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कै तन गए भलो मानैं, कै हरि ब्रज आय रहौ॥ कानन-देह विरह-दव लागी इन्द्रिय-जीव जरौ। बुझै स्याम-धन कमल-प्रेम मुख मुरली-बूँद परौ॥ चरन-सरोवर-मनस[१] मीन-मन रहै एक रसरीति। तुम निर्गुनबारू महँ डारौ; सूर कौन यह नीति?॥२०३॥