भ्रमरगीत-सार/१११-ऊधो! ब्रज में पैठ करी
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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १२९ से – १३० तक
यह निर्गुन, निर्मूल गाठरी अब किन करहु खरी॥
नफा जानिकै ह्याँ लै आए सबै बस्तु अकरी[१]।
यह सौदा तुम ह्वाँ लै बेंचौ जहाँ बड़ी नगरी॥
हम ग्वालिन, गोरस दधि बेंचौ, लेहिं अबै सबरी।
सूर यहाँ कोउ गाहक नाहीं देखियत गरे परी॥१११॥