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भ्रमरगीत-सार/१२७-ऊधो! सुनत तिहारे बोल

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३५

 

राग धनाश्री
ऊधो! सुनत तिहारे बोल।

ल्याए हरि-कुसलात धन्य तुम घर घर पार्‌यो गोल[]
कहन देहु कह करै हमारो बरि उड़ि जैहै झोल[]
आवत ही याको पहिंचान्यो निपटहि ओछो तोल॥
जिनके सोचन रही कहिबे तें, ते बहु गुननि अमोल।
जानी जाति सूर हम इनकी बतचल[] चंचल लोल॥१२७॥

  1. गोल पाज्यो=गड़बड़ मचाया, गोलमाल किया।
  2. झोल=राख, भस्म।
  3. बतचल=बकवादी।