विकिस्रोत:आज का पाठ/२७ मई
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कुत्सा प्रेमचंद द्वारा रचित मानसरोवर २ का एक अध्याय है जिसका प्रकाशन १९४६ ई॰ में सरस्वती प्रेस "बनारस" द्वारा किया गया था।
"अपने घर में आदमी बादशाह को भी गाली देता है। एक दिन मैं अपने दो-तीन मित्रों के साथ बैठा हुआ एक राष्ट्रीय संस्था के व्यक्तियों की आलोचना कर रहा था। हमारे विचार में राष्ट्रीय कार्यकर्ताओं को स्वार्थ और लोभ से ऊपर रहना चाहिए। ऊँचा और पवित्र आदर्श सामने रखकर ही राष्ट्र की सच्ची सेवा की जा सकती है। कई व्यक्तियों के आचरण ने हमे क्षुब्ध कर दिया था और हम इस समय बैठे अपने दिल का गुबार निकाल रहे थे।..."(पूरा पढ़ें)