बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १५१ से – १५२ तक
तौ पै इती अवज्ञा उनपै कैसे सही परी?
तबहिं दवा[१] द्रुम दहन न पाये, अब क्यों देह जरी? सुन्दरस्याम निकसि उर तें हम सीतल क्यों न करी? इंद्र रिसाय बरस नयनन मग, घटत न एक घरी। भीजत सीत भीत तन काँपत रहे, गिरि क्यों न धरी। कर कंकन दर्पन लै दोऊ अब यहि अनख[२] मरी। एतो मान सूर सुनि योग जु बिरहिनि बिरह धरी॥१७७॥