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भ्रमरगीत-सार/१५१-तिहारी प्रीति किधौं तरवारि

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १४१ से – १४२ तक

 

राग सारंग
तिहारी प्रीति किधौं तरवारि?

दृष्टि-धार करि मारि साँवरे घायल सब ब्रजनारि॥

रही सुखेत ठौर बृन्दाबन, रनहु न मानति हारि।
बिलपति रही संभारत छन छन बदन-सुधाकर-बारि॥
सुंदरस्याम-मनोहर-मूरति रहिहौं छबिहि निहारि।
रंचक सेष रही सूर प्रभु अब जनि डारौ मारि॥१५१॥