वेनिस का बाँका/एकादश परिच्छेद
एकादश परिच्छेद।
रोजाबिलाकी वर्षग्रन्थिके तृतीय दिवस संध्या समय परोजी अपने मित्रों मिमो और फलीरी के साथ अपने आगार में बैठा था। प्रत्येक ओर एक प्रकारकी उदासीनता छार ही थी, वर्तिकायें आप धुँधली और निस्तेज जलती थीं, आकाश अलग बलाहक समूहों से आच्छादित दिखलाई देता था, और सबसे अधिक इनके हृदयों में भय और असमंजस का प्रचण्ड प्रभंजन उठ रहा था। अन्ततः बहुत काल पर्यन्त स्तब्ध रहने उपरान्त परोजी ने कहा "ऐं" तुमलोग किस चिन्ता में निमग्न हो? लो एक एक पानपात्र भरकर मद पान करो"।
मिमो―(अरुचि के साथ)"अच्छा तुम्हारे आज्ञानुसार पान करता हूँ परन्तु आज तो मदपान करने के लिये मेरा जी नहीं चाहता"।
फलीरी―"और न मेरा जी चाहता है मुझे तो सुराका स्वाद आज सिर्केकासा ज्ञाता होता है पर वास्तव में यह निस्वाद मद में नहीं है बरन हमारे चित्त में है। परोजी―"परमेश्वर का कोप उन दुष्टात्माओं पर"।
मिमो―"क्या तुम डाकुओं को कोस रहे हो"॥
परोजी―"अजी कुछ न पूछो उन मन्दभाग्यों का तनिक अनुसन्धान नहीं लगता, मेरा तो आकुलतासे श्वासावरोध हो रहा है"।
फलीरी―"और इस बीच समय हाथ से निकला जाता है। यदि कहीं हमारा भेद खुल गया तो फिर हम होंगे और कारागार। सब लोग हमारा परिहास करेंगे और ताली बजावेंगे। मेरा जी तो ऐसा झुँझलाता है कि अपने हाथों अपना मुख नोच डालू" इस समालाप के उपरांत कुछ काल पर्यन्त एक सन्नाटा सा छा गया।
परोजी (क्रोध से पृथ्वी पर हाथ पटक कर) फ्लोडोआर्डो फ्लोडोआर्डो!!
फलीरी―"दो घड़ी में मुझे पादरी गान्जेगा के समीप जाना है तो मैं उनसे जाकर क्या कहूँगा"?
मिमो―"अजी घबराओ नहीं कांटेराइनो का इतनी देर तक न आना किसी प्रयोजनीय घटना से सम्बन्ध रखता है विश्वास करो कि वह कुछ न कुछ समाचार अवश्यमेव लावेगे"।
फलीरी―"राम! राम! मैं प्रण करके कहता हूँ कि वह इस समय उलिम्पिया के चरणों पर शिर रखे हुये अश्रुप्रवाह करते होंगे भला उन्हें हम लोगोंकी अथवा इस राज्य की अथवा डाकुओं की अथवा अपनी कब सुध होगी"।
परोजी―"भला तुम लोगों में से कोई इस फ्लोडोआर्डो का कुछ भी भेद नहीं जानता"।
मिमो―"बस उतना ही जितना कि रोजाबिला की वर्ष- ग्रन्थिके दिवस देखने में आया"।
फलीरी―"परन्तु मैं उसके विषय में इतना और जानता हूँ कि परोजी को उससे ईर्षा और द्वेष है"॥
परोजी―"मुझको? पागल हो। रोजाविला चाहे जर्मनी के महाराजाधिराज से पाणिपीड़न करे अथवा वेनिस के एक नीचतर भारवाहक की पत्नी बने मुझको तनिक भी चिन्ता नहीं"।
परोजी की इस निरपेक्षता पर फलीरीने एकवार अट्टहास किया।
मिमो―"एक बात तो जो व्यक्ति फ्लोडोआर्डो का शत्रु है वह भी स्वीकार करेगा कि उसके समान वेनिस में द्वितीय रूपवान युवक नहीं है। मेरे जान तो वेनिस में कोई युवती ऐसी आचारवान और पातिव्रतपरायण न होगी जो उसको देख कर सम्मोहित और कामासक्त न हो जाय"।
परोजी―"हाँ यदि स्त्रियाँ भी तुम्हारे समान निर्बुद्धि होंगी कि गरीके दर्शनाभावमें छिलके पर रीझ जाँय तो निस्सं- देह ऐसा करेंगी"।
मिमो―"पर शोक तो यही है कि स्त्रियाँ सदा छिलके को ही देखती हैं"।
फलीरी―"वृद्ध लोमेलाइनो उससे बहुत ही अभिज्ञ ज्ञात होता है, लोग कहते हैं कि वह उसके पिता का बड़ा मित्र था"।
मिमो―"उसीने तो महाराज से भेट कराई है।
परोजी―"चुप, देखो कोई कुण्डो खड़खड़ा रहा है"।
मिमो―"सिवाय कांटेराइनो के और कौन होगा, अब देखें उन्होंने डाकुओं का पता लगाया अथवा नहीं"।
फलीरी―(अपने स्थान से उठकर) "मैं शपथ कर सकता हूँ कि यह कांटेराइनो के पाँव की आहट है"।
उस समय कपाट खुल गया और कांटेराइनो पटावेष्टित आयतन में शीघ्र शीघ्र प्रविष्ट हुआ, परन्तु उसको क्षतविक्षत और रुधिराक्त देखकर उसके मित्रगण व्यस्त हो गये और कहने लगे कुशल तो है? यह क्या बात है? तुम लहूभरे क्यों हो?
कांटेराइनो―"कुछ व्यग्र होने की बात नहीं है, क्या यह मदिरा रखी है, तो शीघ्र मुझे एक प्याला भरकर दो, प्यास की अधिकता से मेरा तालू सूखा जाता है"।
फलीरी―(मदको पानपात्र में भरकर) "परन्तु कांटेरा- इनो तुमारे शरीर से रुधिर प्रवाह हो रहा है"।
कांटेराइनो―"मैं जानता हूँ मुझसे क्या कहते हो, सच जानो कि मैंने कुछ आपसे नहीं किया है"।
परोजी―"पहले तनिक हमलोगों को ब्रण बांध लेने दो और फिर हमसे कहो कि क्या दुर्घटना हुई है। अवश्य है कि सेवकों को इससे कुछ अभिज्ञता न हो, अतएव इस समय मैं ही तुम्हारा वैद्य बनूँगा"।
कांटेराइनो―"तुमलोग मुझ से पूछते हो कि मुझ पर क्या बीती? अजी यह केवल एक परिहास की बात थी, लो फलोरी मुझे एक प्याला और भरकर दो।
मिमो―"मेरा तो आतङ्क से श्वासावरोध हो रहा है"।
कांटेराइनो―"क्या आश्चर्य है, श्वासावरोध होता होगा, और मेरा भी हो जाता यदि मैं कांटेराइनों होनेके बदले मिमो होता। इसमें सन्देह नहीं कि क्षतसे रुधिर अधिक निकल रहा है परन्तु उससे किसी प्रकार की आशंका नहीं है"। यह कह कर उसने अपना परिच्छद फाड़ डाला और वक्षस्थल खोलकर उनलोगों को दिखलाया। "देखो मित्रो! यह घाव दो इञ्चसे अधिक गहरा नहीं हैं"।
मिमो―(कांपकर) "हे परमेश्वर! मुझ पर कृपा कर उसके देखने ही से मेरा हृदय विदीर्ण हुआ जाता है"। इस बीच परोजी कूछ अनुलेप और वस्त्र ले आया और उसने अपने सुहृद के ब्रण को पट्टी चढ़ा कर बांध दिया।
काण्टेराइनो―"कवि हारेसने सत्य कहा है कि दर्शनविद्, उपान निर्माता, नृपति, बैद्य, जो कुछ चाहे बन सकता है। देखो कि परोजी दर्शनविद् होने के कारण किस सावधानो के साथ मेरे लिये पट्टी निर्म्माण कर रहा है। मित्र! मैं तुम्हारा उपकृत और वाधित हूँ, तुम्हारी इतनी अनुकम्पा बहुत है। अब सुहदवरो! मेरे पास बैठो और सुनो कि क्या क्या अद्भुत और विचित्र बाते वर्णन करता हूँ।
फलीरी―"कहो"।
काण्टेराइनो―"ज्योंही संध्या समय समीप आया मैं पटावृत होकर घर से इस प्रयोजन से निकला कि यदि सम्भव हो तो डाकुओं का पता लगाऊँ। मैं उनसे अभिज्ञ न था और न वह मुझे पहचानते थे। कदाचित् आपलोग कहेंगे कि यह काम मैंने मूर्खताका किया परन्तु मैं आपलोगों पर सिद्ध करना चाहता हूँ कि कैसा ही कठिन कार्य्य क्यों न हो यदि मनुष्य उसके करने के लिये कटिवद्ध हो तो वह अवश्य- मेव हो सकता है। मुझे उन दुष्टात्माओंका चिन्ह बहुत ही अल्प ज्ञात था तो भी मैं उतने ही पते पर चल निकला। संयोग से मुझ से एक नाविक से भेट हो गई जिसका स्वरूप देख कर मुझे परमाश्चर्य हुआ। मैंने उससे बातें करनी प्रारम्भ कीं और अन्त को मुझे पूर्ण विश्वास हो गया कि वह उन डाकुओं के निवासस्थान से अभिज्ञ है। तब मैंने कुछ मुद्रा और बहुत सी स्तुति के द्वारा उससे इतना भेद पाया कि यद्यपि कि वह उनके समूह में मिलित नहीं है, परन्तु प्रायः उन लोगो ने उससे अपना कार्य सम्पादन कराया है। मैंने तत्काल उसको कुछ देकर सन्तुष्ट किया और वह अपनी नौका पर चढ़ा कर कभी बेनिस के बायें और कभी दहने मुड़ता हुआ मुझे इस रीति से ले चला कि मुझको तनिक ध्यान ने रहा कि मैं नगर की किस दिशा में हूँ। निदान एक स्थल पर पहुँच कर उसने मुझ से कह कि अब अपनी आँखों को वस्त्र द्वारा आच्छादित कर लो। अवश हो मुझे इस नियम को स्वीकार करना पड़ा। दो घड़ी के बाद उसने अपनी नौका एक स्थान पर ठहरा कर मुझे उतारा और कई गुप्तमार्गों से होता हुआ मुझे एक गृह के द्वार पर उसी भांति अच्छादित नेत्र से लेजाकर खड़ा किया। तब उसने कुण्डी खटखटाई और भीतर से किसी जनने कपाट खोल कर प्रथम अत्यन्त चातुर्य्य से मेरी बातों को श्रवण किया, फिर अपरों से अतिकाल पर्य्यन्त परामर्श करने के उपरांत मुझे घर के भीतर बुला लिया। वहाँ जाने पर मेरा नेत्राच्छादक पट खोल दिया गया और मैंने अपने को एक आयतन में पाया जहाँ चार मनुष्य असभ्य और एक युवती जिसने कदाचित कपाट खोला था उपस्थित थीं।
फलीरी―"ईश्वर की शपथ है कांटेराइनों तुम बड़े ढीठ हो"।
कांटेराइनो―"मैंने देखा कि समय व्यतीत करने का अव- सर नहीं है, इसलिये मैंने तत्काल स्वर्णमुद्राओं का तोड़ा अपने पार्श्वभाग से निकाल कर उनके सामने रख दिया, और उनको और बहुत कुछ देने की प्रतिज्ञा की। पश्चात् आपस में दिवस, समय, और संकेत जिनसे मेरी और उन लोगों की भेंट सुगमता से हुआ करे नियत कर लिये। उस समय मैंने उनसे केवल यही कामना प्रगट की कि मानफ्रोन, कुनारी और लोमेलाइनो जितना शीघ्र संभव हो ठिकाने लगाये जाय"। इस पर सबने मिल कर कांटेराइनो की परम प्रशंसा की।
कांटेराइनों―"यहाँ तक तो सब बातें इच्छा के अनुसार हुईं और मेरे नूतन मित्रों में से एक व्यक्ति मुझे घरतक पहुँ- चाने के लिये साथ आने को भी तैयार हुआ कि अकस्मात् कुछ लोग आन पहुँचे"।
परोजी―"एँ?"।
मिमो―(घबरा कर) "परमेश्वर के लिये आगे कहो"।
कांटेराइनो―"ज्यों ही द्वार पर किसी के खटखटाने का शब्द ज्ञात हुआ वह स्त्री जो वहाँ विद्यमान थी समाचार जान- ने के लिये गई कि कौन है और तत्काल उन्मत्त युवती सदृश बकती हुई पलट आई कि "भागो! भागो!!
फलीरी―"फिर क्या हुआ?"
कांटेराइनो―उसके पीछे बहुत से पदातिगण और पुलीस के युवकजन आये और उनके साथ वह फ्लारेंस का रहनेवाला पुरुष था"।
यह सुन कर सब अकस्मात् बोल उठे "फ्लोडोआर्डो? फ्लोडोआर्डो?"।
कांटेराइनो―"हाँ, फ्लोडोआर्डो"।
फलीरी―"उसे क्यों कर वहाँ का अनुसन्धान लगा"।
परोजी―"हा हन्त! मैं वहाँ न हुआ"।
मिमो―"क्यों परोजी! अब तो तुमको विश्वास हुआ होगा कि फ्लोडोआर्डो बीर और साहसी है"।
फलीरी―"अभी चुप रहो शेष विवरण श्रवण करने दो"।
कांटेराइनो―"उस समय हमलोग पत्थर बन गये, कोई कर पदादि परिचालन तक नहीं कर सकता था। आने के साथ ही फ्लोडोआर्डो ने तर्जन पूर्वक कहा कि तुम लोग वर्तमान महीपति और इस राज्य की आज्ञा से शस्त्र अस्त्रादि रख दो और हमारे साथ चुपचाप चले चलो। यह सुनकर डाकुओं में से एक पुरुष बोला कि शस्त्र रखनेवाले और तुम्हारे साथ चलने वाले पर हमलोग धिक्कार शब्द का प्रयोग करते हैं और झट पुलीस के एक उच्चाधिकारी की करवाल उसने छीन ली। दूसरे लोगोंने अपनी बन्दुकें उठालीं और मैंने तत्काल फूँककर एकदी को शान्त कर दिया, जिसमें कोई मित्र और शत्रु को न पहचान सके। परन्तु फिर भी कलानाथ की कलकौमुदी गवाक्षों की झिलमिली के मार्ग से आती थी और उसका प्रकाश कुछ कुछ उस आयतन में प्रसरित था। मैंने अपने जी में कहा कि अब बात बेढब हुई क्योंकि यदि तुम इन लोगों के साथ पकड़ गये तो इनके सहयोगी समझ कर फाँसी दे दिये जाओगे। इस अनुमान के हृदय में अंकुरित होते ही मैंने अपनी कर- चाल को कोश में से निकाल कर फ्लोडोआर्डो पर चलाई परन्तु यद्यपि मैंने अपने जान तुला हुआ हाथ लगाया था पर उसने मेरा वार अपनी करवाल पर अत्यन्त स्फूर्ति के साथ रोका उस समय मैं उन्मत्तों समान लड़ने लगा परन्तु फ्लोडोआर्डो के अभिमुख मेरा चातुर्य्य और मेरी स्फूर्ति कुछ कार्य्यकर न हुई और उसने मुझको क्षत विक्षत कर दिया। क्षतग्रस्त होते ही मैं पीछे हट गया। संयोगतः उस समय दो लघु तुपकें छूटीं और मुझे उनके छूटने के प्रकाश में एक द्वार दृष्टिगोचर हुआ जिसे पदातिगण घेरना भूल गये थे। मैं उसी मार्ग से लोगों की दृष्टि बचा कर द्वितीय कोठरी में निकल गया और उसकी खिड़की के डण्डों को तोड़ कर नीचे कूद पड़ा। कूदने पर मुझे तनिक भी चोट न आई और मैं एक घेरे के भीतर से होता और कतिपय गृहोद्यान की भित्तियों को उल्लंघन करता हुआ नहर पर्यन्त जा पहुँचा। वहाँ मेरे भाग्य से एक नौका लगी हुई थी। मैंने नाविक को सेण्टमार्क तक पहुँचाने पर उद्युक्त किया और वहाँ से सीधा तुमारे पास चला आता हूँ। मुझे अद्यावधि अपने को जीवित देखकर आश्चर्य्य होता है। यही घटना है जो आज के दिवस मुझ पर बीती है"।
परोजी―"ईश्वर की शपथ है कि मुझे तो उन्माद हो जायगा"।
फलीरी―"जो युक्ति हमलोग करते हैं उसका उलटाही फल होता है और जितना दुख सहन करते हैं उतनाही निराश होते जाते हैं"।
मिमो―मेरी सम्मति तो यह है कि यह परमेश्वर की ओरसे शिक्षा हुई है कि हमलोग अपने नीच कर्मों को परित्याग करें। क्यों तुमलोग क्या विचार करते हो?"
काण्टेराइनो―"छिः! ऐसी छोटी छोटी बातों का ध्यान करना सर्वथा हेय है। ऐसी ऐसी घटनाओ से हमारे आन्तरिक वीरता के कपाट खुलते हैं। मुझे तो जितनी कठिनाइयाँ सामने होती हैं उतनाही उत्साहित करती हैं, और मैं उनका निवारण करने के लिये उतनाही तत्पर होता हूँ।
मिमो―"अच्छा, पर काण्टेराइनो तुमको मेरे जान परमेश्वर को धन्यवाद प्रदान करना चाहिये कि एक बड़ी आपत्ति से साफ बच कर निकल आये"।
फलोरी―"परन्तु क्यों भाई फ्लोडोआर्डो तो यहाँ परदेशी और अपरिचित है उसे डाकुओं के रहने का स्थान क्यों कर ज्ञात हुआ?"।
कांटेराइनो―"मैं नहीं कह सकता, क्या आश्चर्य्य है कि मेरे समान उसे भी दैवात् उनका अनुसन्धान लग गया हो, परन्तु शपथ है उसकी जिसने मुझे उत्पादन किया, मैं फ्लोडो- आर्डो को क्षतग्रस्त करने का स्वाद अवश्य चखाऊँगा"।
फलीरी―"फ्लोडोआर्डो यह निस्सन्देह बुरा करता है कि अपने को इतना शीघ्र लोगोंकी दृष्टि में चढ़ा रहा है"।
परीजी―"फ्लोडोआर्डो अवश्य मारा जायगा"।
काण्टेराइनो―(अपना पानपात्र भर कर) “परमेश्वर करे कि अबकी बार उसके पानपात्र की मदिरा घोर विष हो जाय"।
फलीरी―"मैं इस व्यक्ति से साक्षात् अवश्य करूँगा।
काण्टेराइनी―"मिमो अब मुद्रा के विषय में चिन्ता करनी चाहिये नहीं तो सम्पूर्ण कार्य्य असमाप्त रह जायगा। अब तुम्हारे पितृव्य कव इस संसार को परित्याग करेंगे?"।
मिमो―कल संध्या समय परन्तु हाय! मेरा हृदय कांपता है"।