सामग्री पर जाएँ

संगीत-परिचय भाग १/१४: राग काफी

विकिस्रोत से
संगीत-परिचय भाग १
रामावतार 'वीर'

दिल्ली: रामलाल पुरी, पृष्ठ ४६ से – ५१ तक

 
पाठ १४
राग काफी
  1. इस राग में सात स्वर लगते हैं।
  2. इस राग में 'ग', 'नी' कोमल सब स्वर शुद्ध लगते हैं।
  3. इस राग का वादी स्वर "प" है।
  4. इस राग का संवादी स्वर "स" है।
  5. इस राग के गाने बजाने का समय आधी रात का है।
  6. आरोही = स रे ग॒ म प ध नी॒ सं
अवरोही = सं नी॒ ध प म ग॒ रे स
पकड़ = सस रेरे ग॒, मम प


ताल सरगम राग काफी

( ताल तीन मात्रा १६ )

स्थाई

समतालीखालीताली


x
धा धिं धिं धा

प — प —
ग॒ म ग॒ प



धा धि धिं धा

रे ग॒ रे स
म ग॒ रे स



धा तिंन तिंन ता
स स रे रे
रे नी॒ ध नी॒



ता धिं धिं धा
ग॒ — म म
प ध म प

अन्तरा



सं — सं —
ग॒ म ग॒ प



͢गं रें सं सं
म ग॒ रे स


म म प प
नी॒ ध प म


नी॒ — नी॒ नी॒
प ध म प



राग काफी

ताल तीन

शब्द गुरु नानक(श्री गुरू ग्रन्थसाहब)

यह मन नेक न कह्यो करे।

सीख सिखाय रह्यो अपनी सी।
दुरमति तें न टरे॥
मद माया बस भयो बांवरौ,
हरी जस नहीं उचरे॥
करि परपंच जगत के डहकै,
अपनौ उदर भरे॥
स्वान-पूंछ ज्यों होय न सूधौ,
कह्यो न कान धरै॥
कह 'नानक' भजु राम नाम नित,
जातें काज सरे॥

राग काफी

( ताल तीन मात्रा १६ )

स्थाई

समतालीखालीताली


x
धा धिं धिं धा



प — — —
रे — — —

ग॒ म ग॒ प
र ह्यो अ प

स — — —
रे — — —



धा धि धिं धा
ग॒ रे स ͢ऩी
य ह म न

ग॒ रे स नी॒
य ह म न

म ग॒ म —
नी — सी —

ग॒ रे स नी॒
य ह म न



धा तिंन तिंन ता
ने — क न
स — रे रे

रे नी॒ ध नी॒
सी — ख सि

रे ग॒ रे म
दु र म ति



ता धिं धिं धा
ग॒ — म म
कह्यिो — — क

प ध म प
खा — ये —

͢ग रे स ͢ऩी
तें — न ट

अन्तरा





रें ͢गं रें सं
भ यो — बां

सं — — —
रे — — —

ग॒ म ग॒ प
ग त के —

स — — —
रे — — —





रें नी॒ सं —
— व रौ —

संनी॒ धप मग॒ रे
ऐ — — —

म ग॒ म —
— ड ह कै


म म प —
म द मा —

सं सं सं रें
ह री ज स

रे नी॒ ध नी॒
क रि प र

रे ग॒ रे म
अ प नौ —


नी॒ — सं सं
या — ब स

नी॒ ध प ध
न हीं उ च

प ध म प
पं — च ज

ग॒ रे स ͢ऩी
उ द र भ



राग काफी

शब्द गुरु नानक(श्री गुरू ग्रन्थसाहब)

प्रीतम जान लेहु मन माहीं।

अपने सुख सों ही जग फांदियो , को काहू को नाहीं॥
सुख में आन बहुत मिल बैठत, रहत चहूँ दिस घेरे।
बिपत पड़ी सब ही संग छाड़त, कोऊ न आवत नेरे॥
घर की नार बहुत हित जा स्यों सदा रहत संग लागी।
जब ही हंस तजि एह काया, प्रेत-प्रेत कर भागी॥
एह बिधि को ब्योहार बनियो है ,जांसों नेहु लगायो।
अंत बार 'नानक' बिन हर जी,कोऊ काम न आयो॥

(ताल तीन मात्रा १६)
स्थाई


समतालीखालीताली


x
धा धिं धिं धा



प — प —
मा — हीं—

प — प —
मा — हीं —

रे — रे रे
ही — ज ग

प — प —
ना — हीं —



धा धिं धिं धा
नी॒ — ध प
प्री — त म

रे ग॒ रे स
प्री — त म

नी॒ — ध प
प्री — त म

ग॒ रे स —
फा — — दयो

नी॒ — ध प
प्री — त म



धा तिं तिं ता
म ध प ग॒
जा न ले हु

सऩी स रे रे
जा न ले हु

ग॒ — ग॒ ग॒
अ प ने —

प म ध प
को — — का



ता धिं धिं धा
रे — म म
ओ — म न

ग॒ — म म
ओ — म न

ग॒ ग॒ ग॒ —
सु ख सों —

ग॒ रे म म
हू — को —

अन्तरा





सं — रें ͢गं
हु त मि ल

— सं — —
—रे — —

म — ध प
ही — सं ग

प — प —
ने — रे —





रें — सं सं
बै — ठ त

ध नी॒ ध म
ऐ — — —

ग॒ ग॒ रे रे
छा — ड़ त

नी॒ — ध प
प्री — त म


म म प —
सु ख में —

सं सं रें नी॒
र ह त चहूँ

सं सं सं सं
बि प त प

म ध प —
को ऊ न —


नी॒ — नी॒ नी॒
आ — न ब

— ध प ध
— दि स घे

नी॒ — ध प
ड़ी — स ब

ग॒ रे म म
आ —व त


राग काफी

( ताल तीन मात्रा १६)

भजन कबीर

मन तोहे कहि विधि मैं समझाऊँ।
सोना होय तो सुहाग मँगाऊँ , वंक नाल रस लाऊँ ।
ज्ञान शब्द की फूंक चलाऊं, पानी कर पिंघलाऊँ ॥
घोड़ा होय तो लगाम लगाऊँ, ऊपर जीन कसाऊं।
होय सवार तेरे पर बैठूं , चाबुक देके चलाऊं ॥
हाथी होय तो जंजीर गढ़ाऊ चारों पैर बंधाऊ।
होय महावत तेरे पर बैठूं ,अंकुश लेके चलाऊं ॥
लोहा होय तो अहरण मंगाऊ, ऊपर धुवन धुवाऊं।
धूवन की घनघोर मचाऊं, जंतर तार खिचाऊं ॥
ज्ञानी न होय ज्ञान सिखलाऊं, सत्य की राह चलाऊं।
कहत 'कवीर' सुनों भई साधो, अमरा पुर पहुँचाऊं ॥
राग काफी

( ताल तीन मात्रा १६ )

स्थाई


समतालीखालीताली


x
धा धिं धिं धा



प — प —
झा — ऊँ —



धा धि धिं धा



रे ग॒ रे स
म न तो हे



धा तिं तिं ता
स स रे रे
क हि वि धि



ता धिं धिं धा
ग॒ — म म
मैं — स म

अन्तरा





सं — सं ͢गं
हा — ग मँ

सं — सं —
ला — ऊँ —

म — ध प
फूं — क ल

प — प —
ला — ऊँ —





रें — सं सं
गा — ऊँ —

नी॒ ध प —
— — — —

ग॒ — रे —
गा — ऊँ —

रे ग॒ रे स
म न तो हे


म — प —
सो — ना —

सं — रें नी॒
वं — क ना

सं सं सं नी॒
ज्ञा न श ब्द

स — रे —
पा — नी —


नी॒ — नी॒ नी॒
हो य तो सु

— ध प ध
— ल र स

ध प — —
की — — —

ग॒ ग॒ म म
क र पिं घ