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भ्रमरगीत-सार/१९०-उधो नँदनंदन सों इतनी कहियो

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १५६

 

राग केदारो
उधो! नँदनंदन सों इतनी कहियो।

जद्यपि ब्रज अनाथ करि छाँड़्यो तदपि बार इक चित करि रहियो॥
तिनकातोरे[] करौ जनि हमसों एक वास की लज्जा गहियो।
गुन-औगुनन रोष नहिं कीजत दासनिदासि की इतनी सहियो॥
तुम बिन स्याम कहा हम करिहैं यह अवलंब न सपने लहियो।
सूरदास प्रभु यह कहि पठई कहाँ जोग कहँ पीवन दहियो॥१९०॥

  1. तिनकातोर=नातातोड़, संबंध-त्याग।