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भ्रमरगीत-सार/२१९-उधो ते कि चतुर पद पावत

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बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ १६४

 

उधो! ते कि चतुर पद पावत?

जे नहिं जानैं पीर पराई हैं सर्वज्ञ कहावत॥
जो पै मीन नीर तें बिछुरै को करि जतन जियावत?
प्यासे प्रान जात हैं जल बिनु सुधासमुद्र बतावत॥
हम बिरहिनी स्यामसुन्दर की तुम निर्गुनहिं जनावत।
ये दृग-मधुप सुमन सब परिहरि कमलबदन-रस भावत॥
कहि पठवत संदेसनि मधुकर! कत बकवाद बढ़ावत?
करो न कुटिल निठुर चित-अन्तर सूरदास कवि गावत॥२१९॥