संगीत-परिचय भाग १

विकिस्रोत से
संगीत-परिचय भाग १  (1950) 
द्वारा रामावतार 'वीर'

[  ]

प्रकाशक
रामलाल पुरी
आत्माराम एण्ड सन्स
कश्मीरी गेट, दिल्ली



१९५०
प्रथम संस्करण
मूल्य बारह आना



मुद्रक

हिन्दी प्रिंटिंग प्रेस

क्वीन्स रोड, दिल्ली

[  ]

प्रस्तावना

आज जब कि संगीत-कला की उन्नति सरकार तथा भारतीय जनता द्वारा हो रही है। इस कला की उन्नति में सभी प्रयत्नशील हैं। श्री रामावतार जी 'वीर' द्वारा रचित 'संगीत-परिचय' के भागों में संगीत के विषय को बहुत ही सुन्दर और सरल ढंग से लिखा गया है। संगीत-कला का ज्ञान प्राप्त करने वालों के लिए ये पुस्तकें बहुत लाभदायक सिद्ध होंगी। इनके द्वारा संगीत के विद्यार्थी प्रारम्भिक शिक्षा बहुत सुगमता से प्राप्त कर सकते हैं। आशा है कि शिक्षा-विभागी में इन्हें पूर्णतया अपनाया जायगा।


जीवनलाल मट्टू

तिथि
संगीत सुपरवाइज़र
 
१३—१२—५०
आल इण्डिया रेडियो
 

नई दिल्ली

[  ]

दो शब्द

आज से पच्चीस वर्ष पूर्व जब मैंने संगीत-शिक्षण का कार्य प्रारम्भ किया था, तब से लेकर अब तक लगातार लड़के-लड़कियों के विभिन्न स्कूलों, कालिजों तथा अन्य संस्थाओं में कार्य करते हुये जो-जो कठिनाइयाँ मेरे सामने आती रही है, उनमें से एक मुख्य कठिनाई यह थी कि संगीत की ऐसी पुस्तकों का सर्वथा अभाव था, जिनके द्वारा संगीत में प्रवेश करने वाले अल्पायु के छात्र-छात्राओं को संगीत-शास्त्र सम्बन्धी प्रारम्भिक तथा आवश्यक ज्ञान दिया जा सके। [  ]


प्रश्नोत्तर के रूप में लिखा है। संगीत शास्त्र के सुप्रसिद्ध आचार्य पं. विष्णु दिगम्बर जी पुलस्कर तथा श्री विष्णु नारायण भातखण्डे आदि महानुभावों ने भी प्रारम्भिक छात्रोपयोगी अपनी रचनाओं में इसी शैली को अपनाया है। प्रश्नोत्तर की यह शैली सरलता के साथ ही सुबोध और सर्वप्रिय भी है। 'संगीत-परिचय' के तृतीय भाग की लेखन-शैली को प्रश्नोत्तर का रूप न देकर वर्णनात्मक ही रखा है परन्तु वह भी सरल और सुबोध है।

स्वर-लिपि

'संगीत-परिचय' के तीनों भागों की स्वर लिपि श्री भातखण्डे जी के मतानुसार की गई है क्योंकि संगीत की उच्च श्रेणियों में भी इसी शैली को प्रमाणिक माना गया है।

यद्यपि संगीत का ज्ञान एक अच्छे शिक्षक के बिना प्राप्त करना कठिन है, फिर भी आशा है कि ये पुस्तकें संगीत के प्रारम्भिक ज्ञान को प्राप्त करने-कराने में पूर्णतया सहायक होंगी। संगीत ज्ञाताओं से मेरा विशेष अनुरोध है कि वे इन पुस्तकों की जिस त्रुटि को अनुभव करें, मुझे अवश्य ही उनसे अवगत कराने की कृपा करें। इसके लिये लेखक उनका बहुत आभारी होगा और आगामी संस्करण में उन त्रुटियों का यथोचित परिमार्जन कर दिया जायेगा। मैं श्री जीवनलालजी भट्टू म्यूजिक सुपरवाइज़र आल इंडिया रेडियो, न्यू देहली का विशेष रूप से आभारी हूँ जिन्होंने 'संगीत-परिचय' देखकर कुछ उपयोगी सुझाव दिए हैं। साथ ही इसकी प्रस्तावना लिखने का कष्ट किया है।

८८ बी, नया बाजार, दिल्ली
१५—१२—५०
रामावतार 'वीर'
 
[  ]

विषय-सूची

संख्या विषय पृष्ठ
स्वर ज्ञान
सप्तक ज्ञान ११
लय, ताल और काल १३
ताल साधन १४
ताल ज्ञान १६
राग ज्ञान १८
स्वर साधन विधि २३
स्वर साधन २४
अलंकार साधन २७
१० ताल साधन अलंकार साधन २९
११ राग यमन (कल्याण) ३४
१२ ताल सरगम (राग यमन) ३४
१३ प्रभ मेरा अन्तरयामी जान (राग यमन) ३५
१४ सब कुछ जीवत को ब्योहार (राग यमन) ३६
१५ राम सुमिर पछितायेंगा मनुआ (राग यमन) ३८
१६ राग बिलावल ४०
१७ ताल सरगम (राग बिलावल) ४०
१८ स्वामी सरन परियो दरबारे (राग बिलावल) ४१
१९ ऊंच अपार बेअंत स्वामी (राग बिलावल) ४२
२० बीत गये दिन भजन बिना रे (राग बिलावल) ४४
[  ]

संख्या विषय पृष्ठ
२१ राग काफी ४६
२२ ताल सरगम (राग काफी) ४६
२३ यह मन नेक न कहो करे (राग काफी) ४७
२४ प्रीतम जान लेयो मन मांही (राग काफी) ४९
२५ मन तोहे केहो विधि मैं समझाऊं (राग काफी) ५०
२६ राग भूपाली ५२
२७ ताल सरगम (राग भूपाली) ५२
२८ हर की गत न कोई जाने (राग भूपाली) ५३
२९ या जग मीत न देखियो कोई ५४
३० भजो रे भैया राम गोबिन्द हरी (राग भूपाली) ५६
३१ जन गण मन अधिनायक ५७
३२ वन्दे मातरम् ६०
३३ झण्डा ऊंचा रहे हमारा ६२
३४ पितु मात सहायक स्वामी सखा ६५
३५ उठ जाग मुसाफिर भोर भई ६७
३६ फूलों से तुम हंसना सीखो ६८
३७ तेरे पूजन को भगवान ६९
३८ संगीत के वाद्य यन्त्र ७१



[  ]

स्वर लिपियों के चिह्न

  1. शुद्ध स्वरों के ऊपर या नीचे कोई चिह्न नहीं होगा। जैसे—स रे ग म प ध नी।
  2. कोमल स्वरों के नीचे- -ऐसी रेखा होगी। जैसे--रे॒ ग॒ ध॒ नि॒
  3. तीव्र स्वर के ऊपर खड़ी रेखा होगी। जैस--म॑
  4. मध्य सप्तक की स्वरों पर कोई चिह्न नहीं होगा। जैसे-स रे॒ रे ग॒ ग म म॑ प ध॒ ध नी॒ नी
  5. मन्द्र सप्तक के स्वरों के नीचे विन्दु होंगे । जैसे--स. .रे ग़ म. प. ध. ऩी
  6. तार सप्तक के स्वरों के ऊपर विन्दु दिया जावेगा। जैसे--सं रें गं मं पं धं नीं
  7. सम का चिह्न +
  8. खाली का चिह्न ०
  9. तालियों का चिह्न १ २ ३ ४
  10. एक मात्रा में दो स्वर जैसे-- ग‿म
  11. विश्राम की मात्रा जैसे--स --
  12. जिन शब्दों के आगे---ऐसा चिह्न हो, वहाँ शब्द को लम्बा करना चाहिये।

यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।


यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।