सामग्री पर जाएँ

भ्रमरगीत-सार/२१-गोकुल सबै गोपाल-उपासी

विकिस्रोत से
भ्रमरगीत-सार
रामचंद्र शुक्ल

बनारस: साहित्य-सेवा-सदन, पृष्ठ ९७

 

राग केदार
गोकुल सबै गोपाल-उपासी।

जोग-अंग साधत जे ऊधो ते सब बसत ईसपुर कासी॥
यद्यपि हरि हम तजि अनाथ करि तदपि रहति चरननि रसरासी[]
अपनी सीतलताहि न छाँड़त यद्यपि है ससि राहु-गरासी।
का अपराध जोग लिखि पठवत प्रेमभजन तजि करत उदासी[]
सूरदास ऐसी को बिरहिन माँगति मुक्ति तजे गुनरासी?॥२१॥

  1. रासी=रसी या पगी हुई।
  2. उदासी=विरक्त।