[ १३६ ]
रथ चढ़ाय हरि संग गए लै मथुरा जबै सिधारे॥ नातरु कहा जोग हम छांड़हि अति रुचि कै तुम ल्याए। हम तौ झकति[१] स्याम की करनी, मन लै जोग पठाए॥ अजहूँ मन अपनो हम पावैं तुमतें होय तो होय। सूर, सपथ हमैं कोटि तिहारी कहौ करैंगी सोय॥१३०॥