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हित की कहत अहित की लागत, बकत न आबै लाज॥ आपुन को उपचार करौ कछु तब औरनि सिख देहु। मेरे कहे जाहु सत्वर ही, गहौ सीयरे गेहु[१]॥ हाँ भेषज नानाबिधि के अरु मधुरिपु से हैं बैदु। हम कातर डराति अपने सिर कहुँ कलँक ह्वै कैदु[२]॥
साँची बात छाँड़ि अब झूठी कहौ कौन बिधि सुनि हैं? सूरदास मुक्ताफलभोगी हंस बह्नि[३] क्यों चुनिहैं?॥२०६॥