राबिन्सन-क्रूसो/जीवन-वृतान्त के प्रथम अध्याय का उपसंहार

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जीवन-वृतान्त के प्रथम अध्याय का उपसंहार

मैं अब किस मार्ग से इँगलैंड जाऊँ, यही सोचने लगा। यद्यपि जलपथ मेरे भाग्य में वैसा सुखदायी न था फिर भी विशेष रूप से परिचित और सह्य हो गया था। यह सब होने पर भी न मालूम इस दफ़े जल-पथ से जाने को जी क्यों नहीं चाहता था। मैं बार बार जल-थल के सुभीते की बात सोचने [ २२८ ] लगा। पर किसी तरह जलपथ से जाने को मैं राज़ी न हुआ। अन्तःकरण के इङ्गित को सदा मानना चाहिए। मैंने जिन दो जहाज़ों पर जाने की बात ठीक की थी उनमें एक को तो रास्ते ही में किसी लुटेरे जहाज़ ने गिरफ़्तार कर लिया और दूसरा कुछ दूर जाकर टूट गया। यदि मैं इन दोनों में से किसी पर सवार होता तो फिर भारी संकट में पड़ता।

मैंने स्थलमार्ग से ही जाना स्थिर किया। वृद्ध पोर्चुगीज़ कप्तान ने मुझे एक साथी ढूँढ़ दिया। वह लिसबन के एक अँगरेज व्यवसायी का बेटा था। वह भी इँगलैंड जायगा। इसके बाद दो अँगरेज़ और दो पोर्चुगीज़ भी आ मिले। अब हम लोग छः यात्री हुए। साथ में पाँच नौकर थे। सब मिलाकर ग्यारह आदमी हुए। हम लोगों ने अस्त्र-शस्त्रों से लैस हो घोड़े पर सवार हो लिसबन से यात्रा की। एक तो मैं सब से उम्र में बड़ा था, दूसरे साथ दो नौकर थे। इसके सिवा मैैं ही मूलयात्री था, इससे सभी मुझ को कप्तान और सर्दार कहने लगे।

हम लोगों ने मेड्रिड में कई दिन ठहर कर शहर देखा। परन्तु ग्रीष्म बीतने ही पर था यह जान कर हम लोग झट पट वहाँ से रवाना हुए। अक्तूबर के मध्य ही में कहीं कहीं बर्फ़ पड़ने लगी है, यह सुन कर भय से प्राण सूखने लगे। फ्रांस की सीमा तक आते आते हम लोगों ने देखा कि यथार्थ ही पाला पड़ रहा है। मैं उत्कट गरमी के मुल्क में बहुत दिनों तक रह चुका था इससे अब यह जाड़ा असह्य मालूम होने लगा। उँगलियाँ पाले से ठिठुर कर गलने लगीं। फ्राइडे ने बर्फ़ से ढका पहाड़ और ऐसा उत्कट जाड़ा जन्म भर में [ २२९ ] कभी नहीं देखा था। वह भय से काँपने लगा। एक तो मार्ग चलने की थकावट, उस पर जाड़े की शिद्दत! फफोले पर मानो नमक छिड़का गया। रास्ते में अधिक बर्फ पड़ने लगी। जो मार्ग पहले दुर्गम्य था वह अब अगम्य हो गया। ठण्ड कम होने की आशा से हम लोग बीस दिन रास्ते में ठहर गये, किन्तु शीत घटने की कोई सम्भावना न देख कर फिर अग्रसर हुए। सभी कहने लगे कि इस मौसम में इतना जाड़ा कभी नहीं होता था। मैंने समझा, यह सब मेरे ही दुर्भाग्य का फल है। रास्ते में एक पथ-प्रदर्शक से हमारी भेंट हुई। उसने हम लोगों को ऐसे मार्ग से ले जाना स्वीकार किया कि जिस रास्ते में बर्फ न मिलेगी। यदि मिले भी तो वह जम कर ऐसी कठोर हो गई होगी कि उसके ऊपर घोड़े सुख से चल सकेंगे। किन्तु इस रास्ते में बनैले जन्तुओं का भय अधिक है। मैंने उससे कहा-"चौपाये जन्तुओं का उतना भय नहीं, जितना अधिक दुपाये नृशंस मनुष्यों का होता है।" उसने कहा-"रास्ते में चोर-डाकुओं का भय नहीं है। भय केवल हिंस्र जन्तुओं का है। जहाँ तहाँ रास्ते में भेड़िये ज़रूर हैं। इस समय सारा जङ्गल और मैदान बर्फ़ से ढँक जाने के कारण, खाद्य-वस्तु के अभाव से, वे बड़े ख़ूँखार हो रहे हैं।" मैंने कहा,-वे भले ही रास्ते में रहे, हम लोग उनकी परवा नहीं करते। उनको शान्त करने के लिए हम लोगों के पास यथेष्ट अस्त्र-शस्त्र हैं।

१५ वीं नवम्बर को हम लोग उस व्यक्ति के प्रदर्शित पथ से रवाना हुए। रास्ते में बारह मनुष्य और मिले। उनमें कोई फ़्रांसीसी था और कोई स्पेनिश। वे अपने नौकरों सहित हम लोगों के दल में आ मिले। पथ-प्रदर्शक हम लोगों को घुमा [ २३० ] फिरा कर ऐसे मार्ग से ले चला कि पहाड़ को चोटी पर चढ़ने से भी अधिक बर्फ़ न मिली। हम लोग जब पहाड़ की चोटी पर चढ़े तब एक दिन और एक रात बराबर पाला गिरता ही रहा। इससे हम लोग डर गये; किन्तु पथ-प्रदर्शक ने कहा, "डरने की कोई बात नहीं है।" यह सुन कर हम लोगों को कुछ साहस हुआ और तब से बराबर हम लोग पहाड़ के नीचे उतरने लगे। हम लोग उस व्यक्ति के पीछे पीछे उसीके ऊपर भरोसा करके जाने लगे।

एक दिन साँझ होने के कुछ पहले एकाएक तीन बड़े बड़े भेड़िये और उनके पीछे पीछे एक भालू जङ्गल से निकल कर हम लोगों के पीछे पड़ गये। ज़रा सी कसर रह गई थी, नहीं तो वह हिंस्र जन्तु पथ-प्रदर्शक को वहीं खतम कर देता। वह घबरा कर हम लोगों को पुकारने लगा। पिस्तौल निकाल कर उन पर गोली चलाने की भी सुध उसको न रही। पथ प्रदर्शक के पास ही फ़्राइडे था। उसने खूब साहस कर घोड़ा दौड़ा कर भेड़िये को गोली से मार गिराया। भाग्य से ही उस व्यक्ति के समीप फ़्राइडे था इसीसे वह बच गया; दूसरा कोई रहता तो इस तरह साहस कर के भेड़िये का मुकाबला नहीं कर सकता। दूर से गोली मारने में यह भय था कि क्या जाने भेड़िये को लगे या न लगे। जो पथ-प्रदर्शक को ही गोली लग जाती तो मामला चौपट था।

जो हो, हम लोग भेड़िये को देख कर बहुत ही डरे। फ़्राइडे के तमंचे की आवाज़ होते ही जङ्गल के दोनों ओर भेड़ियों का घोर गर्जन और हुंकार होने लगा। वह कठोर शब्द पर्वत की कन्दरा में प्रतिध्वनित हो कर दूना भयङ्कर हो उठा। फ़्राइडे की गोली की चोट खा कर एक भेड़िया वहीं ठंडा हो [ २३१ ] गया और दो भेड़िये भाग कर जङ्गल में जा घुसे। उन के आक्रमण से घोड़े को तो कुछ नुकसान न हुआ किन्तु पथप्रदर्शक के हाथ और घुटनों में ज़ख्म होगया। भेड़िये ने उसको नोच लिया था।

भेड़िये को मार कर फ़्राइडे ने भालू पर आक्रमण किया। हम लोग फ़्राइडे का यह दुःसाहस देख कर डर गये किन्तु उसका विचित्र कौतुक देख कर हम लोग बहुत खुश हुए। भालू बहुत स्थूल और भारी होते हैं, इससे वे सहज ही मनुष्य पर हमला करने का साहस नहीं कर सकते। वह बहुत भूखा न हो तो मनुष्य पर हमला नहीं करता। यदि उसके साथ कुछ छेड़-छाड़ न की जाय और उसकी राह न रोकी जाय तो वह बुरे तौर से पेश न पा कर चुपचाप चला जाता है। किन्तु वह ऐसा हठीला होता है कि जङ्गल के महाराज के लिए भी राह छोड़ कर अलग खड़ा नहीं हो सकता। यदि भालू को देख कर डर लगे तो उसकी ओर न देख कर दबे पाँव दूसरी ओर चला जाना अच्छा है। किन्तु एक जगह खड़े हो कर उसकी ओर ताकने से वह अपने मन में शायद यही समझता है कि यह मेरे साथ गुस्ताख़ी की जाती है तब वह अपनी मर्यादा को बचाने के लिए क्रुद्ध हो कर दुश्मन का पीछा करता है। एक बार किसी तरह चिढ़ जाने पर जब तक वह दुश्मन से बदला नहीं ले लेता तब तक दिन-रात उसके पीछे पीछे घूमता रहता है। हम लोग भालू को देख कर भयभीत हुए। इतना बड़ा भालू कभी नहीं देखा था। किन्तु फ़्राइडे भालू से ज़रा भी न डरा। साहस और उत्साह से उसका चेहरा प्रफुल्लित हो उठा। उसने कहा, "ओ भालू! आओ, आओ, एक बार तुमसे हाथ मिला लूँ।" मैंने उसका यह [ २३२ ] कुव्यवहार देख विस्मित हो कर कहा-"अरे गधे! यह क्या कर रहा है? वह तुझे खा डालेगा।" फ़्राइडे ने कहा-"मुझे न खायगा, मैं ही उसे खाऊँगा। आप लोग ठहर कर तमाशा देखें और हँसें।" फ़्राइडे ने ज़मीन में बैठ कर झटपट बूट उतार कर हलका जूता पहना और अपना घोड़ा मेरे दूसरे नौकर को थमा कर वह एक ही दौड़ में भालू के सामने जा खड़ा हुआ। भालू किसी पर कुछ लक्ष्य न कर के झूमता हुआ चला जा रहा था। फ़्राइडे ने उस को पुकार कर कहा-"ओ सज्जन! कुछ सुनते हो?" यह कह कर उसने पत्थर का टुकड़ा उठा कर भालू के सिर में मारा, किन्तु ढेला मारने से जैसे पत्थर को कुछ नहीं होता वैसे ही पत्थर का टुकड़ा लगने से भालू को भी कुछ न हुआ पर इस आघात स क्रुद्ध हो कर उसने फ़्राइडे का पीछा किया। फ़्राइडे भागा। हम लोग भालू को गोली मारने के लिए तैयार हुए। मैं मन ही मन फ़्राइडे पर बहुत कुढ़ने लगा। भालू अपने मन से चला जा रहा था, यह अभागा उसे छेड़ कर यह क्या अनर्थ बुला लाया। मैंने क्रोध कर के फ़्राइडे से कहा-"अरे गधे! यही तेरे हास्य का अभिनय है? तू वहाँ से हट जा, भालू को गोली से मारने दे।" फ़्राइडे ने कहा, "नहीं, नहीं, अभी इस पर गोली मत चलाइए, मैं आप लोगों को ख़ूब हँसाऊँगा।" भालू एक पग आगे बढ़ता तो फ़्राइडे दो डग पीछे हटता। यो ही हटते हटते वह एक पेड़ के पास आ कर बन्दूक़ को नीचे रख कर पेड़ पर चढ़ गया। भालू भी घोड़े की तरह बड़े वेग से दौड़ कर पेड़ के नीचे पहुँच गया। उसने एक बार बन्दूक को सूँघ कर देखा। इसके बाद वह उतना मोटा ताज़ा बड़ी आसानी से उछल कर पेड़ पर चढ़ गया। यह देख कर [ २३३ ] मैं यह न समझ सका कि फ़्राइडे ने इसमें हँसाने की कौन सी बात सोच रक्खी है, बल्कि यह उसने मूर्खता का काम किया है जो पेड़ पर चढ़ कर अपने भागने का रास्ता भी बन्द कर लिया।

हम लोग घोड़े पर चढ़े हुए पेड़ के नीचे जाकर देखने लगे। फ्राइडे एक डाल की फुनगी पर जा बैठा और भालू डाल के बीच में पहुँच गया। भालू को धीरे धीरे पतली डाल पर आते देख फ़्राइडे ने कहा-'हाँ, चले आओ, इस बार तुम्हें नाच करना सिखलाता हूँ।" यह कह कर वह खूब ज़ोर से डाल हिलाने लगा। तब भालू भी उसके साथ झूलने लगा और थर थर काँपता हुआ पीछे की ओर भागने का उपाय ढूँढने लगा। यह देख कर हम लोग खूब हँसे। भालू को अब अग्रसर होते न देख फ़्राइडे ने शाखा का झकझोरना बन्द किया। फिर वह भालू से कहने लगा, "आओ, आओ, रुक क्यों रहे?" इस प्रकार उसे पुकारने लगा, जैसे वह उसको बात समझता हो। भालू ने उसकी बात सुनी। फ़्राइडे को स्थिर होकर बैठते देख भालू फिर आगे बढ़ चला। तब फ़्राइडे फिर ज़ोर से डाल हिलाने लगा। डाल हिलते ही फिर भालू ठहर गया। पतली डाल पर खड़ा होकर वह काँपने लगा। हम लोग उसकी दशा देख कर हँसने लगे। फ्राइडे ने कहा, "अच्छा, यदि तुम नहीं आते तो मैं ही आता हूँ।" यह कह कर वह शाखा के अग्र-भाग को नवा कर नीचे कूद पड़ा। अपने शत्रु को जाते देख भालू एक बार पीछे की ओर देखता और एक पग पीछे हटता था। इस प्रकार धीरे धीरे नीचे की ओर हटते हटते वह तने के पास आ पहुँचा।। अब वह धरती की ओर देख कर नीचे उतरना ही चाहता था [ २३४ ] कि फ़्राइडे ने उसे, धरती पर पाँव रखने के पहले ही, बन्दूक़ की गोली से मार डाला।

साँझ हो आई। हमारा पथ-प्रदर्शक भेड़िये से अभिभूत होने के कारण कुछ घायल हो गया था। अभी तीन मील रास्ता हम लोगों को और जाना होगा। पर अब भी हम लोग जंगल के भीतर ही हैं। भेड़ियों का गरजना अब भी हृदय को कँपा रहा है। एक भयङ्कर स्थान अब भी हम लोगों को पार करना है। इस अँधेरी रात में उस मार्ग से होकर जाना होगा। वह मार्ग वन के भीतर होकर गया है। उस वन में असंख्य भेड़िये हैं। हम लोग उस वन को पार कर एक बस्ती में पहुँचेंगे और वहीं रह कर रात बितावेगे। हम लोग सूर्यास्त होने के आध घंटा पहले इस जंगल से निकल कर एक मैदान में पहुँचे। किसी वन्य जन्तु ने हम लोगों पर आक्रमण नहीं किया। केवल इतना ही देखा कि बड़े बड़े पाँच भेड़िये छलाँगें मारते हाँफते हुए रास्ते में एक ओर से निकल कर, बाट काट कर, दूसरी ओर चले गये। यह देख कर पथ-प्रदर्शक ने हम लोगों को सावधान होने के लिए कहा। भेड़ियों का झुण्ड बारहा है, ये उन्हीं के अग्र-सूचक हैं। हम लोग अपने अस्त्र-शस्त्रों को ठीक करके चौकन्नी दृष्टि से चारों ओर देखने लगे। कुछ देर तक एक भी जानवर दिखाई न दिया। कुछ और आगे बढ़ कर हम लोगों ने मैदान में जो दृश्य देखा, वह न कभी देखा और न देखेंगे। बारह भेड़िये एक घोड़े को मार कर खा रहे हैं। वे उसके मांस को तो खा चुके हैं, अब हड्डियाँ चाट रहे हैं। हम लोग दूसरी ओर देखते हुए इस तरह जाने लगे मानो उनको देखा ही नहीं। उन्होंने भी हम लोगों पर लक्ष्य न किया। फ़्राइडे उनको गोली मारने के लिए उद्यत [ २३५ ]
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जीवनवृत्तान्त के प्रथम अध्याय का उपसंहार।


हुआ परन्तु मैंने उसे ऐसा करने से रोका। बीच मैदान में जाते न जाते हम लोगों ने भेड़ियों का गर्जना सुना और कुछ ही देर बाद देखा कि डेढ़ सौ भेड़िये का झुण्ड हम लोगों की ओर आ रहा है। हम लोग इसका क्या प्रतीकार करेंगे―यह सोच कर भी कुछ ठीक न कर सकते थे। आख़िर हम लोग क़तार बाँध एक दूसरे से सट कर खड़े हो गये। मैंने सबसे कह दिया कि एक साथ सब बन्दूकें न चला कर एक के बाद दूसरी बन्दूक़ चलाई जाय। इससे यह फ़ायदा होगा कि जब तक और लोग गोली चलावेंगे तब तक दूसरों को बन्दूक़ भरने का अवकाश मिलेगा। इससे बन्दूक़ की आवाज़ लगा- तार जारी रहेगी जिससे संभव है कि भेड़ियों को गतिरुक जाय। हम लोगों की पहली बार की बन्दूक़ें छूटते ही बन्दूक़ों का शब्द और आग की झलक देख कर सभी भेड़िये डर कर खड़े हो रहे। चार मरे और कई एक घायल होकर भागे। मैंने कभी सुना था कि मनुष्यों की चिल्लाहट सुन कर भेड़िया डरता है। इसलिए मैंने सभी को एक साथ ख़ूब ज़ोर से चिल्लाने का परामर्श दिया। यह उपचार एकदम व्यर्थ न हुआ। हम लोगों के चिल्लाते ही भेड़िये मुँँह फेर कर भागने को उद्यत हुए। तब मैंने अपने साथियों के उन पर पीछे से गोली चलाने की आज्ञा दी। पीछे से गोली की चोट खाकर मरते गिरते लड़खड़ाते हुए वे सब जंगल के भीतर जा घुसे। यह अवसर पाकर हम लोग बन्दूक़ें भर कर बड़ी शीघ्र गति से जाने लगे। किन्तु दो चार डग आगे जाते न जाते हम लोगों ने अपनी बाईं ओर के जंगल में वन्य जन्तुओं का भय- ङ्गर चीत्कार सुना। किन्तु वह शब्द हम लोगों के सामने की ओ ओर होता था। हमें लोगों को उधर ही ले जाता था। [ २३६ ]अब दिन नाममात्र को भी न रहा। सूर्यास्त होने पर अन्धकार का साम्राज्य क्रमशः बढ़ चला। यह हम लोगों के पक्ष में कुछ भी सुखकर न था। जितना ही अन्धकार बढ़ने लगा उतना ही अधिक भेड़ियों का कोलाहल होने लगा। इतने में क्या देखता हूँ कि भेड़ियों का एक झुण्ड हम लोगों की बाँई ओर, एक झुण्ड सामने और एक झुण्ड पीछे आकर हम लोगों को घेर कर खड़ा हुआ। किन्तु उन सब को आक्रमण की चेष्टा करते न देख, हम लोगों से जहाँ तक हो सका, हम जल्दी जल्दी आगे बढ़ चले। किन्तु रास्ता नीचा ऊँचा होने के कारण शीघ्रता करने पर भी रास्ता बहुत कम कटता था। इस प्रकार क्रमशः आगे बढ़ते बढ़ते हम लोग एक जंगल के प्रवेश-पथ में पहुँचे। इस वन से पार होने पर हम लोगों का आज का सफ़र पूरा होगा और हम लोग एक निर्दिष्ट स्थान में पहुँच जायँगे। यह देख कर हम लोगों को बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि वन के भीतर प्रवेश करने के पथ में कितने ही भेड़िये पहले ही से खड़े हो आगन्तुकों की राह देख रहे हैं। वन के अन्य भाग में अकस्मात् बन्दूक की आवाज़ हुई। आवाज़ होने के कुछ ही देर पीछे हम लोग देखते हैं कि एक ज़ीन-कसा घोड़ा वायु-वेग से दौड़ा चला आ रहा है और जंगल से बाहर निकल गया। पन्द्रह-सोलह भेड़िये उसका पीछा किये चले आरहे हैं। घोड़ा यद्यपि भेड़ियों से बहुत आगे था तथापि उन के पंजे से निकल भागना उसके लिए असंभव था। भेड़िये के साथ घोड़ा कब तक दौड़ सकता है। बात की बात में भेड़ियों के झुण्ड ने घोड़े को धर दबाया और उसे मार खाया। हम लोगों ने जंगल के भीतर प्रवेश करके और भी भयङ्कर दृश्य देखा। रास्ते में एक घोड़ा और दो मनुष्य मरे पड़े हैं और [ २३७ ] भेड़िये उन्हें फाड़ फाड़ कर खा रहे हैं। एक मनुष्य को सिर से आधे धड़ तक खा चुके हैं! उसके पास एक बन्दूक पड़ी है। कुछ देर पहले शायद इसी शख्स के बन्दूक चलाने की आवाज़ सुन पड़ी थी। यह देख कर भय से हम लोगों के प्राण सूख गये। क्या करना चाहिए, कुछ समझ में न आता था। किन्तु उन हिंस्र-पशुओं ने हम लोगों के कर्तव्य को शीघ्र ही स्थिर कर दिया। उन्होंने शिकार के लोभ से हम लोगों को घेर लिया। उनकी संख्या तीन सौ से कम न होगी। हम लोगों के भाग्य से प्रवेश-मार्ग के पास ही, जंगल के भीतर, एक पेड़ का तना कटा पड़ा था। में अपने छोटे से दल को शीघ्र ही उस विशाल पेड़ की आड़ में ले गया। हम लोगों ने घोड़े से उतर कर एक त्रिभुजाकार व्यूह की रचना की और उसके बीच में घोड़ों को कर लिया। भेड़िये गर्रा गुर्रा कर हम लोगों की ओर दौड़े और जिस पेड़ की आड़ में हम लोग छिपे थे उस पर कूद कूद कर चढ़ने लगे। मैंने अपने साथियों से कह दिया की पूर्ववत् एक के बाद एक बन्दूक़ छोड़ी जाय। पहली ही बेर हम लोगों ने बहुत भेड़िये मार डाले। किन्तु इतने पर भी वे हम लोगों पर भयङ्कर भाव से आक्रमण कर रहे थे। सामने के झुण्ड को जब तक हम मार भगाते थे तब तक पीछे वाला झुण्ड हम लोगों पर हमला करता था। इसलिए हम को आगे-पीछे दोनों ओर लगातार बन्दूक़ों की आवाज़ करनी पड़ी। चार-पाँच बेर की आवाज़ में हम लोगों के हाथ से सत्रह अठारह भेड़िये मरे और इससे दुगुने घायल हुए तो भी वे ऐसे निर्भीक थे कि पीछे न हटे। एक एक बार गोली खा कर क्षण भर खड़े रहते और फिर एकाएक आगे आते थे। तब मैंने अपने दूसरे नौकर से कहा, "तुम इस कटे हुए . [ २३८ ] पेड़ के तने पर बहुत सी बारूद बिछा दो"। वह बारूद बिछाकर ज्यों ही वहाँ से हट आया त्यों ही भेड़ियों का झुंड उस बारूद पर आ गया। जिस काठ पर बारूद रक्खी गई थी उस पर मैंने तुरन्त तमंचे की आवाज़ की। तमंचे की आग का स्पर्श होते ही वह लम्बी बारूद की राशि एक साथ बल उठी। इससे कितने ही भेड़िये झुलस गये, कितने ही भय से उछल कर हम लोगों के व्यूह के भीतर आ पड़े, उन को एक ही पल में हम लोगों ने तितर बितर कर दिया। बाक़ी एकाएक प्रकाश होते देख पीछे की ओर मुड़े। तब मैंने फिर सब को बन्दूक़ मारने का आदेश किया। बन्दूक़ मार कर हम लोग खुब ज़ोर से चीत्कार कर उठे। जितने भेड़िये बच रहे थे सब पूँछ उठा कर भागे। हम लोगों ने साहस करके कुछ दूर तक उनका पीछा किया और कितनों ही को तलवार से दो टुकड़े कर डाला। उन भेड़ियों का आर्तनाद सुन कर और सब अपनी जान ले ले कर भागे।

हम लोगों ने अब की बार कोई पचास साठ भेड़िये मारे। दिन होता तो और मारते। मार्ग निष्कण्टक होते ही हम लोग वहाँ से रवाना हुए। हम लोगों को करीब एक मील रास्ता और तय करना था। जाते जाते हम लोगों ने कई बार भेड़ियों का गरजना सुना। रास्ते में कितनी ही विभीषिकायें देखीं। एक घंटे के बाद हम लोग एक शहर में पहुँचे। वहाँ के लोग भी भेड़ियों और भालुओं के भय से त्रस्त होकर अस्त्र-शस्त्र ले दिन-रात चिल्ला चिल्ला कर शहर का पहरा देते थे। वहाँ भी कल्याण नहीं, निश्चिन्त होकर रहने का सुभीता नहीं। [ २३९ ]दूसरे दिन सबेरे हम लोगों के पथ-प्रदर्शक को जख्मी हाथ के सूजने से ज्वर हो पाया। वह वहाँ से आगे न जा सका। तब हम लोग एक नये पथ-प्रदर्शक को साथ ले टुलुज शहर को गये। मैंने अपने दोनों कान मल कर सौगन्द खाई कि फिर कभी इस रास्ते कहीं न जायँगे। इस मार्ग की अपेक्षा जल-थल में नाव डूब जाने से पानी में डूब जाना कहीं अच्छा है।

टुलुज से पैरिस, वहाँ से कैले, और कैले से १४ वीं जनवरी को हम लोग निर्विघ्न डोवर पहुँचे। मैंने अपनी पूर्वपरिचित कप्तान की विधवा स्त्री के पास अपनी सब धनसम्पत्ति रख दी। वह विश्वास-पूर्वक मेरे साथ उत्तम व्यवहार करने लगी।

मैंने अपने मित्र वृद्ध कप्तान के ज़रिये ब्रेज़िल की ज़मीदारी बेच कर ढाई लाख रुपये प्राप्त किये। इस प्रकार मेरे अति-विचित्र जटिल जीवन-नाट्य के प्रथम अङ्क का यवनिका-पात हुआ। प्रारम्भ में तो मैंने बहुत कष्ट उठाये, पर अन्त में मुझे बहुत ही सुख मिला।