विकिस्रोत:आज का पाठ/५ अप्रैल
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घर जमाई प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी-संग्रह मानसरोवर १ का एक अंश है जिसका प्रकाशन अप्रैल १९४७ में बनारस के सरस्वती प्रेस बनारस द्वारा किया गया था।
"हरिधन ने पड़े-पड़े कहा-क्या है क्या? क्या पड़ा भी न रहने देगी या और पानी चाहिए?
गुमानी कटु स्वर में बोली-गुर्राते क्या हो, खाने को तो बुलाने आई हूँ।
हरिधन ने देखा, उसके दोनों साले और बड़े साले के दोनों लड़के भोजन किये चले आ रहे थे। उसकी देह में आग लग गई। मेरी अब यह नौबत पहुँच गई कि इन लोगों के साथ बैठकर खा भी नहीं सकता। ये लोग मालिक हैं। मैं इनकी जूठी थाली चाटनेवाला हूँ..."(पूरा पढ़ें)