सामग्री पर जाएँ

भ्रमरगीत-सार/१४४-मधुकर! छाँड़ु अटपटी बातें

विकिस्रोत से
भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १३९

 

राग सारंग
मधुकर! छाँड़ु अटपटी बातें।

फिरि फिरि बार बार सोइ सिखवत हम दुख पावति जातें॥
अनुदिन देति असीस प्रांत उठि, अरु सुख सोवत न्हातें।
तुम निसिदिन उर-अंतर सोचत ब्रजजुबतिन को घातें॥
पुनि पुनि तुम्हैं कहत क्यों आवै, कछु जाने यहि नाते[]
सूरदास जो रंगी स्यामरंग फिरि न चढ़त अब राते[]॥१४४॥

  1. यहि नाते=इसी संबंध से, इसी कारण।
  2. राते=लाल।