सामग्री पर जाएँ

भ्रमरगीत-सार/२०२-ऊधो तुमहीं हौ सब जान

विकिस्रोत से

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १५८

 

ऊधो! तुमहीं हौ सब जान[]

हमको सोई सिखावन दीजै नँदसुवन की आन॥
आमिष भोजन हित है जाके सो क्यों साग प्रमान।
ता मुख सेमि-पात क्यों भावत जा मुख खाए पान?
किंगिरी-सुर कैसे सचु मानत सुनि मुरली को गान?
ता भीतर क्यों निर्गुन आवत जा उर स्याम सुजान?
हम बिन स्याम बियोगिनि रहिहैं जब लग यहि घट प्रान।
सुख ता दिन तें होय सूर प्रभु ब्रज आवैं ब्रजभान॥२०२॥

  1. जान=सुजान, चतुर।