सौ अजान और एक सुजान/२२

विकिस्रोत से
सौ अजान और एक सुजान  (1944) 
द्वारा बालकृष्ण भट्ट

[ १२० ]

बाईसवाँ प्रस्ताव

सत्यमेव जयति नानृतम्।[१]

अंत को यह मुकदमा लखनऊ के चीफकोर्ट में पेश किया गया। पंचानन को इसमे चंदू ने गवाह नियत किया । पंचा- नन को, जो सदा चैन में रहना ही अपने जीवन का उद्देश्य


[ १२१ ]माने हुए था, लखनऊ जाना नागवार हुआ, किंतु चंदू के

उद्देश्य से उसे ऐसा करना ही पड़ा। दूसरे यह कि चंदू ने बाबू का कचहरी में जाना अनुचित और सेठ हीराचंद की हतक समझ इसे बाबुओं की ओर से मुखतार मुक़र्रर किया था।

मुक़दमा शुरू होने पर नंदू.बुलाया गया। यह कॉपता-काँपता दो पुलीस के पहरे में जज के सामने हाज़िर हुआ। जज ने पूछा–"तुम अपनी सफाई इस मुकदमे में क्या देते हो ?"

नंदू–हुजूर, यह सब पुलीस की कार्रवाई है। मेरा इसमें कोई कुसूर नहीं; और हो भी, तो यह हरकत मैने बाबू के कहने से की।

पंचानन–नंदू बाबू, तो क्या आप इसमें बिलकुल बेकुसूर हैं? उस दिन वारंट आपके नाम आया था कि बाबू के नाम ? आप चालाकी से न चूकिएगा। सच है, अंधड़ में जब कोई बड़ा पेड़ उखड़ने लगता है, तो अपने साथ दो-एक छोटे-मोटे वृक्षों को भी ले डालता है, और आपने तो ऐसे-ऐसे कई एक बाबुओं को हलाल कर डाला। पहले आपने कहा-'हम बिल- कुल बेकुसूर हैं।" पीछे से कहते हो–"किया भी, तो बाबुओं के कहने से।" इससे साफ ज़ाहिर है कि आप अपने साथ बाबुओं को भी फँसाना चाहते हैं।

जज–(पुलीस से ) तुम दोनों इसके बारे में क्या जानते हो?

पहला पुलीस–हुजूर. इसने जाल किया है, और हमेशा [ १२२ ]
से यही काम करता रहा है । इसके साथ एक आदमी बनाम बुद्धू और भी है; वह भी इसी अदालत में हाजिर है । ये दोनों आपस में मिले हुए हैं, और यही पेशा इन लोगों का है कि नई उमरवाले रईस के लड़कों को फॅसाया, करे ।

पंचानन-हुजूर, यह बिलकुल सही है। आज दिन अवध- भर मे हीराचद जैसे रईस हैं, सब लोग जानते हैं, तब उनके लड़कों को क्या पड़ी, जो इतनी थोड़ी-सी रक़म के लिये ऐसी बेइज्ज़ती का काम कर गुजरेगे। अदालत को जो कुछ दरियाफ्त करना हो, मै उनकी तरफ से मुख- तार हाजिर हूॅ, पर इतना ज़रूर कहूँगा कि इन दोनों का हमेशा से यही ढंग चला आया है । ये लोग रेउड़ी के लिये मसजिद ढहानेवाले हैं। क्यों नदू बाबू, सच है न ? (नंदू सिर नीचा कर लेता है) हुजूर, अब अदालत को कोई शक इसके कुसूरवार होने में न रहा, और फिर इन दोनों का तो सदा से यही मकला रहा है कि अॅगरेज़ी राज्य मे अदालत और कानूनों की पेचीदगी इसीलिये है कि जाल रचे जायॅ|

जज-अगर तुम्हारा कहना सही है, तो तौहीने अदालत एक दूसरा क़ुसूर इस पर लगाया जा सकता है। अच्छा, तो इस सबके लिये इसको सात वर्ष की सख्त सजा का हुक्म दिया जाता है, और अदालत मातहत की तजवीज देखने से मालूम हुआ है कि कातिब इस जाल का बुद्धदास है । इस- लिये उसको दस वर्ष की कैद का हुक्म होता है।

________

  1. *सत्य की ही विजय होती हैं, असत्य की नही।