भ्रमरगीत-सार/१८९-अपने मन सुरति करत रहिबी
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अपने मन सुरति करत रहिबी।
ऊधो! इतनी बात स्याम सों समय पाय कहिबी॥
घोष बसत की चूक हमारी कछू न जिय गहिबी।
परम दीन जदुनाथ जानिकै गुन बिचारि सहिबी॥
एकहि बार दयाल दरस दै बिरह-रासि दहिबी।
सूरदास प्रभु बहुत कहा कहौं बचन-लाज बहिबी॥१८९॥