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विकिस्रोत:आज का पाठ/८ अप्रैल

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ज्योति प्रेमचंद द्वारा रचित कहानी-संग्रह मानसरोवर १ का एक अंश है जिसका प्रकाशन अप्रैल १९४७ में बनारस के सरस्वती प्रेस बनारस द्वारा किया गया था।


"विधवा हो जाने के बाद वूटी का स्वभाव बहुत कटु हो गया था। जब बहुत जी जलता तो अपने मृति पति को कोसती-आप तो सिधार गये, मेरे लिए यह सारा जञ्जाल छोड़ गये। जब इतनी जल्दी जाना था, तो ब्याह न जाने किस लिए किया। घर में भूनी भाँग नहीं, चले थे ब्याह करने। वह चाहती तो दूसरी सगाई कर लेती। अहीरों में इसका रिवाज है। देखने-सुनने में भी बुरी न थी। दो-एक आदमी तैयार भी थे; लेकिन वूटी पतिव्रता कहलाने के मोह को न छोड़ सकी। और यह सारा क्रोध उतरता था बड़े लड़के मोहन पर, जो अब सोलह साल का था।..."(पूरा पढ़ें)