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भ्रमरगीत-सार/२०४-ऊधो कत वे बातें चाली

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भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १५८ से – १५९ तक

 

ऊधो! कत वे बातें चाली?

अति मीठी मधुरी हरि-मुख की हैं उर-अंतर साली॥

स्याम सघन तन सींची बेली, हस्त कमल धरि पाली।
अब ये बेली सूखन लागीं, छाँड़ि दई हरि-माली॥
तब तो कृपा करत ब्रज ऊपर संग लता ब्रजबाली।
सूर स्याम बिन मरि न गई क्यों बिरहबिथा की घाली?[]॥२०४॥

  1. घाली=मारी हुई।