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सौ अजान और एक सुजान/१६

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सौ अजान और एक सुजान
बालकृष्ण भट्ट

पृष्ठ ९७ से – १०१ तक

 

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सोलहवाँ प्रस्ताव

छिद्रेष्वनर्था बहुली भवन्ति।*[]

मेरे मन कुछ और हैं, कर्ता के कुछ और।

सब लोग अपनी-अपनी पसंद के माफिक स्वच्छंद आमोद-प्रमोद में लगे हुए थे। एक ओर प्याले पर प्याला चल रहा था, दूसरी ओर पौ छक्के का शगल शुरू था कि अचानक इस खबर के जाहिर होते कानो कान सब आपस में कानाफूसी करने लगे। एकबारगी सन्नहटा छा गया। नदू का चेहरा जर्द 'पड़ गया। वहाँ से निकल जाने की तदबीर सोचने लगा। दोनो बाबू भी घबरा गए और इस ख्याल मे थे कि नंदू उनका दिली खैरख्वाह है, अपने ऊपर सब ओढ़ लेगा, उन. दोनो पर ऑच न आवेगी। इधर नंदू इस फिकिर में लगा कि जिस इलज़ाम पर वारेट आया है, वह इन बाबुओं पर थाप दे, तो हम साक बरी रहे । सच है 'आपत्सु मित्र'


जानीयात्" और इसी यत्न में लगा कि किसी तरह से चंपत हो। अस्तु, और सब लोग किसी-न-किसी बहाने वहाँ से खिसकने लगे, पर नंदू की कोई घात निकलने की नहीं लगती थी। इतने में घर से एक दूसरी खबर आई–"सरस्वती बहुत बीमार हो गई है, उलटी साँस चल रही है, जल्दी घर चलो।"

छोटे बाबू की दो वर्ष की लड़की सरस्वती दोनो बाबुओं को बहुत हिली थी। घर में कोई छोटा लड़का न रहने से सब उसे बहुत प्यार करते थे. और वह घर-भर की खिलौना थी। बाबू को दोचंद तरद्दुदुद मे पड़े देख सब लोग बड़े फिकिर में हुए, किंतु नंदू के आकार और चेष्टा से मालूम होता था कि इसे वाबुओं के साथ कोई सहानुभूति नहीं है, केवल अपने बचाव के प्रयन में अलबत्ता लग रहा है । पंचानन, जो कभी बाबुओं के किसी जलसे और नाच-रंग में आज तक शरीक न हुया था, और बाबू के दिली दोस्तों से इसकी जियादह रब्त-जब्त न रहने से अच्छी तरह उनके गुप्त चरित्र और छिपे चाल-चलन से वाकिफ न था, नदू की उस समय की रुखाई से अचरज में आया। यद्यपि पंचानन तरदुद और फिकिर से कोसों दूर हटता था, पर इस समय बावुओ को अत्यंत उदास, व्याकुल ओर चितामग्न देख यह भी सन्नाटे में आ गया। कुछ इस कारण भी कि चदू का, जिसे यह सबसे अधिक मानता था, सेठ के घराने से बहुत लगाव समझ दोनो के साथ इसे, हमदर्दी हो आई; नंदू पर इसे क्रोध भी आया कि यह धूर्त नमकहराम इस मुसीबत और चवकुलिश से किसी तरह रिहाई न पा सके, और इसके फॅसाने की फिकिर मे हुआ। पचानन मुसिफी तक की वकालत की सनद हासिल किए था, इमलिये कानून की बाराकियों को भी भरपूर समझता था। नदू को बातो मे फॅसाय वाबुओं को,आँख के इशारे से वाग के पिछवाड़े की खिड़की से बाहर निकाल दिया।

पंचानन–(नदू से) बाबू नदलाल, आप ऐसे सयाने कौआ इन बगुलों के दल मे कैसे फंसे ? आपको तो अपनी चालाकी का दावा था। 'क्या खूब फैसा कफस में यह पुराना चंडूल-लगी गुलशन की हवा दुम का हिलाना गया भूल।" सच है, सयाना कौआ जरूर गलीज खाता है । खैर, अब बतलाओ, उस्तादों को क्या नजर करोगे, हम इससे पैरवी कर तुम्हे अभी इस मुसीबत से रिहा करे।

नदू–आप यकीन न लावेगे, मेरा इसमें कोई कुसूर नहीं है इन बाबुओं ने मुझे भी फॅसाय खराब किया।

पचानन–जो !आप ठीक कह रहे हैं।भला किसे शामत सवार है कि आप की बात पर यकीन न लावे। हम क्या हमारे बाप-दादा अपने-अपने वक्त. मे सब आप पर यकीन लाए हुए थे। वल्लाह, ऐसे नए नबी पर जो यकीन न लाया, तो कौन दूसरे पैराबर, आवेगे, जो हम-ऐसे गुनहगारों का गुनाह माफ करेंगे। हाल से हमारे प्रपितामह की भेजी हुई हमारे नाम की एक चिट्ठी आई है कि बाबू नंदलाल जो कहें, उसमें एक शोशा भी गलत न समझो। तब भला मुमकिन है कि आपकी बात का यकीन न करें ?

नंदू–आप तो ठट्ठों में उड़ाते हैं, यह मौका दिल्लगी का नही है।

पंचानन–जी नहीं, दिल्लगी की इसमें कौन-सी बात है, उस वक्त दिल्लगी. अलबत्ता थी, जब खूब गुलछरें उड़ते थे। खेर, बाबुओं के बचाव की सूरत बिलफैल किसी-न-किसी ढंग से हो जायगी। बावू दोनो चंपत भी हो गए, अब आप अपनी कहिए।

नंदू–(सब ओर देख) (स्वगत ) हाय ! बांबू क्या चले गए, तो अब यह सब बला हमी को सहना पड़ेगी । पंचानन चालाकी में हमसे भी दूना ज़ाहिर होता है, और हमको फँसाने के लिये इसने मन में तय कर लिया है, तो अब हमारा निस्तार कठिन मालूम होता है। खैर, अब इसी की खुशामद करें (प्रकट) बाबू पंचानन, आप चाहे, तो मुझे भी यहाँ से निकाल सकते हैं, मै आपका बड़ा एहसानमंद हूँगा।

पंचानन– आप कुछ संदेह न करे, मै आपकी भरपूर खबर लूॅगा । ( वारेटवालों को बुलाकर ) बाबू ऋद्धिनाथ तो यहाँ नहीं हैं, और यहाँ आए भी नहीं। बाबू नदलाल अल- बत्ता हाजिर हैं, इन्ही से बुद्धदास का भी पता आपको लग जायगा। (नंदू से ) नंदलाल, बाबू अब कहिए, जो कुछ आपको कहना हो; बुद्धदास के गिरफ्तारी के जिम्मेवार भी आप ही हैं । (दारोगा से) दारोगा साहब, बाबू नंदलाल बड़े रईस हैं, इनके साथ किसी तरह की रियायत हो सकती हो, तो मैं सिफारिश करता हूँ, कर दीजिए। क्योंजी बाबू नंदलाल, यही आपका मतलब न था कि मैं अपनी ओर से आपके लिये न चूकूॅ? खैर, मै अब जाता हूँ, दारोगा साहब और आप दोनो आपस मे यहॉ निपटते रहिए।

  1. * दुख में और भी दुख पड़ते हैं।