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भ्रमरगीत-सार/१२९-ऊधो! जानि परे सयान

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३६

 

राग नट
ऊधो! जानि परे सयान।

नारियन को जोग लाए, भले जान सुजान॥
निगम हूँ नहिं पार पायो कहत जासों ज्ञान।
नयनत्रिकुटी जोरि संगम जेहि करत अनुमान॥
पवन धरि रबि-तन निहारत, मनहिं राख्यो मारि।
सूर सो मन हाथ नाहीं गयो संग बिसारि॥१२९॥