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भ्रमरगीत-सार/१६६-उधो! हम आजु भईं बड़भागी

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १४८

 

राग नट
उधो! हम आजु भईं बड़भागी।

जैसे सुमन-गंध लै आवतु पवन मधुप अनुरागी।
अति आनंद बढ़्यो अँग अँग मैं, परै न यह सुख त्यागी।
बिसरे सब दुख देखत तुमको स्यामसुन्दर हम लागी[]
ज्यों दर्पन मधि दृग निरखत जहँ हाथ तहाँ नहिं जाई।
त्यों ही सूर हम मिलीं साँवरे बिरह-बिथा बिसराई॥१६६॥

  1. लागीं=मिली।