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विकिस्रोत:आज का पाठ/२८ मई

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मिस पद्मा प्रेमचंद द्वारा रचित मानसरोवर २ का एक अध्याय है जिसका प्रकाशन १९४६ ई॰ में सरस्वती प्रेस "बनारस" द्वारा किया गया था।


"कानून में अच्छी सफलता प्राप्त कर लेने के बाद मिस पद्मा को एक नया अनुभव हुआ, वह जीवन का सूनापन। विवाह को उसने एक अप्राकृतिक बंधन समझा था और निश्चय कर लिया था कि स्वतन्त्र रहकर जीवन का उपभोग करूंगी। एम॰ ए॰ की डिग्री ली, फिर क़ानून पास किया और प्रैक्टिस शुरू कर दी। रूपवती थी, युवती थी, मृदुभाषिणी थी और प्रतिभाशालिनी थी। मार्ग मे कोई बाधा न थी। देखते-देखते वह अपने साथी नौजवान-मर्द वकीलों को पीछे छोड़कर आगे निकल गई, और अब उसकी आमदनी कभी-कभी एक हजार से भी बढ़ जाती। अब उतने परिश्रम और सिर मराज़न की आवश्यकता न रही।..."(पूरा पढ़ें)