भ्रमरगीत-सार/२२-जीवन मुँहचाही को नीको

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भ्रमरगीत-सार  (1926) 
द्वारा रामचंद्र शुक्ल

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राग धनाश्री
जीवन मुँहचाही[१] को नीको।

दरस परस दिनरात करति हैं कान्ह पियारे पी को॥
नयनन मूँदि मूँदि किन देखौ बँध्यो ज्ञान पोथी को।
आछे सुंदर स्याम मनोहर और जगत सब फीको॥
सुनौ जोग को का लै कीजै जहाँ ज्यान[२] है जी को?
खाटी सही नहीं रुचि मानै सूर खवैया घी को॥२२॥

  1. मुँहचाही चहेती, प्रिया।
  2. ज्यान=जियान हानि।