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अति मीठी मधुरी हरि-मुख की हैं उर-अंतर साली॥
स्याम सघन तन सींची बेली, हस्त कमल धरि पाली। अब ये बेली सूखन लागीं, छाँड़ि दई हरि-माली॥ तब तो कृपा करत ब्रज ऊपर संग लता ब्रजबाली। सूर स्याम बिन मरि न गई क्यों बिरहबिथा की घाली?[१]॥२०४॥