भ्रमरगीत-सार/१६७-पाती सखि! मधुबन तें आई
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पाती सखि! मधुबन तें आई।
ऊधो-हाथ स्याम लिखि पठई, आय सुनौ, री माई!
अपने अपने गृह तें दौरीं लै पाती उर लाई।
नयनन नीर निरखि नहिं खंडित प्रेम न बिथा बुझाई॥
कहा करौं सूनो यह गोकुल हरि बिनु कछु न सुहाई।
सूरदास प्रभु कौन चूक तें स्याम सुरति बिसराई?॥१६७॥