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भ्रमरगीत-सार/१८९-अपने मन सुरति करत रहिबी

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १५५ से – १५६ तक

 

राग सोरठ
अपने मन सुरति करत रहिबी।

ऊधो! इतनी बात स्याम सों समय पाय कहिबी॥

घोष बसत की चूक हमारी कछू न जिय गहिबी।
परम दीन जदुनाथ जानिकै गुन बिचारि सहिबी॥
एकहि बार दयाल दरस दै बिरह-रासि दहिबी।
सूरदास प्रभु बहुत कहा कहौं बचन-लाज बहिबी॥१८९॥