सामग्री पर जाएँ

भ्रमरगीत-सार/११२-गुप्त मते की बात कहौ जनि कहुँ काहू के आगे

विकिस्रोत से

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३०

 

राग सारंग

गुप्त मते की बात कहौ जनि कहुँ काहू के आगे।
कै हम जानैं कै तुम, ऊधो! इतनो पावैं माँगे॥
एक बेर खेलत बृँदाबन कंटक चुभि गयो पाँय।
कंटक सों कंटक लै काढ्यो अपने हाथ सुभाय॥
एक दिवस बिहरत बन-भीतर मैं जो सुनाई भूख।
पाके फल वै देखि मनोहर चढ़े कृपा करि रूख॥
ऐसी प्रीति हमारी उनकी बसते गोकुल-बास।
सूरदास प्रभु सब बिसराई मधुबन कियो निवास॥११२॥