भ्रमरगीत-सार/१११-ऊधो! ब्रज में पैठ करी

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राग सारंग
ऊधो! ब्रज में पैठ करी।

यह निर्गुन, निर्मूल गाठरी अब किन करहु खरी॥
नफा जानिकै ह्याँ लै आए सबै बस्तु अकरी[१]
यह सौदा तुम ह्वाँ लै बेंचौ जहाँ बड़ी नगरी॥

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हम ग्वालिन, गोरस दधि बेंचौ, लेहिं अबै सबरी।
सूर यहाँ कोउ गाहक नाहीं देखियत गरे परी॥१११॥

  1. अकरी=महँगी।