भ्रमरगीत-सार/१५२-मधुकर! कौन मनायो मानै
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मधुकर! कौन मनायो मानै?
अबिनासी अति अगम अगोचर कहा प्रीति-रस जानै?
सिखवहु ताहि समाधि की बातें जैहैं लोग सयाने।
हम अपने ब्रज ऐसेहि बसिहैं बिरह-बाय-बौराने॥
सोवत जागत सपने सौंतुख[१] रहिहैं सो पति माने।
बालकुमार किसोर को लीलासिंधु सो तामें साने॥
पर्यो जो पयनिधि बूंद अलप[२] सो को जो अब पहिचाने?
जाके तन धन प्रान सूर हरि-मुख-मुसुकानि बिकाने॥१५२॥