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वेनिस का बाँका/द्वादश परिच्छेद

विकिस्रोत से
वेनिस का बाँका
अनुवादक
अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

बनारस सिटी: पाठक एंड सन भाषा भंडार पुस्तकालय, पृष्ठ ७४ से – ७८ तक

 

द्वादश परिच्छेद।

रोजाबिलाको वर्ष ग्रन्थि के दिवस से वेनिसमें कोई स्त्री जिसे तनिक भी रूपवती होने का गर्व था ऐसी न थी जो सिवाय उस फ्लारेंस के नुकीले युवक के दूसरे की चर्चा करती हो। उसकी सुन्दरता का विवरण प्रत्येक युवती की जिह्वा पर था, जो अपना प्रेम प्रगट न करती थी वह मनहीं मन कुढ़ कुढ़ कर रहती थी, बहुतेरी युवा स्त्रियों को उसके ध्यान में रात्रि को निद्रा नहीं आती थी, जो निज कटाक्षों से प्रेमियों का मानस परिहरण में पूर्ण अभ्यस्त थी, प्रायः श्रृंङ्गार समय वह अपना स्वरूप दर्पण में अवलोकन कर उसासें लेती, और कितनी नारियाँ जिन्होंने निज पातिव्रत की धुन में बाहर आना जाना तक तज दिया था, अब अजस्र फ्लोडोआर्डो की एक झलक पाने के अनुराग में उपवनों और राजमार्गों में भटकती फिरती थीं। यह अवस्था तो युवतियों की हुई, परन्तु जिस समय से उस अद्भुत् व्यक्तिने पुलीसवालों को साथ लेकर अत्यन्त वीरता से डाकुओं को स्वयं उनके भवन में जाकर पकड़ा वह पुरुषों की दृष्टि में भी समा गया था, वे लोग एक ऐसे भयङ्कर कृत्य में उसकी वीरता और दृढ़ता को देखकर अत्यन्त प्रसन्न थे और अधिकतर उनको उसकी इस पहुँच पर आश्चर्य्य था कि उसने डाकुओं का निवासस्थान जिसका अनुसन्धान और पता पुलीस को भी न लगा था जानलिया था। भूप अण्ड्रिआस भी उसका सामीप्य प्रतिदिन बढ़ाते और उस को अपनी प्रकृति में आधिकार देते जाते थे। जितनाही वे उससे समालाप करते उतनाही वह उनकी दृष्टि में अधिक जँचता जाता। निदान महाराज ने फ्लोडोआर्डो के लिये एक योग्य पुरस्कार उस राजकीय उपकार के बदले में निर्धारण किया जिसको वर्तमान काल में उसने कर दिखलाया था। इसके अतिरिक्त उन्होंने उसको राज्य के एक माननीय और उच्च पद पर भी नियुक्त करना चाहा, परन्तु फ्लोडो ने दोनों बातों के स्वीकार करने में अरुचि प्रगट की और कहा अभी वर्ष भर मैं वेनिस में स्वतन्त्र और स्वच्छन्द रहना चाहता हूँ इसके उपरान्त मैं स्वयं आप से किसी एक ऐसे कार्य्य के लिये प्रार्थी हूँगा जो मेरी योग्यता के अनुकूल होगा।

फ्लोडोआर्डो निज प्रतिपालक लोमेलाइनो के गगनस्पर्शी- भवनों में रहता लोगों से बहुत कम मिलता अपना समय अधिकतर ग्रन्थावलोकन में व्यतीत करता प्रायः दिन दिन भर अपने कमरे से पांव बाहर न निकालता और सिवाय बड़े बड़े अफसरों से मिलने के किसी उत्सव और समारोह में भी सम्मिलित न होता था। उसकी यह अवस्था महाराज, लोमेलाइनो, मानफ्रोन और कुनारी से छिपी न रह सकती थी। ये वे लोग थे जिन्होंने अपनी योग्यता और बुद्धिमत्ता के बल से वेनिस के राज्य की नीव को इतना दृढ़ और पुष्ट कर डाला कि उसका उखाड़ना टेढ़ी खीर थी। जिनकी संगत में रहने से मनुष्य अपने को देवता समझने लगता था और जिनको यह बात हृदय से स्वीकार थी कि फ्लोडोआर्डो किसी समय में अच्छा नाम प्राप्त करे। उन्होंने तत्काल समझ लिया कि यद्यपि फ्लोडोआर्डो प्रगट में प्रसन्न ज्ञात होता है पर वास्तव में उसके हृदय को किसी बातका संताप है और उसका आनन्द बनावटी है। यह दशा देखकर लोमेलाइनों ने जो उससे पिता की भाँति प्रीति करता था, और नृपतिने जो उसको हृदय से चाहते थे, बहुत प्रयत्न किया कि उसके संताप का कारण जानें, और उसका मन बहलाये, परन्तु सकल प्रयत्न निष्फल हुये। फ्लोडोआर्डो प्रत्येक समय मलीन और मौन रहता था। यदि हमारे पाठकों को यह चिन्ता हो कि इस समय रोजाविला की कैसी दशा थी तो उनको समझ लेना चाहिये कि यह बात कथमपि संभव नहीं कि प्रेमी संतापित हो और प्रेयसी पर उसका प्रभाव न पड़े।

रोजाबिला प्रतिदिन कुम्हलाती और निर्बल होती जाती थी, उसके नेत्रों में प्रायः आँसू डबडबा आते थे, और आनन का वर्ण क्रमशः पीत पड़ता जाता था। यहाँ तक कि महाराज को जो उस पर प्राण न्योछावर किये देते थे उसके स्वास्थ्य में विघ्न पड़ने की आशंका हुई। उनका यह अनुमान बहुत ठीक उतरा, क्योंकि कतिपय दिवस में ही रोजाबिला सचमुच रुज- ग्रस्त हुई और उसे एक ऐसे कठोर ज्वर ने आ दबाया कि जिसकी औषध करने में वेनिस के बड़े बड़े वैद्यों की बुद्धि व्यस्त थी।

जिस समय कि भूमिनाथ अंड्रियास और उनके मन्त्रदाता रोजाविला के रुजग्रस्त होने की आपत्ति में पतित थे एक दिन वेनिस में एक नवीन बात ऐसी हुई जिसने उनकी चिन्ता की और वृद्धि कर दी। ऐसी घटना का होना जिसका विवरण आगे किया जायगा वेनिस में अद्यावधि किसीने न सुना था। उसकी कथा यों है कि जिस दिन से फ्लोडोआर्डो ने उन चारों डाकुओं पेट्राइनो, ष्ट्रजा, बलज्जो, और टामेसो को पकड़ा था वह राजकीय कारागार में बहुत यत्न के साथ बद्ध थे और नित्य उनके विषय में छान बीन की जाती थी। निदान अपराध सिद्ध हो जाने के उपरांत उन लोगो ने फांसी पाई। उस दिवस से अंड्रियास और उनके मन्त्रि प्रवरों को पूरी प्रतीति हो गई कि अब प्रजा के लिये किसी प्रकार के भयका स्थान शेष न रहा, और वेनिस उन दुष्टों से सर्वथा रहित हो गया जो मुद्रादि के लोभ से व्यर्थ लोगों का नाश किया करते थे कि अकस्मात् उन्होंने एक दिन एक बिज्ञापन वेनिस के मुख्य भवनों और राज मार्गो और नाकों पर लगा हुआ देखा जिसका आशय यह था।

"ऐ वेनिस निवासियो! तुम लोगों को ज्ञात हो कि ष्ट्रजा, टामेसो, पेट्राइनो, वलज्जो, और माटियो, पांच ऐसे बीर व्यक्ति को, जो यदि किसी सेना के नायक होते तो वीर धुरन्धर कह- लाते डाकुओं में गिनकर राज्यने अन्याय से फाँसी दे दी यद्यपि कि अब वह जीवित नहीं हैं, परन्तु उनके स्थान पर अब वह व्यक्ति उत्पन्न हुआ है जिसका नाम इस विज्ञापन के निम्नभाग में लिखा है और जो ऐसे लोगों का कार्य्य तन मन से करने के लिये तत्पर है जिन्हें उससे कोई काम कराना हो। मैं वेनिस की पुलीस को कुछ नहीं समझता, और न उस धृष्ट और दुष्टात्मा फ्लारेंस के निवासी को जिसके कारण मेरे सहकारियों की यह दशा हुई, तनिक भी ध्यान में लाता हूँ। मैं सूचित करता हूँ कि जिन लोगों को मेरी आवश्यकता हो वह मेरा अन्वेषण करें मैं उन्हें प्रत्येक स्थल पर मिलूँगा, परन्तु जो लोग मुझे पकड़ने के अभिप्राय से अन्वेषण करेंगे उन्हें निराश होना और डरना चाहिये क्योंकि मैं उनको कहीं न मिलूँगा पर वे मुझसे चाहे कैसे ही स्थान पर क्यों न हों बच न सकेंगे। तुमलोग मेरा अभिप्राय भलीभांति समझ लो और जानलो कि जिसने मेरे पकड़ने का प्रयत्न किया उसका अभाग्योदय हुआ क्योंकि उसका जीवन और मरण मेरे हाथ में है। आप लोगों का सेवक अबिलाइनो बांका"।

ज्यों ही नृपति महाशयने इस विज्ञापन को पठन किया क्रोध की अधिकता से जल भुनकर भस्म हो गये। और आज्ञा दी कि जो पुरुष इस दुष्टात्मा अविलाइनो का पता लगायेगा उसको शत स्वर्ण मुद्रायें और जो उसको पकड़ेगा उसको सहस्र स्वर्ण- मुद्रायें पारितोषिक दूँगा।

यद्यपि स्वर्णमुद्राओं के लोभ में गुप्तचरोंने एक एक कोना खतरा छान डाला पर किसी को अविलाइनो का चिन्ह पर्य्यन्त हस्तगत न हुआ। उनके अतिरिक्त और बहुत से विषयी, लोभी और बुभुक्षित लोगों ने भी इसी आशा में शतशः प्रयत्न और बहुतेरी युक्तियाँ निकालीं परन्तु अबिलाइनो की पटुता के सामने किसी की एक भी न चली। प्रत्येक व्यक्ति कहता था, कि मैंने अविलाइनो को अमुक बेश में अमुक समय देखा है परन्तु कोई यह न कह सकता था कि दूसरे समय वह कहाँ और किस रूप में दिखलाई देगा।