संगीत-परिचय भाग १/१५: राग भूपाली

विकिस्रोत से
संगीत-परिचय भाग १  (1950) 
द्वारा रामावतार 'वीर'
[ ५२ ]
पाठ १५
भूपाली
  1. इस राग में पांच स्वर होते हैं इसमें 'म' और 'नी' यह

दो स्वर नहीं लगाये जाते

  1. इस राग में सब स्वर शुद्ध लगते हैं।
  2. इस राग का वादी स्वर 'ग' है।
  3. इस राग का संवादी स्वर "ध" है।
  4. इस राग के गाने बजाने का समय रात्रि का प्रथम पहर है।
  5. आरोही = स रे ग प ध सं
अवरोही = सं ध प ग रे स
पकड़ = ग रे स ͎ध, स रे ग प ग ध प ग रे म


ताल सरगम राग भूपाली

( ताल तीन मात्रा १६ )

स्थाई

समतालीखालीताली


x
धा धिं धिं धा

ग — ग —



धा धि धिं धा

प रे ग ग



धा तिं तिं ता
ध सं ध प



ता धिं धिं धा
ग रे स रे

अन्तरा



सं — सं —
सं सं ध प



ध ध सं —
ग रे स स


ग प ग ग
सं सं ध —


प — ध ध
सं सं गं रें



[ ५३ ]
राग भूपाली

ताल तीन मात्रा १६

शब्द गुरु नानक(श्री गुरू ग्रन्थसाहब)

हर की गत न कोऊ जाने ।

जोगी जती तपी 'पच हारे, अरु बहुलोक सियाने ॥
छिन में राओ रंक को करियो, राओ रंक कर डारे।
रीते भरे-भरे सखनावें, यह तांको बिवहारे ।।
अपनी माया आप पसारी, आपे देखन हारा ।
नाना रूप धरे बहुरंगी, सब ते रहे न्यारा ।।
अगनत अपार, अलख निरंजन, जे सब जग भरमायो।
सगल भरम तजे 'नानक' प्राणी, चरण ताहे चित लायो।।

राग भूपाली

(ताल तीन मात्रा १६)
स्थाई


समतालीखालीताली


x
धा धिं धिं धा



ग — ग —
को — ऊ —

सं — सं —
पी — प च

ध सं ध प
आ — आ —



धा धिं धिं धा



प रे ग —
जा — ने —

ध रें सं —
हा — रे —

ग रे स —
ने — ऐं —



धा तिं तिं ता
सं सं ध प
ह र — की —

ग — ग ग
जो — गी —

ध ध ध ध
अ रु ब हु



ता धिं धिं धा
ग रे स रे
ग त न —

प — प ध
ज ती — त

सं — रें —
लो — क सि

[ ५४ ]

अन्तरा





सं — सं —
क — को—

ध सं रें गं
डा — — —

ध — सं सं
रे— स ख

ध सं ध प
हा — — —





ध रें सं —
क रि यो —

रें सं ध प
रे — — —

ध — प —
ना — वें —

ग रे स —
रे — — —


ग ग म —
छि न में —

ध — ध ध
रा — व रं

गं — गं —
रे — ते —

ग — प —
य ह ता —


प — प प
रा —ओ रं

सं — सं सं
रंक — क रि

सं रें — सं
भ रे — भ

ध — सं —
को — बि—


राग भूपाली

शब्द गुरु नानक (श्री गुरू ग्रन्थसाहब)

या जग मीत न देख्यो कोई।
सकल जगत अपने सुख लाग्यो,
दुखः में संग न होई ।।
दारा मीत, पूत सम्बन्धी,
सगरे धन सों लागे।
जब ही निरधन देख्यो नर को,
संग छांडि सब भागे ।।
कहा कहूँ या मन बौरे कों,
इन सों नेह लगया।
दीनानाथ सकल भय भंजन,
जस ता को बिसराया ।
स्वान पूंछ ज्यों भयो न सूधो ,
बहुत जतन मैं कीन्हौ ।
'नानक' लाज बिदुर की राखौ
नाम तिहारा लीन्हौं ।। [ ५५ ]

राग भूपाली

(ताल तीन मात्रा १६)
स्थाई


समतालीखालीताली


x
धा धिं धिं धा



प — ग —
को — ई —

ध रें सं —
ला —ग्यो —

ग रे स —
ई — — —



धा धिं धिं धा
ग — ग रे
या — ज ग

ग ग ग ग
स क ल ज

ध ध सं —
दु खः में —



धा तिं तिं ता
ग प ग रे
मी — त न

प प ध प
ग त अ प

रें — सं सं
सं — ग न



ता धिं धिं धा
स ͎ध स रे
दे — — ख्यो

सं सं सं सं
ने — सु ख

ध सं ध प
हो — ओ —


अन्तरा





ध रें सं —
ब न धी —

ध प — —
गे — — —

ग रे स —
न र को —

ग रे स —
गे — — —


ग — ग —
दा —रा —

प प प—
स ग रे —

ध — सं रें गं
ज ब ही—

ध — स रे
सं ग छां —


प — ध प
मी — त —

सं सं रें —
ध न सों —

सं रें सं —
नि र ध न

ग प ध सं
डि — स ब


सं — सं सं
पू — त सं

ध सं रें सं
ला — आ —

ध सं ध प
दे —ख्यो —

ध सं ध प
भा — आ —


[ ५६ ]
राग भूपाली

( ताल तीन मात्रा १६)

भजन कबीर

भजो रे भैया राम गोविन्द हरी ।
जप तप साधन कछु नहीं लागत, खरचत नहीं गठरी।
संतत संपत सुख के कारण , जासों भूल परी ।
कहत 'कबीर' राम न जा मुख, ता मुख धूल भरी ।।

राग भूपाली

( ताल तीन मात्रा १६ )

स्थाई


समतालीखालीताली


x
धा धिं धिं धा



ग — — ग
री — — भ



धा धि धिं धा



प रे ग ग
जो रे भै या



धा तिं तिं ता

ध सं ध प
रा — म गो



ता धिं धिं धा

ग रे स रे
बिं — द ह

अन्तरा





सं सं सं सं
क छु न हीं

ग — — ग
री — — भ





ध — सं सं
ला — ग त

प रे ग प
जो रे भै या


ग प ग ग
ज प त प

ध सं ध प
ख र च त


प — ध ध
सा — ध न

ग रे स रे
न हीं ग ठ