भ्रमरगीत-सार/१७८-ऊधो इतै हितूकर रहियो

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ऊधो! इतै हितूकर[१] रहियो।

या ब्रज के व्योहार जिते हैं सब हरि सों कहियो।
देखि जात अपनी इन आँखिन दावानल दहियो।
कहँ लौं कहौं बिथा अति लाजति यह मन को सहियो॥
कितो प्रहार करत मकरध्वज हृदय फारि चहियौ।
यह तन नहिं जरि जात सूर प्रभु नयनन को बहियौ॥१७८॥

  1. हितूकर=कृपालु।