भ्रमरगीत-सार/१३०-ऊधो! मन नहिं हाथ हमारे
दिखावट
बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३६
रथ चढ़ाय हरि संग गए लै मथुरा जबै सिधारे॥
नातरु कहा जोग हम छांड़हि अति रुचि कै तुम ल्याए।
हम तौ झकति[१] स्याम की करनी, मन लै जोग पठाए॥
अजहूँ मन अपनो हम पावैं तुमतें होय तो होय।
सूर, सपथ हमैं कोटि तिहारी कहौ करैंगी सोय॥१३०॥