बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १५१
ज्यों बिनु पुट पट गहै न रंगहिं[२], पुट गहे रसहि परै॥ जौ आँवौ[३] घट दहत अनल तनु तौ पुनि अमिय भरै। जौ[४] धरि बीज देह अंकुर चिरि तौ सत फरनि फरै॥ जौ सर सहत सुभट संमुख रन तौ रबिरथहि सरै। सूर गोपाल प्रेमपथ-जल तें कोउ न दुखहिं डरै॥१७५॥