वेनिस का बाँका/अष्टम परिच्छेद

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अष्टम परिच्छेद।

सामान्यतः वेनिस के लोग तो परस्पर इस रीति से चर्चा करते थे जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया है, परन्तु अब उस पुरुष का वृत्तान्त सुनिये जिसने माटियो को रोजाबिला का संहार करने के लिये सन्नद्ध किया था। यह परोजी नामक वेनिस का प्रथम श्रेणी का एक उच्च वंशोद्भव [ ३६ ]था। ज्योंही माटियो के मारे जाने और रोजादिलाके जीवित बचजाने का समाचार कर्णगत हुआ। वह अपने मन में अत्यन्त आकुल हुआ कि ऐं यह क्या हुआ। मारे व्यग्रता के वह अपने आयतन में टहलने और स्वगत यों कहने लगा “परमेश्वर का कोप उस मंदभाग्य की अज्ञानता पर, परन्तु मेरी समझ में नहीं आता कि यह दुर्घटना किस प्रकार संघटित हुई। किसी ने मेरा भेद जान तो नहीं लिया? मैं पूर्ण अभिज्ञ हूँ कि विरैनो रोजाबिला पर मोहित है अतएव क्या आश्चर्य्य है कि उसीने इस दुष्टात्मा अविलाइनो को मेरे कार्य में विघ्न डालने के लिये माटियो के पीछे लगा दिया हो। यदि कहीं महाराज ने इस विषय की छानबीन की कि उनकी भ्रातृजा के प्राणहरण के लिये मोटियो को किसने भेजा था तो सिवाय परोजी के जिसके साथ रोजाविलाने विवाह करना अस्वीकार किया और जिससे अनड्रिआस आन्तरिक विरोध रखता है और किस पर संशय होगा। और जहाँ एकबार पता लगा और अंड्रियास पर तुम्हारी कूटनीति प्रगट हो गई और उसे ज्ञात होगया कि तुमने अपने को बहुत से दुष्कर्मियों का अग्रगण्य बना रक्खा है―क्योंकि ऐसे छोकरों को जो मार से बचने के लिये अपनी माता पिताके घर मे आग लगा दें सिवाय दुष्कर्मी के और क्या कह सकते हैं-अरे परोजी जिस समय ए सब बातें अंड्रि आस पर प्रगट हो जायंगी तो―"।

वह अपने मन में इतना ही विचार करने पाया था कि अकस्मात् मिमो, फलीरी, और काण्टे राइनो, परोजी के अष्ट- प्रहरी सहचर आन पहुँचे। ए लोग भी उसके समान वेनिस के प्रथम श्रेणीके उच्चकुलजात, अकर्म्मा, व्यर्थव्ययी और विषयी थे। इन लोगों को वेनिस के सम्पूर्ण अत्यन्त ब्याज लेने वाले महाजन भली भांति जानते थे, जितना कि इनका ब्यवसाय था [ ३७ ]उससे अधिक ए ऋणी थे। परोजी के आयतन में पांव रखते ही मिमो (जिसकी मुखाकृति से विषयी होने का चिह्न-जिस में उसने अब तक अपना जीवन व्यतीत किया था-प्रगट था) बोला "क्यों परोजी क्या बात है, मुझे आश्चर्य्य है, परमेश्वर के लिये सच बताओ कि क्या यह समाचार सत्य है, कि तुमने माटियो को महाराज की भ्रातृजा के विनाश के लिये तानात किया था?"॥

"ऐं मैंने?" यह कह कर परोजीने तत्काल उसकी ओर पीठ फेर ली इसलिये कि वे लोग उसके मुखको जिस पर उस समय इस बात के सुनतेही मलीनता सी छा गई थी न देखें, "भला तुमारे हृदय में यह बात क्यों कर आई? वस जान पड़ा कि तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है।

मिमो―"जीवन की शपथ, जो कुछ मैंने सुना उसे कहता हूँ, चाहो फलीरी से पूछ देखो वह कुछ अधिक वर्णन कर सकेंगे"॥

फलीरी―"ईश्वर की शपथ करके कहता हूँ कि यह बात सत्य है कि लोमेलाइनो ने महाराज को पूर्ण विश्वास दिलाया है कि सिवाय तुम्हारे दूसरे ने माटियो को रोजाविलाके घात के लिये नहीं भेजा"।

परोजी―"और मैं फिर भी तुमसे कहता हूँ कि लोमेलाइनो सर्वथा असत्य कथन करता है"॥

कान्टेराइनो―"जो हो, पर तुम अपनी ओर से सावधान रहो क्योंकि अंड्रियास बड़ा बेढब मनुष्य है"।

फलीरी―"बेढब? मैं तुमसे कहता हूँ कि उस के समान संसार में दूसरा उल्लूका पट्ठा नहीं, बीरता तो भला उसमें कुछ है भी परन्तु बुद्धि तो नाम मात्र को नहीं है"।

कान्टेराइनों―"और मैं कहता हूँ कि अंड्रियास सिंह [ ३८ ]समान पराक्रमशाली और लोमड़ी सदृश कूटनीतिक है।

फलीरी―"राम! राम!! आप का कहाँ ध्यान है, यदि उसके तीनों सुचतुर मन्त्रप्रदाता न हों तो उसका एक कार्य भी ठीक न उतरे। परमेश्वर की मार उनके शिर पर, यदि पेलोमान फ्रोन, कोनारी और लोमेलाइनो उससे पृथक कर लिये जायँ तो उसकी वही दशा होगी जो उस अल्पज्ञ छात्र की होती है जो कि परीक्षा देने के समय अपना पाठ भूल गया हो"॥

परोजी―"फलीरी सच कहते हैं"।

मिमो―निस्सन्देह! निस्सन्देह!!"।

फलीरी―"इस पर विशेषता यह कि अन्ड्रियास अब ऐसा मदान्ध हो गया है जैसा वह दरिद्र जन होता है, जिसके हाथ कहीं से दैवात् धन लग गया हो और जो पहले पहल बहु मूल्य परिच्छद धारण करके निकला हो। वास्तव में आजकल उसका अभिमान मित से अधिक हो गया है, देखते नहीं कि प्रतिदिन वह अपने कितने चाकर और सहचर बढ़ाता जाता है।"

मिमो―"यह तो प्रगट ही है"।

कान्टेराइनो―"इसके अतिरिक्त अपना प्रताप कितना फैला रहा है। वेनिस में श्रेष्ठ कुलजात, उच्चपदस्थ, जितने राजकीय चर हैं, सब, जिस नाच वह नचातो है नाचते हैं और उसकी इच्छा और आज्ञा के अनुसार ऐसा चलते हैं जैसे दारुयोषित सूत्रधार के संकेतानुसार कार्य्य करता है"!

परोजी―"और फिर भी उस को सब लोग देवता समान मानते हैं"।

मिमो―"बस यही तो चमत्कार है"।

फलीरी―"परन्तु यदि अति शीघ्र उसके ए सम्पूर्ण घमण्ड किरकिरी न हो जावें तो फिर मेरी बात का विश्वास न करना।" [ ३९ ]कांटेराइनो―"इसमें तो सन्देह नहीं, इस समय उचित तो यह था कि हम लोग कमर कसकर तैयार हो जाते, परन्तु देखो कि हम लोग इसका क्या प्रतिकार कर रहे हैं? अपना समय हौलियों में नष्ट करते हैं, मदपान कर मारे मारे फिरते हैं जूआ खेलते हैं, और अपने को ऋण ग्रहण के ऐसे बड़े समुद्र में डालते हैं जिसके भीतर अच्छा से अच्छा पैराक मग्न हो जावे। हमको चाहिये कि दृढ़ होकर प्रयत्न करें, लोगों को अपना सहकारी बनावें, और तन मन से अपने उद्योग में परि- श्रम करें, फिर देखें कि हमारे दिन क्यों कर नहीं फिरते यदि न फिरें तो स्मरण रक्खो कि इस निर्लज्जता और अकीर्ति कर जीवन से तो मृत्यु उत्तम है"।

मिमो―"अब मेरी सुनो कि इधर छः महीने से मेरे महा- जन प्रत्येक समय मेरा कपाट खटखटाया करते हैं, प्रातःसमय निद्रा पूरी भी नहीं होने पाती कि वे आकर जगा देते हैं रातको भी उन्हीं के कोलाहल और ललकार से थक कर निद्रा आजाती है"।

परोजी―और मैं अपना हाल तुमसे क्या बताऊँ कि मुझ पर क्या बीतती है।

फलीरी―"यदि हमने अपव्यय न किया होता तो आज अपने प्रसाद में सुखपूर्वक बैठे होते और―परन्तु अब जो कुछ हमारी दशा है उसे―"।

परोजी―"बस अब जो कुछ दशा है उसी की चर्चा करो, भला फलीरी! इस समय उपदेश करने की कौन आवश्यकता है,।

काण्टेराइनो―"इनका क्या सभी पुराने पापियों का यही ढंग है कि जब अपराध करने का अवसर नहीं रहता और न [ ४० ]बस चलता तब वे अपने पिछले अपराधों पर रोते हैं और बुरी बातों से घृणा और उनका परित्याग करने के लिये बहुत कुछ कोलाहल मचाते हैं। अपने विषय में तो यह कहता हूँ कि मैं भलाई और बुद्धिमानी के साधारण मार्गों को छोड़ और इस मार्ग को स्वीकार कर बहुत प्रसन्न और तुष्ट हूँ। इससे मुझे अवगत होतो है कि मैं उन साधारण लोगों में नहीं हूँ जो नाक भौं सिकोड़े रोनी सूरत बनाये कोने में बैठे रहते हैं और कोई नवीन बात सुन कर कांप उठते हैं। मेरे भाग्य में विषय सँभोग लिखा है और मैं इस लिपि को प्रत्यक्षर पूर्ण करूँगा, बरन सच पूछो तो यदि मेरे जैसे लोग कभी कभी न उपजते रहैं, तो संसार पूर्णतयो सो जाय। हमलोग पुरानी बातों के उलट पुलट कर उसको जगाते हैं, मनुष्य जाति को उभारते हैं कि निज कच्छप सदृश गति को वेगवान करे। बहुतसे अकर्म्मा पुरुषों के सामने एक ऐसी बात उपस्थित कर देते हैं, जिसकी मीमांसा लाखों तरह से वे करते हैं पर उसको हल नहीं कर सकते। बहुत से लोगों के हृदय में नव्य बिचारों को भी सन्निवेशित कर देते हैं। संक्षेप यह कि हमलोग संसार के लिये उतने ही उपयोगी हैं जितना कि आँधी जो वायु की मलीन, रोगजनक, तथा हानिकर वस्तुओं को उड़ा ले जाती है।।"

फलीरी―"ओहो कैसी प्रामाणिक बातें हैं! मेरी समझ में तो काण्टेराइनों रूम की बड़ी हानि हुई कि तुम्हारा नाम उसके सुवक्तात्रों की तालिका में संयोजित न था, परन्तु खेद की बात यह है कि जितना तुम वक गये उसमे सिवाय चिकने चुपड़े शब्दों के एक बात भी काम की न थी-अब सुनो, इस बीच में जब कि तुमने व्यर्थ बककर अपने मित्रोंका मस्तिष्क शून्य कर दिया, फलीरी ने कुछ कर रक्खा है, पादरी गान्जे[ ४१ ]गा वेनिस के शासकों से अत्यंत रुष्ट हैं। न जाने अन्ड्रिआसने उसके साथ क्या बुराई की है, कि वह उसका वैरी हो गया है, संक्षेप यह कि गान्जेगा अब हमारा सहकारी और सहायक है"।

परोजी (आश्चर्य्य और हर्ष के साथ) फलीरी! तुम्हारी बुद्धि ठिकाने है अथवा नहीं? अजी पादरी गान्ज़ेगा?

फलीरी-हमारा सहकारी है हमारा-तन मनसे। सच पूछो तो पहले पहेल मैंने उसके सामने अपने को बहुत कुछ सत्पुरुष बनाया, उस पर प्रगट किया कि हमलोग इतने बड़े स्वदेश हितैषी हैं, हमारे ऐसे उत्तम विचार हैं, हम यों स्वतन्त्रता चाहते हैं और इसी प्रकारकी और वहुतसी बातें कीं निदान कथनोपकथनसे यह ज्ञात हो गया कि गान्ज़ेगा कपटी है, और इसलिये वह हमारे गँवका है।

कान्टेराईनो―(फलीरी का हाथ अपने हाथ में लेकर) धन्य मेरे सुयोग्य मित्र! देखो तो परमेश्वर क्या करता है, परंतु अब मेरे बोलने की बारी है। जबसे मैं तुमलोगों से बिदा होकर गया हूँ उस समय से अकर्म्मण्य बना बैठा नहीं रहा, सच पूछो तो अब तक मैंने किसीको फंसाया नहीं है, परन्तु मेरे वशमें एक ऐसा जाल आ गया है जिससे दृढ़ विश्वास है कि वेनिसके आधे लोगोंको फाँस रक्खूँगा, शशिवदना उलिम्पिया से तो आप लोग अभिज्ञ होंगे?।

परोजी―हममें कौन ऐसा है जिसके पास वेनिसकी सम्पूर्ण सुन्दर स्त्रियों की तालिका न हो? फिर भला हम लोग शिरो लिखितही को भूल सकते हैं।

फलीरी―"उलिम्पिया और रोजाविला तो वेनिस का प्राण हैं, हमारे यहाँ के युवक जन उन पर न्यौछावर होने को मरते हैं"॥ [ ४२ ]कान्टेराइनो―"उलिम्पिया मेरी है।"

फलीरी―"क्यों कर?"

परोजी―"उलिम्पिया?"

कान्टेराइनो―"ऐ कुशल तो है तुमलोग तो कुछ ऐसे चमत्कृत और चकित होगये कि मानों मैंने आकाश के टूट पड़ने की भविष्यत् वाणी कही है? मैं तुमसे कहता न हूँ कि उलिम्पिया का मन मेरे हस्तगत है और मैं उसके सम्पूर्ण भेदों से अभिज्ञ हूँ, मेरे और उसके जो सम्बन्ध हैं उनका प्रच्छन्न रहना आवश्यक है, परन्तु विश्वास करो कि जो मेरी आकांक्षा है वही उसकी है और यह तो तुमलोग भली भाँति जानते हो कि वह आधे वेनिस को अपनी वंशीकी ध्वनि पर जो नाच चाहे नचा सकती है"।

परोजी―"कान्टेराइनो! तुम हम सबके गुरु हो।"

कान्टेराइनो―"और तुम लोगों ने अनुमान भी न किया होगा कि कैसा बलवान सहायक और सपक्षी तुम्हारे लिये मैं खोज रहा था"।

परोजी―"भाई तुम्हारी हितैषिता सुनकर मैं मनही मन लज्जित हो रहा हूँ क्योंकि आजतक मुझसे कुछ भी न बन आया। निस्सन्देह इतना मैं बचाव के लिये किसी प्रकार कह सकता हूँ कि यदि माटियो मेरी अभिलाषानुसार रोजाविला के बध करने में कृतकार्य्य हुआ होता तो महागज के पास से एक बड़ा सम्बन्ध जिससे वेनिस के बड़े बड़े लोग उसकी शासन प्रणालीसे प्रसन्न हैं जाता रहता, जब रोजाबिला शेष न रहती तो अंड्रियास की कोई बात तक न पूछता। बेनिस के बड़े बड़े वंश नृपति महाशय की मित्रता की थोड़ी भी कामना भी न करते यदि रोजाबिलाके द्वारा उनके साथ सम्बन्ध दृढ़ [ ४३ ]करने की आशा जाती रहती। रोजाबिला एक दिन महाराज की उत्तराधिकारिणी होगी।"

मिमो―"महाशयो! मुझसे तो इतना ही हो सकता है कि मुद्रा से तुम्हारी सहायता करूं मेरे बूढ़े अयोग्य पितृव्य के पास लक्षों मुद्रायें हैं और उनके धन का मैं ही उत्तराधिकारी हूँ। जिस दिन सङ्केत करूं वह ठिकाने लगा दिया जाय"।

फलीरी―"तुमने इतने ही दिन उनको व्यर्थ जीवित रहने दिया।"

मिमो―"भाई क्या कहूँ कामना करता हूँ और करके रह जाता हूँ। तुम लोगों को विश्वास न होगा परन्तु मित्रो! किसी समय मैं ऐसा भीरु हो जाता हूँ कि मुझे ईश्वर का भय भी घेर लेता है।"

काण्टेराइनो―"सच कहो तब तो तुम मेरी अनुमति ग्रहण करो और किसी देवालय में जाकर बैठो!"

मिमो―"हाँ निस्संदेह में इसी योग्य हूँ।"

फलीग―"पहिले हमको चाहिये कि अपने प्राचीन साथियों अर्थात् माटियो के सहकारियों की खोज करें। परन्तु कठिनता तो यह है कि आज तक हमलोग उनके अधिपति द्वारा संपूर्ण कार्यों को सिद्ध करते रहे इस कारण हमको ज्ञात नहीं कि वे लोग कहाँ मिलेंगे।

परोजी―ज्योंही वे लोग मिलें पहले उनसे महाराजके तीनों मंत्रियों को ठिकाने लगवाना चाहिये।

काण्टेराइनो―बात तो अच्छी है यदि बन पाये। अच्छा महाशयो मुख्य बात की विवेचना तो हो चुकी अर्थात् या तो हम लोग राज्य को उलट पुलट कर अपने ऋणों से मुक्त होंगे अथवा इस उद्योग के पीछे अपना जीवन समाप्त करेंगे, अभि- प्राय यह कि दोनों दशाओं में हम दुःखसे छूटेंगे। आवश्यकता [ ४४ ]हमको पर्वत के उच्च शिखर पर खींच कर लाई है अतएव यहाँ से बचने के लिये या तो हम कोई अपूर्व साहस का कार्य्य करेँगे, अथवा किसी घोर गर्त्त के भीतर गिर कर सदैव के लिये अपयश से निवृत्त होंगे। अब दूसरी बात यह है कि हमारे आवश्यक व्यय क्योंकर चलेंगे और लोग क्यों कर हमारे सह- योगी होंगे। इस प्रयोजन के लिये हम को उचित है कि वेनिस में जितनी सुन्दरी स्त्रियाँ हैं उन्हें जिस युक्ति से सम्भव हो अपना सहायक बनायें, क्योंकि जिस बात को हम अपने उद्योगों से, बांके लोग अपने कटारों से, और धनवान अपने धन से न कर सकेंगे उसे यह कुरङ्गाक्षियाँ एक दृष्टि से कर लेंगी। जहाँ शूली का भय और धर्मनेता लोगोंका उपदेश कोई प्रभाव नहीं उत्पादन कर सकता, वहाँ प्रायः एक चुम्बन और संयोग का आशाप्रदान अद्भुत कौतुक दिखलाता है। इनकी मोहनी मन्त्र पूरित आँखें बड़े २ सयानों को अपना चाकर बना लेती हैं और उनका एक बार का चुम्बन बहुत काल के ठीक किये हुये सिद्धान्तों को मिटा देता है। परंतु यदि तुम इन स्त्रियों पर अधिकार लाभ करने में कृतकार्य्य न हो अथवा तुमको इस बात का भय हो कि जो जाल तुमने दूसरों के लिये बिछाया है उस में स्वयं फँसजावोगे तो ऐसी दशा में तुम्हें उचित है कि धर्म्मयाजक लोगों पर अपना अधिकार जमाओ। उनकी स्तुति करो और उनको विश्वास दिलायो कि उस समय वेही सबसे बड़े पदों पर नियुक्त होंगे, विश्वास रक्खो कि ऐसा करने से वे तत्काल वंचित होकर तुम्हारे कपट में पड़ जायँगे। इन छलियों को वेनिस के स्त्री और पुरुष, धनाढ्य और कंगाल, नृपति और पदाति सभों के हृदय पर ऐसा अधिकार प्राप्त है कि जिस ओर चाहें उनकी नकेल फेर सकते हैं। इस रीति से बहुत से लोग हमारे सहायक हो [ ४५ ]जावेंगे और उनके चित्त को भी प्रत्येक प्रकार का समाधान प्राप्त रहेगा क्योंकि इन धर्म्मोपजीवी लोगों के आशीर्व्वाद और शाप का सत्कार मुद्रा से बढ़कर किया जाता है। बस अब सब लोग प्रयत्न करने पर तत्पर हो जावो। मैं प्रस्थान करता हूँ, प्रणाम!