेजित हो कर वे तीनों मनुष्य बन्दूक़, तलवार और पिस्तौल ले कर बाहर निकले। कप्तान के दोनों साथी आगे बढ़ कर चिल्लाने लगे। नाविकों में एक व्यक्ति जागता था, वह पीछे की ओर देख कर साथियों को चिल्ला कर पुकारने लगा। किन्तु जिस घड़ी उसने पुकारा उसी घड़ी कप्तान के दोनों साथियों ने बन्दूक़ें दाग दीं। एक तो तत्काल मर गया, और दूसरा अत्यन्त आहत हो गया। वह खुब ज़ोर से चिल्ला कर साथियों को पुकारने लगा। कप्तान ने आगे बढ़ कर कहा, "अब साथियों को न पुकार कर भगवान् को पुकार जिससे तेरा कल्याण हो। अब तुझे समय नहीं है।" यह कह कर उन्होंने बन्दूक़ के कुन्दे से उसे ऐसा मारा कि वह गिर पड़ा और कुछ न बोला। वहाँ तीन आदमी और थे, उनमें एक आदमी कुछ घायल हो गया था। मेरे वहाँ पहुँच जाने पर वे लोग अपने के निरुपाय देख दयाभिक्षा माँगने लगे। कप्तान ने कहा–यदि तुम लोग मेरे विश्वासी और अनुगत होकर रहने की प्रतिज्ञा करो ते मैं तुम लोगों का अपराध क्षमा कर सकता हूँ। उन लोगों ने अपने किये अनुचित कर्म के लिए अनुताप कर के भविष्य में भलमनसाहत के साथ रहने की शपथ की। तब हम लोगों ने उनकी जान बख्श दी। पर अभी उन के हाथ-पैर बाँध रखने का मैंने आदेश किया।

हम लोग जब इधर ये काम कर रहे थे तब फ़्राइडे और कप्तान का मेट जा कर डोंगी का पाल, पतवार आदि सभी वस्तुएँ उठा कर ले आये। प्रतिपक्षियों के तीन मनुष्य बन्दूकों की आवाज़ सुन कर धीरे धीरे हम लोगों के पास आये। यहाँ कप्तान को जयी देख कर उन लोगों ने आप ही बन्दी होना स्वीकार किया।

अब मुझ से कप्तान का परिचय होने लगा। पहले मैंने अपने जीवन का समस्त इतिहास सुनाया। उसने विस्मित हो कर आदि से अन्त तक मनोयोगपूर्वक सुना और मेरा इतिहास उत्तरोत्तर अद्भुत घटना से भरा हुआ जान कर उसका हृदय द्रवित हो उठा। उसकी आँखों से आँसू बह चले। वह कुछ बोल न सका। तब मैं उन सबों को अपने घर ले आया और जो कुछ मेरे पास था उससे उन लोगों का आतिथ्य-सत्कार किया। फिर अपना घर-द्वार खेती बारी आदि उन्हें दिखलाया।

कप्तान मेरे किले और किले के सामने की कृत्रिम उपवाटिका की प्रशंसा करने लगा। मैंने उससे कहा, मेरा एक और विनोद-अस्थान है जो पीछे दिखलाऊँगा। अभी जहाज़ के दखल करने का उपाय ठीक करना चाहिए। कप्तान ने इसे स्वीकार किया। परन्तु उपाय क्या है? जहाज़ पर अब भी छब्बीस विद्रोही हैं। इँगलैंड के कानून के अनुसार विद्रोहियों के लिए प्राणदण्ड निर्धारित था। वे विद्रोही हैं, एक तो इसलिये दूसरे प्राणों के भय से वे लोग प्राणपण से युद्ध करेंगे। कारण यह कि हम लोगों की विजय होने पर अवश्य ही उनकी मृत्यु होगी। हम लोग थोड़े से श्रादमी उन लोगों के साथ युद्ध कर के कैसे विजय प्राप्त कर सकते हैं?

कप्तान की यह बात सुन कर मैंने यह उपाय सोचा कि किसी तरह जहाज़ के लोगों को भुला कर टापू में ले आवे और उन्हें गिरफ़्तार करें। शायद वे लोग अपने साथियों के पाने में विलम्ब देख कर उन्हें ढूँढ़ने आवेंगे, पर अब वे अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर ही आवेंगे। जो हो, इस समय सूखे में जो नाव पड़ी है उसे बेकार कर देना चाहिए। यह स्थिर करके हम लोगों ने नाव में अस्त्र शस्त्र, गोली-बारूद आदि जो कुछ पाया निकाल लिया और उस के पेंदे में छेद कर दिये। आशा न थी कि हम लोग जहाज़ पर दख़ल कर सकेंगे किन्तु उन लोगों के जहाज़ ले कर चले जाने पर हम लोग इस बोट की मरम्मत करके स्पेनियर्ड लोगों से जाकर मिल तो सकेंगे। यही बहुत है। हम लोग जब सारी बातें सोच रहे थे तब जहाज़ के लोग बन्दूक की आवाज़ करके और पताका हिला कर नाव को बुलाने लगे। बार बार बन्दूक की आवाज़ करने पर भी जब उन्होंने देखा कि नाव नहीं हिली तब जहाज़ से एक और डोंगी उतार कर उस पर कई एक नाविक सवार हो किनारे की ओर आने लगे। मैंने दूरबीन लगा कर देखा, दस ग्यारह आदमी बन्दूक़ें लिये चले आ रहे हैं।

कप्तान कहने लगा कि इतने आदमियों के साथ हम लोग कैसे भिड़ सकेंगे। मैंने हँस कर कहा-"हम लोगों के सदृश अवस्थापन्न लोगों को फिर भय क्या? जीना-मरना दोनों बराबर। युद्ध का भार मुझे सौंप कर तुम निश्चिन्त रहो, वे लोग अभी तो मेरे बन्दी हुए ही जा रहे हैं। मेरे इस उत्साह-वाक्य से कप्तान प्रसन्न और साहसी हो उठा।

नाव को समुद्र-तट के समीप आते देख मैंने बन्दियों को अपनी गुफा में भेज दिया। फ़्राइडे ने उन लोगों को खाद्य और रोशनी देकर समझा दिया कि यदि तुम लोग भागने की चेष्टा न करके चुपचाप रहोगे तो दो-तीन दिन के बाद छोड़ दिये जाओगे; नहीं तो प्राणदण्ड होगा। इस आशातीत सदय व्यवहार से वे लोग सन्तुष्ट होगये। किन्तु उन लोगों ने यह न जाना कि गुफा के द्वार पर फ़्राइडे निगरानी के लिए नहीं रहा।

कप्तान की सिफ़ारिश और उनकी प्रतिज्ञा पर विश्वास करके देश बन्दियों को स्वाधीनता देकर हम लोगों ने अपने दल में ले लिया। अब हम सात आदमी हथियारबन्द हुए (मैं, फ़्राइडे, तीन आदमियों सहित कप्तान, और दो बन्धन-मुक्त बन्दी)। इससे पूरा भरोसा हुआ कि हम लोग अब दस आदमियों का सामना कर सकते हैं। यदि कप्तान का यह कहना ठीक हुआ कि उन दस नाविकों में तीन चार बिलकुल निर्बल हैं तब तो कोई बात ही नहीं।

नाव किनारे लगते ही वे लोग नाव को ऊपर खींच लाये। यह देख कर मैं खुश हुआ। वे लोग उतरते ही दौड़ कर पहली नाव के पास गये। नाव की समस्त वस्तुओं को अपसारित और उसके पेंदे में एक बड़ा सा छेद देख कर वे अवाक् हो रहे। कुछ देर खड़े हो कर उन लोगों ने बहुत कुछ तर्क-वितर्क किया। इसके बाद उन लोगों ने दो-तीन बार खूब उच्चस्वर से अपने साथियों को पुकारा किन्तु उससे कुछ फल न हुआ। तब उन लोगों ने एक साथ बन्दूकों की आवाज़ की जिनके शब्द से सारा वन प्रतिध्वनित हो उठा। पर इससे भी किसी का कुछ पता न लगा। तब उन लोगों के आश्चर्य की सीमा न रही। सभी ने निश्चय किया कि साथी मारे गये। तब उन लोगों ने जहाज़ पर लौट जाने का उपक्रम किया। नाव को पानी में ले जाकर सभी सवार हुए। यह देख कर हम लोग हताश हो गये। मैंने सोचा कि इस दफझे ये लोग जहाज़ पर जाते ही जहाज़ खोल कर चल देंगे। किन्तु वे लोग थोड़ी दूर जाकर न मालूम फिर क्या सोच कर लौट आये। इस दफ़े सात आदमी नाव से उतर कर ऊपर आये और तीन आदमी नाव की हिफ़ाज़त के लिए नाव में रहे। यह देख कर भी हम लोग निराश हुए। क्योंकि नाव को अधिकार में न कर सकने पर सभी प्रयत्न व्यर्थ होगा। वे लोग जहाज़ पर जाकर खबर देंगे और खबर पाते ही जहाज़ चल देगा। तो भी हम लोग सुयोग की अपेक्षा करते रहे । सात आदमियों के किनारे पर उतार कर नाव के माँझियो ने पानी में नाव ले जाकर लंगर डाल दिया। हम लोग एकाएक नाव पर आक्र मण करें इसकी भी अब संभावना न रही। जो लोग किनारे उतरे थे वे एक साथ आगे-पीछे होकर आने लगे। क्रमशः वे लोग उसी पहाड़ पर चढ़ने लगे जिसके नीचे मेरा घर था। के हम लोगों को नहीं देखते थे किन्तु हम लोग उन्हें अच्छी तरह देख रहे थे। वे लोग ज़रा और हमारे नज़दीक आ जाते तो बड़ा अच्छा होता। हम लोग उन पर गोली चला सकते या दूर जाते तो भी अच्छा होता। हम लोग वहाँ से बाहर निकल जाते।

धीरे धीरे वे लोग पर्वत की चोटी पर चढ़ गये। वहाँ से वन और उपत्यका बहुत दूर तक देख पड़ती थी। वे लोग उच्चस्वर से पुकारते पुकारते थक कर चुप हो रहे, पर किसी तरफ़ से कुछ उत्तर न आया। वे लोग और ऊपर जाने का साहस न करके एक दरख्त के नीचे बैठ कर आपस में सलाह करने लगे। वे लोग यदि से रहते तो हम, उनके संगियों की भाँति, उन्हें भी सहज ही में वश में कर लेते किन्तु वे लोग विपत्ति के भय से जागते ही रहे। क्या करना चाहिए? कुछ स्थिर न करके हम लोग चुपचाप देखने लगे।

आख़िर वे लोग एकाएक उठ खड़े हुए और नाव की ओर चले। उन लोगों ने साथियेां का अन्वेषण छोड़कर अब जहाज़ पर जाना ही स्थिर किया। यह देखकर मेरा जो सूख गया। हठात् उन लोगों को लौटाने का एक उपाय सूझा। खाड़ी के पास जाकर खूब जोर से चिल्लाने के लिए मैंने फ़्राइडे और मेट को कहा। इसके बाद नाविकगण यदि उस शब्द की टोह में इस तरफ़ आवें तो उसी तरह चिल्लाते हुए दूर निकल जायँगे और उन लोगों के चक्कर में डालकर फिर मेरे पास लौट आगे नाविक लोग नाव पर चढ़ने जा रहे हैं, ऐसे समय फ़्राइडे और मेट ने चिल्ला कर उन लोगों को पुकारा। उन लोगों ने सुन कर उत्तर दिया और शब्द की ओर लक्ष्य करके दौड़े। कुछ देर में खाड़ी के पास पहुँचे। पानी में तैर कर पार होने का साहस न कर के उन लोगों ने पार उतार देने के लिए माँझियों को पुकार कर नाव मँगाई। माँझियों ने खाड़ी में नाव लाकर उन लोगों को पार उतार दिया और नाव को एक पेड़ के तने से बाँध रक्खा। इस दफ़े नाव में सिर्फ दो आदमी रहे। मैं तो ऐसा चाहता ही था। मैंने कप्तान आदि सब को साथ ले चुपके से जाकर नाव के दोनों मनुष्यों को गिरफ़्तार कर लिया। ये उन्हीं जाहिलों के दल के थे। इन्होंने सहज ही में मेरी अधीनता स्वीकार की और हम लोगों के साथ मिल गये।

इधर फ़्राइडे और मेट नाविकों को पुकार कर एक वन से दूसरे वन में घुमा-फिराकर ले जाने लगे। आखिर उन लोगों को हैरान कर के ऐसे घने जंगल में ले जा कर छोड़ दिया कि सन्ध्या होने के पहले नाव पर उन लोगों के लौट आने की संभावना न रही।

अब हम लोग उन के आने की प्रतीक्षा करने लगे। फ़्राइडे लौट कर हम लोगों के साथ आ मिला। कई घंटों के बाद वे नाविक भी थके-माँदे परस्पर बकझक करते शेरगुल मचाते नाव के पास लौट आये। जब उन्हों ने देखा कि नाव सूखे में लगी है और नाव के देने रक्षक ग़ायब हैं तब तो उन के भय और विस्मय की सीमा न रही। वे परस्पर तर्क वितर्क करने लगे-हम लोग न मालूम कैसे मायामय जादूगर के द्वीप में आ गये हैं? क्या हम लोग भी एक एक कर भूत-प्रेतों के हाथ में पड़ कर मारे जायँगे? इस प्रकार विलाप कर सभी आर्तनाद करने लगे। फिर उन्होंने नौकारक्षक देानों साथियों का नाम ले ले कर बार बार पुकारा, किन्तु कहीं से कुछ उत्तर न मिला। तब वे लोग पागल की तरह कभी दौड़ने, कभी बैठने और कभी हाथ मलने लगे; कभी क्रोध से अपने सिर के बाल नोचने लगे। मेरे अनुयायी इसी समय उन लोगों पर आक्रमण करने के लिए व्यग्र हो उठे किन्तु मैं इसकी अपेक्षा भी विशेष सुविधा खोज रहा था। मैं चाहता था जिसमें मेरे दल का कोई न मरे और उन के तरफ़ भी कम आदमी मरें। हम लोग सर्वाङ्ग ढक कर धीरे धीरे कुछ दूर और आगे बढ़े, किन्तु फ़्राइडे और कप्तान घुटनों के बल से एक दम उनके पास चले गये।

जहाज़ के जो कर्मचारी मुसाफिरों को जहाज़ पर चढ़ाते और पार उतारते हैं वे सब से बढ़ कर बदमाश और सब फ़सादों की जड़ होते हैं तथा अपने को जहाज़ का मालिक समझ बैठते हैं। किन्तु इस समय सब की अपेक्षा वही अधिक कातर और भयभीत हो गये थे। उनके कुछ कहते ही कप्तान उन पर गोली चलाने के लिए व्यग्र होने लगा। वे लोग ज्योंही कुछ समीप आये त्योंही कप्तान और फ़्राइडे कूद कर आगे जा खड़े हुए और उन पर गोली चला दी। गोली लगते ही जहाज़ का नायब कप्तान धरती पर लोट गया। दूसरा भी गिरा, पर तत्काल मरा नहीं। प्रायः दो घंटे तक जीता रहा। तीसरा आदमी भाग गया। तब मैं अपने दल-बल के साथ आगे बढ़ा। मैं सेनापति, फ़्राइडे मेरा सहकारी सेनाध्यक्ष और कप्तान आदि मेरे सैनिक थे। हम लोगों ने अँधेरे में नाव के पास जाकर उन लोगों से आत्मसमर्पण करने को कहा। उन लोगों ने भी झट अस्त्र त्याग कर के प्राण-भिक्षा चाही। कप्तान ने कहा-"तुम लोगों का प्राण लेना या न लेना हमारे सेना गति की इच्छा के अधीन है।" हम लोगों ने उनके हाथ-पैर बाँध कर अपने क़ब्ज़े में कर लिया।

अब हम लोगों को नाव की मरम्मत करके जहाज़ पर आक्रमण करना बाक़ी रहा। मेरे मन में आशा होने लगी कि अब मेरे उद्धार का समय समीप है। मैंने दूर से कप्तान को पुकारा। एक आदमी ने जाकर कहा, "कप्तान साहब, सर्कार आप को बुलाते हैं।" कप्तान ने झट उत्तर दिया, "तुम हुज़ूर से जा का कह दो कि वह अभी हाज़िर होता है।" यह सुनकर सभी नाविक चुप हो रहे; किसी को ज़ोर से बोलने का साहस नहीं हुआ। उन लोगों ने समझा कि इस द्वीप के स्वामी अपना दलबल ले कर समीप ही कहीं ठहरे हैं। कप्तान को मेरे पास आने का उपक्रम करते देख कर उन लोगों ने कहा-"हम लोगों से बड़ी ग़लती हुई, अब ऐसा काम कभी न करेंगे। आप अपने सेनापति से हम लोगों पर दया करने को कहिये।" कप्तान ने कहा-'मेरे सेनापति बड़े दयालु हैं, इसी से उन्होंने अब तक तुम लोगों को पेड़ से लटका कर फाँसी नहीं दी। वे तुम लोगों को किसी प्रकार का क्लश न देंगे। तुम लोगों को इँगलैंड ले जायँगे, वहाँ क़ानून के अनुसार जो उचित दण्ड होगा दिया जायगा।" वे लोग जानते थे कि आईन के अनुसार इस अपराध का दण्ड फाँसी है। इसलिए उन लोगों ने बिनती कर के कहा-"तो हम लोगों को इसी द्वीप में छोड़ दीजिए, इँगलैंड न ले जाइए।" कप्तान ने कहा-ये बातें सेनापति की इच्छा पर निर्भर हैं। उन लोगों से इस प्रकार बात-चीत कर के कप्तान मेरे पास आया। मैंने उससे जहाज़ दखल करने की बात कही। बन्दियों को दो भागों में बाँट कर जो बदमाश थे उन्हें गुफा के भीतर और जो अल्प-अपराधी थे उन्हें कुञ्जभवन में बन्द कर दिया।

इस विचित्र स्थान में सारी रात कैद रह कर उन लोगों ने यथेष्ट शिक्षा पाई। सबेरे जब कप्तान उन लोगों के पास गया तब वे धरती में गिर कर क्षमा प्रार्थना करने लगे और सेनापति से सिफारिश करने के लिए हाथ जोड़ने लगे। कप्तान ने कहा, "यदि तुम लोग जहाज़ पर दख़ल करने में मदद दोगे तो सेनापति तुम्हारा अपराध क्षमा कर सकते हैं"। इस प्रस्ताव पर वे लोग बड़े आग्रह के साथ सम्मत हुए। तब उनमें जो पाँच व्यक्ति अच्छे थे वे चुन लिये गये और अवशिष्ट व्यक्ति उन लोगों के जामिन-स्वरूप कैदी बना कर रख लिये गये। यदि वे लोग जहाज पर दखल होने में सहायता देंगे तो कैदी छोड़ दिये जायँगे, नहीं तो फाँसी दी जायगी। तब उन लोगों ने समझा कि सेनापति कोई साधारण व्यक्ति नहीं है; वे लोग डरते डरते इस प्रस्ताव पर राजी हो गये।

मैंने कप्तान से कहा, "हम और फ्राइडे जहाज़ पर दखल करने न जायँगे; हम लोग कैदियों के पहरे पर रहेंगे। क्या तुम और सब लोगों को साथ ले जहाज पर आक्रमण करने का साहस कर सकते हो?" कप्तान राजी हो कर युद्धयात्रा की तैयारी करने लगा। फूटी हुई नाव की मरम्मत कर के दो नावें जाने के लिए ठीक की गईं। एक में जहाज के यात्री और चार मनुष्य, दूसरी नाव में कप्तान, मेट और पाँच नाविक सवार हुए। वे लोग आधी रात के समय जहाज़ पर जा पहुँचे। जहाज़ के लोगों ने अन्धकार में समझा कि उनके पक्ष के आदमी लौट आये हैं। कप्तान और मेट ने जहाज पर चढ़ते ही बन्दूक़ के कुन्दे से दूसरे मेट और मिस्त्री को मार कर अपने काबू में कर लिया। इधर कप्तान के साथी नाविकों ने जहाज के डेक के लोगों को बाँध लिया। जो लोग कोठरी में थे वे वहीं बन्दी कर लिये गये। कोठरी के द्वार में बाहर से जंजीर लगा दी गई। इसके बाद वे लोग नीचे उतर गये। नीचे के कमरे में विद्रोही दल का नया कप्तान था। वह शोरगुल सुन कर जाग उठा था और सावधान हो कर दो-तीन आदमियों को साथ ले बन्दूक द्वारा युद्ध करने को तैयार था। मेट को सामने पाते ही गोली मारी। इससे मेट का हाथ टूट गया, और भी दो आदमी घायल हुए, पर कोई मरा नहीं। और लोगों को पुकार कर मेट एकदम नये कप्तान के ऊपर टूट पड़ा और उसके सिर में पिस्तौल दाग दिया। पिस्तौल की गोली उसकी कनपटी छेद कर बाहर निकल गई। वह फिर हिला तक नहीं। तब जहाज के और लोगों ने आप ही वश्यता स्वीकर की। बिना ज़्यादा ख़ून-ख़राबी के जहाज़ पर दख़ल हो गया।