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संग्राम/३.७

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संग्राम
प्रेमचंद

काशी: हिन्दी पुस्तक एजेन्सी, पृष्ठ १९२ से – १९७ तक

 


सातवां दृश्य
(स्थान—दीवानखाना, समय—३ बजे रात, घटा छाई हुई है,
सबलसिंह तलवार हाथमें लिये द्वारपर खड़े हैं।)

सबल—(मनमें) अब सो गया होगा। मगर नहीं आज उसकी आँखोंमें नींद कहाँ। पड़ा-पड़ा प्रेमाअग्निमें जल रहा होगा। करवटें बदल रहा होगा। उसपर यह हाथ न उठ सकेंगे। मुझमें इतनी निर्दयता नहीं है। मैं जानता हूँ वह मुझपर प्रतिघात न करेगा। मेरी तलवारको सहर्ष अपनी गर्दनपर ले लेगा। हा! यही तो उसका प्रतिघात होगा। ईश्वर करें वह मेरी ललकारपर सामने खड़ा हो जाय। तब यह तलवार व्रजकी भाँति उसकी गर्दनपर गिरेगी। अरक्षित, निःशरू पुरुषपर मुझसे आघात न होगा। जब वह करुण दीन नेत्रोंसे मेरी ओर ताकेगा—जैसे छुरेके नीचे बकरा ताकता है—तो मेरी हिम्मत छूट जायगी।

(धीरे धीरे कंचनसिंहके कमरेकी ओर बढ़ता है।)

हा! मानवजीवन कितना रहस्यमय है। हम दोनोंने एक ही मांके उदरसे जन्म लिया, एक ही स्तनसे दूध पिया, सदा एक साथ खेले, पर आज मैं उसकी हत्या करनेको तैयार हूँ। कैसी विडम्बना है। ईश्वर करे उसे नींद आगई हो। सोतेको मारना धर्म-विरुद्ध हो पर कठिन नहीं है। दीनता दयाको जागृत कर देती है......(चौंककर) अरे! यह कौन तलवार लिये बढ़ा चला आता है। कहीं छिपकर देखूं इसकी क्या नीयत है। लम्बा आदमी है, शरीर कैसा गठा हुआ है। किवाड़के दरारोंसे निकलते हुए प्रकाशमें आजाय तो देखूं कौन है। वह आ गया। यह तो हलधर मालूम होता है, बिलकुल वही चाल है। लेकिन हलधरके दाढ़ी नहीं थी। सम्भव है दाढ़ी निकल आई हो, पर है हलधर, हां वही है, इसमें कोई सन्देह नहीं है। राजेश्वरीकी टोह इसे किसी तरह मिल गई। अपमानका बदला लेना चाहता है। कितना भयङ्कर स्वरूप हो गया है। आंखें चमक रही हैं। अवश्य हममेंसे किसीका खून करना चाहता है। मेरी ही मानका गाहक होगा। कमरेमें झांक रहा है। चाहूँ तो अभी पिस्तौलसे इसका काम तमाम कर दूं। पर नहीं। खूब सूझी। क्यों न इससे वह काम लूं जो मैं नहीं कर सकता। इस वक्त कौशलसे काम लेना ही उचित है। (तलवार छिपाकर) कौन है हलधर?

(हलघर तलवार खींचकर चौकन्ना हो जाता है)

सबल—हलधर क्या चाहते हो?

हलधर—(सबलके सामने आकर) संभल जाइयेगा मैं चोट करता हूँ।

सबल—क्यों मेरे खुनके प्यासे हो रहे हो?

हलधर—अपने दिलसे पूछिये।

सबल—तुम्हारा अपराधी मैं नहीं हूं, कोई दूसरा ही है।

हलधर—क्षत्री होकर आप प्राणोंके भयसे झूठ बोलते नहीं लजाते।

सबल—‌मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ।

हलधर—सरासर झूठ है। मेरा सर्वनाश आपके हाथों हुआ है। आपने मेरी इज्जत मिट्टीमें मिला दी। मेरे घर में आग लगा दी और अब आप झूठ बोलकर अपने प्राण बचाना चाहते हैं। मुझे सब खबरें मिल चुकी हैं। बाबा चेतनदासने सारा कच्चा चिट्ठा मुझसे कह सुनाया है। अब बिना आपका खून पिये इस तलवारकी प्यास न बुझेगी।

सबल—हलधर मैं क्षत्री हूँ और प्राणोंको हीं डरता। तुम मेरे साथ मेरे कमरेतक आवो। मैं ईश्वरको साक्षी देकर कहता हूँ कि मैं कोई छल कपट न करूंगा। वहाँ मैं तुमसे सब वृत्तान्त सच सच कह दूंगा। तब तुम्हारे मनमें जो आये वह करना।
(हलधर चौकन्ना दृष्टिसे ताकता हुआ सबलके साथ उसके
दीवानखाने में जाता है)

सबल—तख्तपर बैठ जाओ और सुनो। यह सारी आग कंचनसिंहकी लगाई हुई है। उसने कुटनी द्वारा राजेश्वरीको घरसे निकलवा लिया है। उसके गोइन्दोंने राजेश्वरीका उससे बखान किया होगा। वह उसपर मोहित हो गया और तुम्हें जेल पहुँचाकर अपनी इच्छा पूरी की। जबसे मुझे यह समाचार मिला है मैं उसका शत्रु हो गया हूँ। तुम जानते हो मुझे अत्याचारसे कितनी घृणा है। अत्याचारी पुरुष चाहे वह मेरा पुत्र ही क्यों न हो, मेरी दृष्टिमें हिंसक जन्तुके समान है और उसका वध करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ। इसीलिये मैं यह तलवार लेकर कंचनसिंहका वध करने जा रहा था। इतने में तुम दिखाई पड़े। मुझे अब मालूम हुआ कि जिसे मैं बड़ा, धर्मात्मा, ईश्वरभक्त,सदाचारी और त्यागी समझता था वह वास्तवमें एक परले दरजेका व्यभिचारी, विषयी मनुष्य हैं। इसीलिये

उसने अबतक विवाह नहीं किया। उसने कर्मचारियोंको घूसदेकर तुम्हें चुपके-चुपके गिरफ्तार करा लिया और अब राजेश्वरीके साथ विहार करता है। अभी आधी रातको वहांसे लौटकर आया है। मैं तुमसे सारा वृत्तान्त कह सुनाया, अब तुम्हारी जो इच्छा हो करो।

(हलधर लपककर कंचनसिहके कमरेकी ओर चलता है।)

सबल—ठहरो ठहरो, यों नहीं। सम्भव है तुम्हारा आहट पाकर जाग उठे। नौकर सिपाही उसका चिल्लाना सुनकर जाग पड़ें। प्रातःकाल वह गंगा नहाने जाता है। उस वक्त अन्धेरा रहता है। वहीं तुम उसे गङ्गाकी भेंट कर सकते हो। घात लगाये रहो। अवसर आतेही एक हाथमें काम तमाम कर दो और लाशको वहीं बहा दो। तुम्हारा मनोरथ पूरा होने का इससे सुगम उपाय नहीं है।

हलधर—(कुछ सोचकर) मुझे धोखा तो नहीं देना चाहते। इस बहानेसे मुझे टाल दो और फिर सचेत हो जाओ और मुझे पकड़वा देनेका इन्तजान करो।

सबल—मैंने ईश्वरकी कसम खाई है, अगर अब भी तुम्हें विश्वास न आये तो जो चाहे करो।

हलधर—अच्छी बात है जैसा आप कहते हैं वैसाही होगा। अगर इस समय धोखा देकर बच भी गये तो फिर क्या कभी दाव ही न आयेगा। मेरे हाथोंसे बचकर अब नहीं जा सकते। मैं चाहूँ तो एक क्षण में तुम्हारे कुल का नाश कर दूं पर मैं हत्यारा नहीं हूँ, मुझे धनकी लालसा नहीं है। मैं तो केवल अपने अपमानका बदला लेना चाहता हूं। आपको भी सचेत किये देता हूँ। मैं अभी और टोह लगाऊँगा। अगर पता चला कि आपने मेरा घर उजाड़ा है तो मैं आपको भी जीता न छोड़ूगा। मेरा तो जो कुछ होना था हो चुका पर मैं अपने उजाड़नेवालोको कुकर्मका सुख न भोगने दूंगा।

(चला जाता है)

सबल—(मनमें) मैं कितना नीच हो गया हूँ। झूठ, दगा, फरेब, किसी पापसे भी मुझे हिचक नहीं होती। पर जो कुछ भी हो हलधर बड़े मौकेसे आ गया। अब बिना लाठी टूटे ही सांप मरा जाता है।

(प्रस्थान)