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दृष्टि-धार करि मारि साँवरे घायल सब ब्रजनारि॥
रही सुखेत ठौर बृन्दाबन, रनहु न मानति हारि। बिलपति रही संभारत छन छन बदन-सुधाकर-बारि॥ सुंदरस्याम-मनोहर-मूरति रहिहौं छबिहि निहारि। रंचक सेष रही सूर प्रभु अब जनि डारौ मारि॥१५१॥